वही कमरा ! Touchy Story
कुछ कहानियां मनोरंजन से किनारा कर के सिर्फ इसलिए लिखी जाती हैं कि उसे पढ़ कर समझा जाए, जो गलतियां हुईं वो दोहराई ना जाएँ । आप भी पढ़िए इसे और देखिए कहीं अनजाने में आप भी कोई ऐसी ही गलती तो नहीं कर रहे ।
वही 13 नम्बर का कमरा!!!
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यह कहानी मध्ययमवर्गीय युवक की है. वह घर की एकलौता लाडला युवक पढ़ने के लिए गांव से शहर आया. कुछ समय बाद उसको अच्छी नौकरी मिल गयी.
इसी दौरान उसके कई भी दोस्त बन गए. इनमें से एक दोस्त का घर रास्ते में ही पड़ता था। दोनों ऑफिस साथ -साथ जाया करते थे।
वक़्त बीतता गया, काम चलता रहा फिर प्यार भी हुआ और शादी भी।
। अब उसे नौकरी में भी तरक्की मिल गयी थी. तनख्वाह भी अच्छी खासी हो गयी थी. वह बहुत खुश था।
आज उसका जन्म दिन है. वह आज बहुत प्रसन्न है. ऑफिस में लोगों ने जन्म दिन की बधाइयाँ दी. शाम को ऑफिस से छूटते ही अपने दोस्तों को साथ ले शहर के एक बड़े होटल में जबरदस्त पार्टी की..पार्टी समाप्त होते ही सारे दोस्त अपने-अपने घर चले गए गए।
वह यवक यहाँ आकर इतना घुल-मिल गया कि उसे आपने माँ का जरा भी ख्याल नहीं आया. गांव में
माँ ने अपने बेटे के लिए मंदिर जाकर पूजा की. ईश्वर से अपने बेटे की लंबी उम्र की कामना की..उसे 6 वर्ष गुजरे पति की याद आ तो रही थी मगर आस तो जीवित बेटे पर रहेगा न!
बूढ़ी मा सुनसान घर में उसपर आस लगाए बैठे थे कि शहर से उनका बेटा आएगा तो सब मुश्किल हल हो जाएगी।लेकिन वह सब भूल गया था. उसे बीबी के साथ घूमना, पार्टी करना, शॉपिंग करना पर यह करने के लिए उसे समय था, लेकिन अपने घरं की ओर कभी ध्यान ज्ञान ही नहीं गया...कभी कभी याद आया भी तो बीबी की सेवा में ब्यस्तता से धीरे धीरे घर को भूल ही गया था।
पैसों से घर खरीदा, कार ख़रीदी, एक बार भी अपने मा और रिस्तेदारो को बुलाना उसने जरुरी नहीं समाझा। ऐशो आराम की सारी चीजें खरीदी, सब कुछ पा लिया।
एक बार वह टाइफाइड से पीड़ित था बीबी भी 2दिन अस्पताल में साथ रही थी सारे चीजो को इंतजाम करा के घर चली गयी थी। अचानक रात में उसे बहुत दर्द हो रहा था वैसे भी टाइफाइड से शरीर टूटना बर्दास्त नही होता।
रात भर माँ मा चिलाते रहा। सुबह माँ को कॉल किया
बेटे की आवाज सुनते ही माँ की आत्मा में थोड़ी ठंडक तो मिली मगर टाइफाइड सुनते ही बहुत परेशान हो गई और
उसी दिन अस्पताल पहुच गई।
अगले 2 दिन में उसका बेटा ठीक हो गया और फिर से अपनी माँ की सेवा त्याग देख माँ को अपने साथ घर मे रखने का निर्णय लिया।
बहुत खुशनसीब है वो जो रोज एक पहर का खाना अपनी माँ और पत्नी के साथ खाते है।
कुछ दिन तक साथ रही बुढ़ी माँ अपने बेटे को कीचन में देखना रहा नही जाता जितनी काया चलती वो करती गई
फिर क्या यही आदत बन गई। बहु की बाते खुद सुन लेती थी पर एक दिन बेटे का शोषण सहा नही गया बहु को उसी के भाषा मे जबाब दे गई।
अब क्या होना था ! मामला यहाँ पर आ गया बूढ़ी को घर में नही रहेगी वरना बीबी तलाक दे देगी।
इस उलझन को देख मा ने कहा बेटा मेरी वजह से तू उदास ना हो मैं गाँव वापस जा रही हु वैसे भी साल दो साल में ऊपर तो जाना ही है। बेटा अपनी माँ के उम्र देखकर दूसरा उपाय सुझा कही इसी शहर में रखे और कभी कभी बीबी से चुपके मिल भी ले। बीबी से सलाह मशवरा किया तभी बीबी ने उसे एक शेल्टर के बारे में बताई जिसमें यतीम बच्चे बूढ़े रहा करते थे।
माँ भी उस शेल्टर का नाम सुन खुश हो गई और खुशी खुशी रहने को राजी भी।
दूसरे दिन बीबी बेटे और माँ बड़ी कार से पहुचे ये देख वहा के लोगो नो सलाम नमस्ते किया मा बेटे को।
फिर मा को रखने के लिए बेटे औऱ बहु ने 13 नम्बर का कमरा पसन्द किया..वापस संचालक से बात करने आया!
