आनंदमठ उपन्यास की एक संक्षिप्त समीक्षा
वन्दे मातरम्!
सुजलां सुफलां मलयज शीतलां शस्यश्यामलां मातरम्।
बहुत दिनों से दिमाग मे चल रहा था कि
हमारे देश का राष्ट्र गीत "वन्दे मातरम" एक पंक्ति है जो बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय जी द्वारा रचित उपन्यास "आनंदमठ" से लिया गया है तो पूरी कहानी कितना प्रभावशाली होगा
आज पढ़कर पूरा किया तो सचमुच् में ऐसा ही है जीवन के मूल्यों को पहचानने और जीवन में गुलामी पराधीनता की जड़ को उखाड़ फेंकने की जोश भरता है।
"माया से कौन मुक्त हो सकता है? जो कहता है कि वह माया से मुक्त है, या तो उसे कोई माया-मोह पता ही नहीं या फिर वह ब्यक्ति खुद में ही सीमित होता है और निर्जीव की भांति जीता है ।
माया मोह लगाव झुकाव से सभी बंधे होते है तभी मनुष्य अपने काम को फलदायक परिणाम देता है।
ऋषि को धर्म प्रेम सत्य व शांति से , माँ बाप को औलाद से।
किसान को उपज से लोगो को भूख मिटाने से, गुरु को ज्ञान प्रकाश व शिष्य की सफलता से, सेना को प्रहरी से,
आदिवासियो को जल जंगल जमीन की रक्षा से।
राजाओ को शासन से।
डाकुओ को अपने आतंक से लोभ व लूट से, अंग्रेजो को पराधीन भारत से, आज भारत माँ के जन्मे आंदोलनकारियो को स्वतंत्रता से।
भारत में 1857 से स्वत्रंता की बिगुल बज चुकी थी परन्तु लोग अनपढ़,अन्धविशवाशी, गुलामी की आदत में जकड़े हुए थे लेकिन उन्हें अपनी मोह माया सही रास्ते में ले जाना ही भारत के आजादी का मार्ग तय करेगा। लोगो की आंखे खुले इसके लिए उन्होंने 1882 में
आनंदमठ उपन्यास में उत्तर बंगाल में 1773 के सन्यासी विद्रोह का अच्छे पात्र ऋषि मुनि किसान व समस्याए से निजात का वर्णन किये है । वास्तविक रूप से भारत के लिए पहली पुस्तक थी जो लोगो की मोह माया को सही दिशा में प्रयुक्ति व देशभक्ति की भावना से लबरेज थी। इसलिए आनंदमठ कृति का भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम और स्वतन्त्रता के क्रान्तिकारियों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा।
वंदे मातरम
मैं राहुल प्रसाद एक बहुत छोटा सा समीक्षक जो आपको ये कहता है आप वंदे मातरम से एतराज जताते हो तो कही न कही आप अंधविश्वास के शिकार है सिर्फ इसलिए कि हिन्दू धर्म के ग्रन्थ से राष्ट्र गीत और राष्ट्र गान लिया गया है आपको यहा जरूर देखना चाहिए कि सत्य अच्छाई जो हर धर्म सिखाता फिर भी आप मात्र कुछ मुठी भर लोग जानबूझकर ऐसा करना नही चाहते!
