मैंने धक्का नही दिया!!!


कभी कभी
छोटी छोटी घटनाएँ...भी
अंदर से
बहुत उदास कर जाती है न!

#आज मैं रिक्शे से कपड़े के शीलशीले में रांची के सबसे पुराने मार्केट अपर बाजार जा रहा था। वहा पहुचते ही हमेशा की तरह भीड़भाड़!!
त्योहार हो या शादी सीजन वहा के पुराने नामचीन दुकानों में लोगो का हुजूम स्वभाविक है। वैसे उस एरिया में दुकानो और कुछ नई बिल्डिंग देख कुछ देर मन खुश था चुकी इसी शहर में स्नातक हुआ और यही से कम्पीटिशन के अखाड़े में उतरना सीखा कभी कॉलेज तो कभी सस्ती सब्जी लेने के वास्ते इस सकीर्ण गलियो में हजारो मर्तबा अपनी दोपहिया(साइकल😊) से गुजरे यादे उभर आयी।
बाइक, रिक्शा ,कार से सड़क जाम था करीब 20 मिनट एक ही जगह फसा रहा। वही 4 साल पहले की स्थिती सकीर्ण गलियां और खुरदरी सड़क, इधर उधर जिस गली में जगह मिली वही गाड़ी घुसा के लोग शॉपिंग में ब्यस्त, ठेले खोमचे वाले साइड रोड पर अपना दुकान लगाए हुए, बीच मे देवी माँ की मन्दिर और फूल, प्रसाद वाली दो दर्जन दुकाने पहले की भांति सब सड़क पर कब्जा किए हुए।

थोड़ी आगे पहुचते ही सड़क किनारे सब्जी की टोकरियां...बाइक  स्कूटी से उतरते चढ़ते टहलते सब्जी छांटकर खरीदने पहुचे झोला फैलाये लोग....
उसी बीच फिर एक जाम ...ओह! दो किलोमीटर जाने में डेढ़ घण्टे .… मन थोड़ी चिंतित काश! की साइकल से आया होता और सटाक से साइड में घुसकर निकल गया होता😊😊(पुरानी यादे)

जाम में तरह तरह के शोरगुल(हट रे ,आगे बढ़ाओ, थोड़ा नाले की तरफ दबा, वो रिक्शा.. ) के बीच झारखण्ड के राजधानी या यूं कह ले झारखण्ड की सबसे पुरानी मार्केट एरिया में आज भी वही खुली बहती दुर्गन्धित नालीया, कही कही साइड में पड़े कचरे की लगी ढेर, लटकते फटकते  बिजली के उलझी तार और झुकते झूलते खंबा।
खुरदरे रोड में बस नाम का अलकतरा पोता हुआ देख मन कुंठित हो रहा था। टीवी डिबेट और बड़े बड़े विकास के वादों से लबरेज पोस्टर, नेताओ की भाषणबाजी दिमाग मे गूंज रहा था और उन पर तरस भी आ रहा था कि राजधानी में रहकर भी ये नेता और इनके कार्यकर्ता अपनी शहर की ऐसी स्थिति से कैसे मुँह मोड़ लेते है?
 एक नगर परिषद , मेयर की ये कैसी मानसिकता है की अपनी ही गली मोहल्ले के सड़क नही बना सकते , पार्किंग की ब्यस्था नही कर पाते बहते गंदगी , बजबजाती नलीयो के बीच रहते कैसे??
 क्या वहा के सेठ मारवाड़ी, सैकड़ो वर्ष पुरानी नामचीन होलसेल शॉप वाले हस्तियो को  इन नालियों के दुर्गंध महसूस नही होती होगी?
क्या ऐसे बड़े रसूख और ब्यापारी अपने मोहल्ले को साफ सुथरा नही रख सकते???

