कविता- ख्वाबो के पते

    ख्वाबो के पते

मेरी आँखों में झिलमिलाते कुछ ख़्वाब
टहनियों में लटके उलझे उस पते की तरह...
एक मंजिल की जिद लिए मचल रहा है
तनाव ,उलझने, दुश्वारियाँ कहीं गहरे दबा कर
मनभेदों, मतभेदों के पत्ते गिराकर
एक पूरी जीवन गाथा कह देता है ये 
छोटा सा पता,
अपने किसी वृक्ष की शाख पर पनपने से
लेकर अपने अंत में सुख कर जल जाने तक,
बचपन, जवानी, बुढ़ापा और फिर भस्म बन
जाने का ये चक्र,
पर हम इसकी  हरियाली देखते हैं,
इसका वो स्वरूप नहीं जब ये अपना स्थान छोड़
नए कोपल के लिए खुशी खुशी सुख कर
वृक्ष से अलग हो जाता है,
आंधी में उड़ता, इधर से उधर भटकता
फिर की झाड़ू के नीचे आ किसी कचरे के
ढेर में फेंक दिया जाता है, कमाल की बात है न,
कल तक अपनी हरियाली से 
सब की आँखों में चमकने वाला ये पत्ता,
आज सुख जाने के बाद नजरअंदाज कर
दिया गया है...
चिंता है तो आशा भी स्वभाविक
 इसी जीवनचक्र में 
बुंदाबून्दी की सावन से
हरिमय होने का... 

राहुल प्रसाद

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