कितना कुछ बदल गया है...कविता


कितना कुछ बदल गया है...न!
 (Corona Times, ~Rahul Prasad) 
शहर में कभी तारे नही दिखा
अब रातो को वही जगमगाये हुए है।

मुनसिपल,रोज टनों लीटर पानी उड़ेला...
पर पेड़... रुठे, ठुठे पीले ही रहे 
आज हरीभरी छाव लिए मुस्कुराते नजर आते है।

समंदर जो फेकता था
दुरतलक खरा उमस लहर
अब भेजती है नर्म हवा... पूरा शहर।

धूल धुओ से दबी फूल,
पंखुड़िया पसार ली और
महकाने लगी है बगिया चौराहे।

सड़ाँध हवा...अब स्वच्छ और शांत 
हमारे साथ साथ चलती है।

बिलीचिंग से नही गंधाता घर ....
नदियां साफ सरपट नलों में दौड़ रही।

सड़को पर पसीना आते है
पराबैगनी, बदन नही जलाता अब।

बंदर कब्जा लिया है पुराना बसेरा 
घोंसले टिकते नही थे कही अब
फल चखते... पंक्षियां चहचहाने लगी है।

हिसाब किताब में जिंदगी को उलझाया मनुष्य, बैंक में लंबी कतारें नही लगाता।

डगर डगर ट्रैफिक बतियों पर 
नजरे गड़ाना जरूरी नही 
और जोर लगाके बोलना सुनना भी नही पड़ता।

आसमान भी पहले जैसा नहीं रहा 
इतना साफ जैसे आइने में दिखते हैं हम।

◆राहुल प्रसाद◆

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