झारखण्ड में विख्यात जलप्रपात -हुंडरू & साक्षात समुद्री एहसास देता -गेतलसूद डैम


वन सम्पदा हमारी भारतीय सभ्यता और प्राचीन संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। वन सम्पदा वातावरण में उपलब्ध धुआँ, धूलकण, कार्बन, सीसा, कार्बन .....को शुद्ध कर हमें जीने योग्य वायु देता है ...
जमीन को कटाव से रोकता है जीससे कृषि में मदद एवं ताल में संगृहत जल सिचाई एवं बिजली उत्पादन का काम आता है....इस तरह से कीमती लकड़ी , बिभिन्न प्रकार के मिनरल्स  जड़ीबूटी, दवा...



जैसा की आप जानते है की झारखण्ड वन सम्पदा से एक परिपूर्ण राज्य है, इस तथ्य का प्रमाण यहाँ हर जगह मौजूद है। आप जिधर भी जाएंगे देखेंगे हरियाली पहाड़ ताल बांध ।

चारो ओर से ऊँचे-ऊँचे वनों से घिरे और हरियाली से ढके पहाड़ों के बीच यह विशाल जलराशि वाला तालाब
 "गेतलसूद "
साक्षात समुद्री एहसास देता प्रतीत होता है।
बता दु की जब राँची से 45 km दूर स्थित हुंडरू जलप्रपात के लिए रवाना होते है तो सड़क के दोनों किनारों में लंबी घनी साल के बृक्षों को पार करते समय ही ये सुहानी हवाओ से एहसास होने लगता है कि कही आस पास में कोई समुंदर है। दरसल यह एहसास स्वर्ण रेखा नदी पर स्थित विशाल गेतलसूद बांध का मनोरम दृश्य होता है...और हुंडरू से  वापस आते समय ये तालाब का दृश्य तो और भी मनमोहक हो जाता है लालमय जल से साफ प्रतीत होता है कि दिन भर थके हारे सूर्य यही पर विश्राम कर रहा हो जैसे कि एक बच्चा को माँ के लाल आँचल में  सुकून मिले।
इस बांध को देखते ही प्रतीत होता है कि आसपास कोई घने जंगल है क्योंकि हरिमय हुए आकाश ऊँची ऊँची पर्वतों से टकरा रही दरअसल
यहा से 18 km दुर घने जंगल स्थित हुंडरू जलप्रपात है
 बड़े बड़े घने साल सखुआ सागवान के छाव के बीच जाती हुई सड़क और सरपट दौड़ती पर्यटको की गाड़ियां हुंडरू और जोन्हा फॉल की तरफ जाती है।(हुंडरु से जोन्हा फॉल 20 km दूरी पर है)
झारखण्ड के अधिकतर जलप्रपातों के चारों ओर मुख्यतः पलास साल सागवान  के जंगल पाए जाते हैं। हुंडरू फॉल झारखण्ड के सबसे बड़े जलप्रपातों में से एक है और इसकी ऊंचाई करीब 320 फ़ीट है। वैसे झारखण्ड का सबसे ऊँचा प्रपात नेतरहाट से 70 किमी दूर स्थित लोध फाल्स है,लेकिन दुर्गम होने के कारण वह अधिक प्रसिद्द नहीं हो पाया है, हुंडरू ही झारखण्ड के सबसे ऊँचे प्रपात रूप विख्यात है। रांची के पास से निकलने वाली स्वर्णरेखा नदी जब उबड़-खाबड़ पठारी मार्गों से गुजरते हुए ओरमांझीनामक स्थान के आस-पास एक पहाड़ी से गिरती है, तब इस प्रपात का निर्माण होता है। ऊंचाई के मामले में हुंडरू देश का चौंतीसवाँ सबसे ऊँचा प्रपात है। 
                             फरवरी महीने में यहाँ भीड़ कोई खास तो नहीं  थी, फिर भी पर्यटकों की संख्या को नजरअंदाज नहीं किया सकता था। झारखण्ड का एक महत्वपूर्ण पर्यटन केंद्र होने के कारण यहाँ वाहन पार्किंग, प्रसाधन, जलपान वगैरह की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। प्रवेश टिकट के नाम पर पांच रूपये की मामूली फीस वसूली जाती है। दशमफाल की तरह ही यहाँ भी प्रपात के पास जाने के लिए हजारों सीढ़ियों से होते हुए नीचे जाना पड़ता है। बीच-बीच में कुछ स्थानीय बच्चे  , बैर जंगली फल,बांस और लकड़ी के बने कुछ कलाकृतियां बेचते हुए नजर आते हैं। अगर दस-बीस रूपये का भी कुछ इनसे खरीद लिया जाय, तो उनके चेहरे पर ख़ुशी स्पष्ट झलक आती है। 
नीचे तक पहुंचने में लगभग 20 मिनट का वक़्त लगा, वापस चढ़ने में भी निश्चित रूप से इससे अधिक वक़्त लगेगा। जलप्रपात की धारा अभी कुछ मध्यम सी थी, फिर भी नज़ारे सुंदर थे। जिस स्थान पर पानी की धारा गिरती है, वहां एक छोटे से प्राकृतिक तरण -ताल का निर्माण हो गया है, जिसमें डुबकी भी लगाया जा सकता है। अगर आप थक गए हों तो लकड़ी के बने एक छोटे से झोपडी में आराम फरमाते हुए प्रपात का आनंद ले सकते हैं। एक बात यहाँ अच्छी लगी की हुंडरू अधिक ऊँचा होने के बावजूद दशमफाल जैसा खतरनाक नहीं है। दशमफाल में आये दिन अनेक दुर्घटनाओं की खबरें आती रहती हैं। 
                कुछ घंटों की मस्ती और फोटोग्राफी कर फिर से ऊपर चढ़ने का वक़्त आ गया। इस बार चढ़ने में 30 मिनट का वक़्त लगा। नीचे से ऊपर तक पिकनिक स्पॉट है मगर Dj वाले लोगो  को ऊपर में ही मस्ती है।
हुंडरू की हसी वादियो में  सुकून ही सुकून है।
@राहुल प्रसाद

हुंडरू के साथ बिताये पलों को याद करते हुए अब वापस घर की ओर.... 
हुंडरू फॉल की कुछ लम्हे












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