कहानी - हवा हवाई ।

-"हवा हवाई मिठाई"
 ★★★★★★★
रात 9:30pm सूरत-हजीरा हाइवे का ब्रिज (तप्ति नदी)।

अक्सर आप देखते होंगे कि नदी की धाराएं समुंदर की ओर
जाति है  परन्तु तप्ति नदी की धाराएं विपरीत बहती है(हजीरा से ओकाई डेम तक अरब सागर की उफान तप्ति नदी के ऊपर चढ़ती है) जब समुद्र से पानी व लहरे नदी की तरफ आये तो स्वाभाविक है सुहानी हवाओ का झोंका भी आएगा इसलिए पूरे सूरत शहर में ठंडी हवाएं बरकरार रहती है।
खास करके जब समुंद्री लहरे चलती हो यानी शाम 4 बजे से सुबह तक।

सूरत सिटी में तप्ति नदी पर 5 बड़ा ब्रिज है जिसमे सबसे बड़ा हजीरा हाइवे ब्रिज है चुकी समुन्दर से नजदीक है जिससे तेज हवा झोंका आता है इसलिए शाम में भीड़ लगी रहती है
बच्चे बड़े बूढ़े सब लेकिन डिम लाइट में ज्यादातर कपल ही मिलते है यानी कि हगिंग व किसिंग का स्पॉट ज़ोन ही समझे।

डिनर के बाद कभी कभी हम भी वही टहलने निकल पड़ते है
हमेशा की तरह गर्दन में रेडियो लटकाए भोजपुरी लोकगीतो को झनकाते हुए साइकल से #अंकलजी गुजर रहे थे।
सुनिए! दो हवा हवाई मिठाई का पॉकेट दीजिए...
बड़ा बढ़िया गाना बज रहा मेरा #दोस्त उनसे बोला।
लगता है बिहार से है ना अंकलजी ....
मुस्कुराते हुए अरे! नही बबुआ हम बनारस से हई!!!
दोस्त की तरफ देखते हुए ठहाको के साथ हम बोल पड़े...
इहो साला बनारसे के बा..☺️
मिठाई मुह में डालते ही हम बचपन मे चले गए...बचपन मे बहुत खाते थे ये हवा हवाई। पैसा नही रहता था तो दादी से ठगकर या घर से 1 रुपया चुराकर जब तक 1पैकेट न ले ले  चैन कहा .... जब कभी 1 से ज्यादा मिल गया तो खुशी का कोई ठिकाना ही नही जैसे कि अभी खाकर मन खुश।

आप 10 रुपया में पूरा बचपन सामने रख दिए उड़ेलकर..
हा हा हा   अंकलजी थोड़ा देर रुकिए और खरीदेँगे मिठाई ….चुकी बढ़िया भोजपुरी लोकगीत बज रहा था उनके रेडियो में।

मुस्कुराते हुए क्यों नही रुकेंगे बबुआ हमारा तो यही काम है रोज का। रेडियो के साथ वो भोजपुरी गीत गुनगुना रहे थे....और हमलोग भी (तनी ताका न बलमुआ हमार ओरिया) ....लाउड वॉइस में।

दिलखुश हो गया...अंकलजी तनी दो और दीजिए #हवाहवाई
हा बबुआ ये लीजिए....
लेकिन खाने के बाद प्लास्टिक को मेरे झोला में डाल दीजिएगा नही तो ये सब प्लास्टिक हवा में उड़ियाकर पूल के नीचे गिर जाता है। कूड़ा बन तप्ति मइया को मैला कर देगा ...पहले वाले हमने प्लास्टिक कभर वही फेक दिया था जिसे वो उठाते हुए बोले।
हमे बहुत खराब लगा........ज्यादा ना सोच हमलोगो को पता होता तो नीचे थोड़े फेकते... दोस्त बोला।
फिर भी यार इनका काम तो सिर्फ मिठाई बेचना है । न कि हमारा कूड़ा उठाना। कभी कभी बिल्कुल भी असभ्य हो जाते है हमें कुछ याद ही नही रहता। हम भी तो वैसे ही जो स्वच्छभारत  के नारों तक सीमित रहते है।

