भारतीय अंचल(ग्राम) के नग्न यथार्थ से जुड़ा है मैला आँचल (फणीश्वरनाथ रेणु)

कुछ अतिमहत्वपूर्ण और सार्थक शब्दों, जैसे फेमिनिज्म, सोसिलजम, सेक्युलरिज्म, सामंतवाद(शोषण), उदारवाद, राष्ट्रवाद का जितना दुरुपयोग भारत मे हुआ उतना कहीं  नही होगा । यहाँ हर वाद का सिर्फ अतिवाद होता है जिस से समस्या सुलझने के बजाय और उलझ जाती है । इसका एक ही कारण है लोग समझ ही नही पा रहे क्या हो रहा इस बाजारवाद में....

शायद यही तो भारत के आजादी से(1948) शोषित चीखते चिल्लाते रोते गाते हुए- मैला आँचल की पन्ने कह रही है हमें
समझो तो सही...हम (गांव)ही भारत है ।

मैला आँचल मेरी पसंदीदा उपन्यास में से एक है जिसे पूरी तरह से पढ़कर समझा और खुशी महसूस हुआ।

एक बात बोलू
मैला आँचल के पात्रों में बहुत बार उलझे तभी हम समझे  कि
मैला आँचल धुंध की तरह है 
और धुँध भी एक रंग है ,
जिसके पीछे सब रंग छुपे रहते हैं

Rahul Prasad

स्वंतत्रता प्राप्ति के समय भारत के ग्रामीण अंचलों का ऐसे ही सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक यथार्थ था जिसे उपन्यासकार ने अनुभव जगत् की प्रामाणिकता, सूक्ष्म पर्यवेक्षण और गरीब संवदेना के साथ प्रस्तुत किया है। 
मैला आँचल' हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को ...
 (बिहार के पूर्णिया जिलेे के मेरीगंज) के ग्रामीण इलाकों के लोगो की संघर्ष वर्णन है। लेकिन ये पूरे भारत के ग्रामीण चित्रण दिखता है ।
इस उपन्यास में तो 250 के लगभग  पात्र परन्तु नायक आँचल ही है क्योंकि सभी पात्रों को सम्मलित करके जो ब्यक्तित्व उभरता है वही ग्रामीण लोगो की चित्ररेखा, मानसिकता एवं समस्या नजर आता है।
12 जाती के लोग है गांव में  3 प्रमुख टोली है , 15 पढ़े है, गरीबी भुखमरी, ब्याज पर पैसे लेने, अशिक्षा ,शोषण मजबूर दलित महिला एवं मजदूर, संथाल , पूर्व में कमला नदी,  गुलाम आजाद भारत का परिदृश्य 25 लोकसंगीत मैथली.भोजपुरी मगही में.....गांधी जी के चर्चे..इत्यादि
वैसे कुछ प्रमुख पात्र है --
विश्वनाथ प्रसाद - शातिर चापलुस तहसीलदार जो शोषक जमीन हड़पता है बाद में लोगो को जाती के नाम पर लड़ाकर वोट से  कांग्रेस का नेता भी बनता है ,क्रूर ,जो गांधीवादी विचार को कुचल देता है। शराबखाना, जुआअड्डा...और भी कई असमाजिक तत्व फैलाता है।
बावन दास-कोंग्रेस के नेता जो मेरीगंज जाता है समीक्षा लेने परन्तु गांधीवादी के कोंग्रेस के राहों को से भटकता देख आवाज उठाते  है तभी गाड़ी से कुचलकर तालाब में फेंक दिया जाता है।

बालदेव- कांग्रेस के गांधीवादी नेता है अहिंसा सत्य में  विश्वास करता है परंतु मानवीय कमजोर है क्योंकि कूटनीति एवं चापलूसी पुंजिपतियो के छदम कोंग्रेसी शामिल लोगों को सपोर्ट कर देता है जिससे बिस्वनाथ प्रसाद नेता चुना जाता है यानी कि बिस्वनाथ बलदेव को मिला लेता है।

दूसरा तहसीलदार - हरगौरी(जमींदार रामकृपाल के बेटे) ये भी मजदूरों को शोषन करता है साथ ही जमीन हड़पता है परंतु बिस्वनाथ जैसा शातिर नही ।

सेवादास-कबीर मठ के महंत जो लक्ष्मी धर्म के आड़ में वर्षो से लगातार संभोग शोषण प्रताड़ित ।