तभी माँ और संचालक के बीच वार्तालाप देखकर बेटे ने टोका आपलोग एक दूसरे को जानते है क्या???
तभी संचालक ने कहा इनको 23 वर्षो से जानता हूं
और आपको 27 वर्षो से
वो कैसे??
बेटे जिस कमरे में आप गए थे!
आज से 23वर्ष पहले....
वही 13 नम्बर के कमरे से इन्होंने गोद लिया था आपको!!!!
उस समय आप सबसे कमजोर लड़के थे इस यतीमखाने का औऱ कुष्ट रोग से पीड़ित थे.
हम समझ सकते है बहुत परिश्रम की होगी आपकी माँ आपको पालने के लिए।
बहुत भले औऱ जिंदादिली इंसान है आपकी माँ!!
*************
मेरी उंगली सुन्न हो गया इससे आगे मेरी कलम नही चल सकती।
इस सच्ची कहानी को sbi अधिकारी 2दिन पहले ही लंच करते वक्त बताये थे। (जब बेटे ने वर्षो बाद घर आया तो मा का कंकाल पाया के न्यूज़ पर )
उस वक्त मैं सुन्न हो गया था फिर मैडम खाना जारी रखते हुए कहा,
समय के साथ साथ रिश्तों की संवेदनशीलता बदल रही है, संबंधों के बीच नि:स्वार्थ प्रेम और भारतीय परिवार की परम्परा का मजबूत किला धीरे धीरे ढहने लगा है। देश में बुजुर्ग मॉं-बाप के प्रति बेटा-बहुओं का व्यवहार और बृद्धाश्रम में दिन काटते तिरस्कृत जीवों की कहानी आप न्यूज़ में रोज पढ़ते होंगें
आज प्रतिभावान युवा वर्ग का पलायन तो हो रहा है, आस-पड़ोस, दूर ही दराज के क्षेत्रों में भी युवा वर्ग बेरोजगारी की मार से बचने के लिए दूसरे राज्यों और विदेशों की ओर पलायन कर रहा है। इसके लिये किसे दोष दें... आर्थिक उदारीकरण, बाजारवाद, उपभोक्तावादी संस्कृति, कौन जिम्मेदार है...?
सर ने कहा ’नहीं, मेडम! सिर्फ भारतीय परिवार नहीं सारा संसार इस दर्द से अछूता नहीं बचेगा, संवेदनाहीन समाज में भावनाहीन किन्तु, हाड़ मांस के चलते फिरते रोबोट ही रह जायेंगे..।
राहुल इतने भावुक सही नही खाना खाओ! मैडम बोली
इतने में सर बोल ही दिए राहुल घर से 2000km दूर रहता है माँ की याद आ रही होगी इसको।
मेरी ऑखे अपने आप मुंदने लगी... पर मैने खुले रखते कहा-
मानवीय मूल्यों का विनाश समस्त मानवजाति को अंधेरों की ओर खींच ले जायेगा... दुख इस बात का है सर!
मेरे मन में असंख्य प्रश्न नागफनी की तरह उग आये थे, जिनकी चुभन मेरी चेतना को लहूलुहान कर रही थी। युवा वर्ग का इस तरह परदेशी होना... परिवार, समाज और देश के लिये कितना भयावह है, असंख्य असहाय जर्जर वृद्ध स्त्री पुरूषों वाला भारत तब किस दिशा में कैसे और कितनी प्रगति कर सकेगा...?
ये कहानी साबित करता है-
"लहू का रंग सफेद होने लगा है!!