जो आपकी कमजोरी है जो हमारे देश को भी कमजोर करता है क्योंकि आप भी हमारे समाज व देश अहम हिस्सा है आपसे सभी से मिलकर ही देश है । आपको समझना चाहिए
सभी भावनाओं और संवेदनाओं, जरूरतों और आवश्यकताओं के प्रति आदर सच्चे भारतीय राष्ट्रवाद का आधार है।
बंकिमचन्द्रजी को नमन करता हु उनका कहना शत प्रतिशत सत्य है कि
घर परिवार समाज धर्म वातावरण प्रकृति कला और देश से मोह माया होना शाश्वत सत्य है।
"हम माया से मुक्त नहीं होते।"
मोह=माया =प्रेम=रुचि=झुकाव सही दिशा की ओर तभी जीवन सार्थक होता है -"आनंदमठ"
सुजलां सुफलां मलयज शीतलां शस्यश्यामलां मातरम्।
बहुत दिनों से दिमाग मे चल रहा था कि
हमारे देश का राष्ट्र गीत "वन्दे मातरम" एक पंक्ति है जो बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय जी द्वारा रचित उपन्यास "आनंदमठ" से लिया गया है तो पूरी कहानी कितना प्रभावशाली होगा
आज पढ़कर पूरा किया तो सचमुच् में ऐसा ही है जीवन के मूल्यों को पहचानने और जीवन में गुलामी पराधीनता की जड़ को उखाड़ फेंकने की जोश भरता है।
"माया से कौन मुक्त हो सकता है? जो कहता है कि वह माया से मुक्त है, या तो उसे कोई माया-मोह पता ही नहीं या फिर वह ब्यक्ति खुद में ही सीमित होता है और निर्जीव की भांति जीता है ।
माया मोह लगाव झुकाव से सभी बंधे होते है तभी मनुष्य अपने काम को फलदायक परिणाम देता है।
ऋषि को धर्म प्रेम सत्य व शांति से , माँ बाप को औलाद से।
किसान को उपज से लोगो को भूख मिटाने से, गुरु को ज्ञान प्रकाश व शिष्य की सफलता से, सेना को प्रहरी से,
आदिवासियो को जल जंगल जमीन की रक्षा से।
राजाओ को शासन से।
डाकुओ को अपने आतंक से लोभ व लूट से, अंग्रेजो को पराधीन भारत से, आज भारत माँ के जन्मे आंदोलनकारियो को स्वतंत्रता से।
भारत में 1857 से स्वत्रंता की बिगुल बज चुकी थी परन्तु लोग अनपढ़,अन्धविशवाशी, गुलामी की आदत में जकड़े हुए थे लेकिन उन्हें अपनी मोह माया सही रास्ते में ले जाना ही भारत के आजादी का मार्ग तय करेगा। लोगो की आंखे खुले इसके लिए उन्होंने 1882 में
आनंदमठ उपन्यास में उत्तर बंगाल में 1773 के सन्यासी विद्रोह का अच्छे पात्र ऋषि मुनि किसान व समस्याए से निजात का वर्णन किये है । वास्तविक रूप से भारत के लिए पहली पुस्तक थी जो लोगो की मोह माया को सही दिशा में प्रयुक्ति व देशभक्ति की भावना से लबरेज थी। इसलिए आनंदमठ कृति का भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम और स्वतन्त्रता के क्रान्तिकारियों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा।
वंदे मातरम
मैं राहुल प्रसाद एक बहुत छोटा सा समीक्षक जो आपको ये कहता है आप वंदे मातरम से एतराज जताते हो तो कही न कही आप अंधविश्वास के शिकार है सिर्फ इसलिए कि हिन्दू धर्म के ग्रन्थ से राष्ट्र गीत और राष्ट्र गान लिया गया है आपको यहा जरूर देखना चाहिए कि सत्य अच्छाई जो हर धर्म सिखाता फिर भी आप मात्र कुछ मुठी भर लोग जानबूझकर ऐसा करना नही चाहते!
जो आपकी कमजोरी है जो हमारे देश को भी कमजोर करता है क्योंकि आप भी हमारे समाज व देश अहम हिस्सा है आपसे सभी से मिलकर ही देश है । आपको समझना चाहिए
सभी भावनाओं और संवेदनाओं, जरूरतों और आवश्यकताओं के प्रति आदर सच्चे भारतीय राष्ट्रवाद का आधार है।
बंकिमचन्द्रजी को नमन करता हु उनका कहना शत प्रतिशत सत्य है कि
घर परिवार समाज धर्म वातावरण प्रकृति कला और देश से मोह माया होना शाश्वत सत्य है।
"हम माया से मुक्त नहीं होते।"
मोह=माया =प्रेम=रुचि=झुकाव सही दिशा की ओर तभी जीवन सार्थक होता है -"आनंदमठ"
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