#तांत्रिक टोली की दलित महिला (सनजू की माँ) जो औरतों को खुले रहने में विश्वास करती क्योंकि शरीर का कोई महत्व नही चुकी बड़े बाबू /जमींदार आकर सेक्स और पडताडित करके चले जाते थे। फुलिया भी वैसे ही गई थी शोषण की आदत में मजबूर होकर।

कालीचरण- पिछड़ी जाति के निडर एवं खुलके समाज सेवा भावना वाले व्यक्तिव, जो सभी ग्रामीण को एकजुट करता है आंदोलन के लिए प्रेरित।आत्मविश्वास से लबरेज है लोकतंत्र में बिशवास है सफल बजी होता है
अंत मे विश्वनाथ सभी को 5- 10 बीघा जमीन देता है...(इस उपन्यास के थोड़ा कमजोर पहलू हमे यही लगा कि बिस्वनाथ जैसे क्रूर ब्यक्ति का दयालु दिखाना सही नही क्योंकि  ऐसे लोग ही समाज को खोखला किए है)

 -डॉक्टर प्रशांत --आदर्श, क्योंकि ये विदेशों से नौकरी ठुकराकर अपने  समाज की सेवा करना चाहते है।वैसे मलेरिया एवं कालाजार के लिए शोध करने आते है परंतु गांव में घुलमिल जाते है तभी इन्हें समाज के दो ही रोग का पता चलता है ..गरीबी एवं शोषण। साथ ही इन्हें तहसीलदार की बेटी कमली से प्रेम भी होता है परंतु उसके पिता की कुरूतियो से वाकिफ है इसलिए दूरी बनाए रखते है परंतु कमली की डॉक्टर प्रशांत पर   धन का लालच दे कर बनाया गया दबाव समाज मे ऊँचे लोगो के घर मे स्त्रियों की मानसिकता दिखाए है रेणु जी।

विश्लेषण
 @स्वतंत्रता के तुरंत बाद के भारत के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिदृश्य का ग्रामीण संस्करण है।  इसमें फूल भी है, शूल भी है, धूल भी है, गुलाब भी है और कीचड़ भी है। मैं किसी से दामन बचाकर निकल नहीं पाया। इसमें गरीबी, रोग, भुखमरी, जहालत, धर्म की आड़ में हो रहे व्यभिचार, शोषण, बाह्याडंबरों, अंधविश्वासों आदि का चित्रण है।
रेणु जी सलाम है आपको आपने 1948 का सच  लिखा है वो आज भी ज्वंलत मुदा है।
जमींदार/धनकुबेरों का धाक, राजनेता का दोहरी मानसिकता  , जातिवाद /भाषा/क्षेत्रो का बिछाया हुआ भरम जाल  , धर्म की आड़ में छद्म भेष बाबा करते शोषण, पैसे के पर्दे में होता स्त्री का शोषण,  पावर का धौस जमाकर करते असहाय लड़कियो का शोषण/ जमीन जायदाद हड़पना ,गरीबो से बंधुआ मजदूरी, दलित मजदूर का शोषण  के साथ साथ लड़ाना भेद डालना , बढ़ते शराबखाना/जुए के अड्डेबाजी, बढ़ते तवायफखाना दूसरे तरफ प्रेम पर पहरा,
सरकारी कर्मचारी(तहसीलदार के माध्ययम से दिखाया) का भ्रटाचार एवं गलत नीति बनाकर ..ठेकेदारों बाहुबलियों तथा पुंजिपतियो के हाथों देश को  बेचने का काम चल रहा है ...एवं दूसरी तरफ  कुछ अच्छे लोग जो  समाज के लिए अच्छा करना चाहते है / इस कुरीति के विरुद्ध बोलते है तो उन्हे प्रताड़ित कर मार दिया जाता है ।
.इन सब पर #रेणु जी ने  बहुत बेबाकी से चित्रण किया है।
सचमुच
रेणु जी ने यह साफ कर दिया है कि उपन्यास ही समाज का दर्पण है।
ये मेरी एक छोटी कोशिश थी समीक्षा विधा सिखने का .

रेणु जी की इस बेहतरीन  रचना#समय निकालकर कभी पढ़िए जरूर..आजादी के बाद के भारत के मिजाज को व्यक्त करने वाला यह पहला आंचलिक उपन्यास है-..




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