बबुआ इतना चिंता मत कीजिए...
ई हमार रोज के काम हई घर जाते वक्त एक बार पूरा ब्रिज चकर लगा सारा प्लास्टिक इस थैले में भर ले जाते है आगे कचरा पेटी में डाल देते है।

अंकलजी दिल तो पहले ही जीत लिए थे आप मिठाई खिलाकर व गाना सुनाकर लेकिन आपके कर्म और सोच से आपका फैन बना दिया मुझे।

अंकलजी दिनभर में कितना कमा लेते है आप?
बबुआ दिन में एक फैक्ट्री में काम करते है और शाम 6 बजे से यहां रात दस बजे तक इस मिठाई से लगभग 300 कमा लेते है। ऊपरवालों की मेहरबानी है अभी बढ़िया से जिंदगी चल रहा मिलाजुलाकर महीना के 21000 हो जाता है।

एक बात तो साफ है अंकलजी बहुत मेहनती हो आप!!
 इतने उम्र में भी आप 14 घण्टे कंटिन्यू काम कैसे कर लेते है थकते नही ??

बबुआ थक तो जाते है कभी कभी घुटना मे दर्द भी उभर आता है किंतु हमारी पत्नी हमे बहुत सहयोग करती है खान पान में विशेष ध्यान रखती है अभी तक खुद से ही बाजार जाती है पौष्टिक साग सब्जी दूध सब लाती है तेल मसाला से परहेज रखती है। समय से खाने और सोने के आदि है हम सब।
इसलिए तंदुरुस्त रहते है और मालिस वालिस भी कर देती है तो दर्द सर्द दूर हो जाता है।
वैसे भी तो हम पुरुषो को मेहनती काम काज करने के लिए ही भगवान भेजते है इस धरती पर।

दोस्त- बनारस तो एकाध साल में जाते है होंगे??
हा बबुआ जन्मभूमि से जुड़ाव किसको नही रहता । पर्व त्योहार में जाते रहते है।
अंकलजी सूरत में ही बस गए है क्या?
हा बबुआ ...25 साल से है यहां छोट सा 3 BHK का फ़सक्लास का घर है।
दोस्त - वाह !!और बच्चे कहा है?? पढ़ाई लिखाई कराए या नही??
बबुआ आप ही के जैसे मेरे दो बड़े बेटे है और एक बिटिया है बड़ा बेटा इंजीनयर है पुणे में सेटल हो गया। दूसरा बेटा घर के पास ही नास्ता (भजिया गठिया समोसा) के दुकान लगाता है उसे पढ़ाने की लाख कोशिश किये पढा ही नही गलत संगति में समय पैसा बर्बाद कर दिया। बिटिया अभी बी कॉम कर रही है इस साल उसे ब्याह के अजवार हो जाएंगे।

दोस्त- अपनी मेहनत और धैर्य से धीरे धीरे ही सही बहुत कुछ हासिल कर लिए जीवन को आसान बना कर जी रहे है आप।
भगवान करे कि आपकी बेटी को अच्छा लड़का मिल जाये
सुनिए अपने और चाचीजी  पर भी ध्यान दीजिएगा कुछ पैसा बचाकर रखिए ताकि बुढापा में आप दोनों को कष्ट ना हो।

हा बबुआ सही कह रहे हो आप बड़ा बेटा तो त्याग ही दिया है और छोटा वाला अपनी बीबी बच्चे को सही से देख ले वही बड़ी बात है। हा जब तक भुजा काम कर रहा फैक्ट्री में कार्य करेंगे बाकी तो दो वक्त के लिए जीने खाने भर ये मिठाई का काम है ना।

हवा हवाई मिठाई कम खुशिया ज्यादा बेचते हो आप।
 बच्चे तो खुश हो ही जाते है बड़े भी बचपना महसूस कर लेते है आपके इस मिठाई से।
अंकलजी आप बहुत अच्छे इंसान हो ...आपसे बात करके बहुत अच्छा लगा। आइए एक फोटो खिंचते है...