तभी अचानक हमे पीछे से जोर झटका महसूस हुआ मैंने मुड़ के देखा तो पीछे से एक बुजुर्ग भारी भरकम समान लादे हुए रिक्शे को कमर में बंधे रबर के सहारे उसे तीरते हुए आ रहे थे। मेरा रिक्शा वाला पहले ही उतरकर बुजुर्ग से बहस करने लगा ....
 मेरा रिक्शा को तुमने जानबूझकर ठोका है....पहिया थोड़ी बैंड हो गया। मालिक मेरी आज की कमाई छीन लेगा बहस कर रहा था ....
बुजुर्ग बोले कोई पीछेवाले  हमे धका दिया तो तुम्हे लग गया।

चुकी हम जिस रिक्से में बैठे थे उसके पीछे और भी कई सारे रिक्शे वाले लाइन से जाम छूटने के ललक में थे।
पीछेवाले भी हो हल्ला कर रहे थे सब उस बुजुर्ग को ..रे तरे..अशब्द भद्दी गालियां दिए जा रहे थे
सामने दुकान वाला बाघ जैसा दहाड़ रहा था। तब तक हम अपने रिक्शेवाले को समझा ही रहे थे लेकिन उसके आंखों में अपने बच्चो के भूखे सोने की विवसता साफ नजर आ रही थी उसका मालिक आज उसका पगार छीन लेगा क्योकि उसे मालिक के पास सही सलामत रिक्शा पहुचाना होगा।
यही बात बार बार बुजुर्ग को बोले जा रहा था आज रिक्शा तो तुम्हे बनवाना ही पड़ेगा नही तो बहुत बुरा होगा
करीब 58 साल के बुजुर्ग सिर्फ दबी लफ्जो से कहते कि मेरी गलती नही है ......नही है ...पिछेवालो को बोलो....जो करना है करो रिक्सा नही बनाएंगे!!
वो गुस्से में लाल था वह बुजुर्ग पर हाथ चला दिया....
उसे अपने बैग पर रोक लिया फिर भी झटके से बुजुर्ग को थोड़ी चोटे आयी होगी.... फिर लाचार बुजुर्ग डरे सहमे अपने पैर दिखाते हुए बोले देखो मेरा पैर में 6 महीने से जख्मी है खून निकलता है पैर पेंडल पर रखते ही नही तो रिक्शा आगे कैसे बढ़ेगा।
उनका सूजा हुआ पैर का बड़ा घाव देखकर मेरे आंसू छलक पड़े। मैंने अपने पर्स से 500₹ निकाल टूटे रिक्शे बनाने के लिए थमा दिया और कहा आप जानते हो बुजुर्ग की गलती नही फिर भी उन्ही से लड़ रहे थे। जो गलती करे उनसे लड़ना सीखिए।
पर्स में जो कुछ 1300 ₹ बचा था बुजुर्ग अंकल के पजामे में रख कर लड़खड़ाते लफ्ज से बस उनसे कहा
एक हफ्ता पैर को आराम दीजिएगा और फिर कोई दूसरा काम देखियेगा।
मैं अपनी डबडबायी झुकी आंखे😢 लिए वहा से चल पड़ा। नैतिकता, खामोशी, विवसी को तमाशा समझता भीड़, कमजोर पर जोर शोषण, आये दिन बिना गलती के भी पीटा जाना, इंसानियत,सामर्थ्य ,असामर्थ्य , ज्ञान, नौकरी, सैलरी और नेटिव प्लेस। कई सारे सवाल ने मेरे जेहन को झकझोर दिया आज की यह घटना।

बुजुर्ग अंकल की पैर की हालत यहाँ बया नही किया जा सकता। बस जान लीजिए आप देखकर खून के आंसू रोएंगे।
उनक़ी स्थिति को कमजोरी ,मजबूरी ,विवसता,पुरूषत्व या पुरुषार्थ जो समझिए वे अपनी कमर और रिक्शे में कठोर रबड़ फसाकर एक पैर से लँगड़ते हुए भारी भरकम समान ढोकर अपने परिवार को पालते है।

उस वक्त कोई फ़ोटो नही लिया जा सकता था इसलिए अभी गूगल में एक रिक्शेवाले का पिक ढूंढ रहा था तभी उनके ही हाल जैसा थके हारे मजदूर का यह पुरुषार्थ मिला।

एक धागे की बात रखने को
मोम रोम रोम हमेशा जलता रहता है।
#यही पुरुषत्व है।

ऐसे सारे पुरुषार्थ को मेरा सलाम👏~राहुल प्रसाद

Comments