देखिए मुस्कुराते हुए और भी असाधारण लगते हो आप।
धन्यवाद #हवाहवाई मिठाई के लिए और आपका आभार जो अपना बहुमुल्य समय व अनुभव दिये आप 👏

और हा... मोदीजी का एक मुद्रा योजना है जो छोटे बिजनेस शुरुआत करने वाले लोगो के लिए ही है सोमवार को #एसबीआई सोसिओ सर्कल ब्रांच में आइएगा अपने छोटे बेटे के साथ कागजात लेकर.....हम वही मिलेंगे यही काम है हमारा ☺️☺️☺️

अंकलजी के सफल , शुकुन भरी जीवन एवं उनके कार्य पद्धति के अनुभव से .... आज का आपाधापी जीवन पर एक सवाल खड़ा होता है।

हमारे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है?
 या यूं कहू इस जीवन मे आकर हमने ऐसा क्या क्या किया जिससे सिर्फ हमें सुकून मिला हो! हमारे पास शायद उंगलियों पर गिनने वाली बातें होंगी। पर अगर हम इच्छाओं की बात करें, उम्मीदों  की बात हो तो यह लिस्ट लम्बी हो जाएगी!

पता है क्यों?
क्योंकि हम अपनी जिंदगी, अपने हिसाब से नहीं "लोग क्या कहेंगे" पर जीतें हैं।

#सोचिए यदि जिस तरह से अंकलजी को लोगो ने मजदूर कहके काम छोड़ने पर मजबूर किया या अभी भी करते होंगे परन्तु वे उस दर्द को दरकिनार कर अपनी मेहनत क्षमता और धैर्य के साथ चले । आज उन्हें इंजीनयर के पिता कहलाने या सूरत जैसे महंगा सिटी में अपना अस्तित्व बनाये रखने में जो सुकून मिलता होगा तो जीवन के सारे संघर्ष भूल जाते होंगे।

जिस दिन 'लोग क्या कहेंगे' सोचना छोड़ दिया..जीवन बस तब से ही है।भूल जाइए की लोग आपसे क्या चाहतें हैं...यह सोचिये आप ख़ुद को क्या देना चाहते हैं!
जो कशमाकश है सिर्फ आपकी बनाई है, और इस कशमकश से सिर्फ आप निकल सकते हैं, कोई आपको निकाल नहीं सकता।
बेहतर है अपने सुकून के  लिये जिएं, अपने उन अपनों के लिये जिएं....जिन्हें हमारे होने और न होने से फर्क पड़ेगा।

मैने बड़े ब्यापारी, धनसेठ और कुछ बड़े अधिकारी जो मोटी आमदनी के पीछे भागते है के बीच रहके देखा है बड़ा बेचैन रहते है वे जबकि उनके पास पैसे इमारत सोहरत भी होते है।बेचैनी इसलिए कि पैसों की हवस में वे खुद को खो चुके है।
मरने से पहले ही खुद को मार। चुके है।
दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी सहज कर्मचारी व सामान्य इनकम वाले लोगो को भी देखता हूं कि वे सीमित सैलरी में भी एक सही प्लान के साथ खुशहाल जीवन जी रहे है जिस कार्यक्षेत्र में है पूरी तन मन से लगे रहते है...अटल इरादों से अपने कार्य क्षेत्र में अड़े रहते है।
"कर्म ही धर्म है और कर्म ही सेवा।"

इस कहानी के भावो को समेटते हुए कहू तो

ना कफ़न में जेब है ,ना कब्र में अलमारी
 फिर ये आगे निकल जाने की होड़ किसलिए ?
लोगबाग क्या कहेंगे?
क्या सोचेंगे? ...... कि चिंता किसलिए ??
बस जियें सुकूँ से ये सोचकर
 कि खाली हाथ आएं हैं ,खाली ही जाना है ,
ये दौलत ,ये शोहरत सब इसी धरा पर धरा रह जायेगा ।
साथ जाएगा तो सिर्फ हमारे कर्म ,
तो मरने से पहले ही खुद को क्यों मारे?
फिर भी ये आपाधापी क्यू??
हा प्रेम ,परोपकार,शांति,सुकून एवं खुशहाल जीवन क्यों नही!

राहुल प्रसाद

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