*******************
बचपन में जो मांयें अपने बच्चों को बिना खीजे एक ही बात सौ बार बतातीं हैं। बच्चों की बेबकूफी भरी बातो को हँसकर सुनती हैं, उनकी जिज्ञासा शांत करतीं हैं। वही बच्चे बड़े होने पर माँ की बातों से बोर होते हैं। उन्हें बीबी की बातें अच्छी लगती हैं। माँ की बातें सुनना उन्हें पसंद नहीं। भूल जाते हैं उन माँ-बाप के सारे अहसानों को जिन्होंने अपने बच्चे की सलामती के लिये न जाने कितने मंदिरों, मस्जिदों, चर्चांे में दुआयें मांगी। न जाने कितने मंदिरों में दिये जलाये अपने घर के आँगन में एक दीप जलाने के लिये। क्या उन्हें मालूम होता है कि एक दिन यही दीप उन्हें जलायेगा। खुद कष्ट सहे पर बच्चों पर दुःख की छाया भी न पड़ने दी बच्चों की राहों में फूल ही बिछाते रहे। वही बच्चे बड़े होकर आज अपने माँ-बाप के लिये जहर उगल रहे हैं। भले ही आज हम हर क्षेत्र में प्रगति कर रहे हों पर नैतिकता के क्षेत्र में तो हमारा पतन ही हो रहा है
राहुल प्रसाद -"आधा सा लेखक"
सुनिए!
पैसा अच्छा जीवन जीने के लिए आवश्यक है लेकिन माँ, बाप या अन्य कोई रिश्ता भी बहुत जरुरी होता है. कमाने के पीछे रिश्तों को गवाना बेबकूफी है.....
वही 13 नम्बर का कमरा!!!
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यह कहानी मध्ययमवर्गीय युवक की है. वह घर की एकलौता लाडला युवक पढ़ने के लिए गांव से शहर आया. कुछ समय बाद उसको अच्छी नौकरी मिल गयी.
इसी दौरान उसके कई भी दोस्त बन गए. इनमें से एक दोस्त का घर रास्ते में ही पड़ता था। दोनों ऑफिस साथ -साथ जाया करते थे।
वक़्त बीतता गया, काम चलता रहा फिर प्यार भी हुआ और शादी भी।
। अब उसे नौकरी में भी तरक्की मिल गयी थी. तनख्वाह भी अच्छी खासी हो गयी थी. वह बहुत खुश था।
आज उसका जन्म दिन है. वह आज बहुत प्रसन्न है. ऑफिस में लोगों ने जन्म दिन की बधाइयाँ दी. शाम को ऑफिस से छूटते ही अपने दोस्तों को साथ ले शहर के एक बड़े होटल में जबरदस्त पार्टी की..पार्टी समाप्त होते ही सारे दोस्त अपने-अपने घर चले गए गए।
वह यवक यहाँ आकर इतना घुल-मिल गया कि उसे आपने माँ का जरा भी ख्याल नहीं आया. गांव में
माँ ने अपने बेटे के लिए मंदिर जाकर पूजा की. ईश्वर से अपने बेटे की लंबी उम्र की कामना की..उसे 6 वर्ष गुजरे पति की याद आ तो रही थी मगर आस तो जीवित बेटे पर रहेगा न!
बूढ़ी मा सुनसान घर में उसपर आस लगाए बैठे थे कि शहर से उनका बेटा आएगा तो सब मुश्किल हल हो जाएगी।लेकिन वह सब भूल गया था. उसे बीबी के साथ घूमना, पार्टी करना, शॉपिंग करना पर यह करने के लिए उसे समय था, लेकिन अपने घरं की ओर कभी ध्यान ज्ञान ही नहीं गया...कभी कभी याद आया भी तो बीबी की सेवा में ब्यस्तता से धीरे धीरे घर को भूल ही गया था।
पैसों से घर खरीदा, कार ख़रीदी, एक बार भी अपने मा और रिस्तेदारो को बुलाना उसने जरुरी नहीं समाझा। ऐशो आराम की सारी चीजें खरीदी, सब कुछ पा लिया।
एक बार वह टाइफाइड से पीड़ित था बीबी भी 2दिन अस्पताल में साथ रही थी सारे चीजो को इंतजाम करा के घर चली गयी थी। अचानक रात में उसे बहुत दर्द हो रहा था वैसे भी टाइफाइड से शरीर टूटना बर्दास्त नही होता।
रात भर माँ मा चिलाते रहा। सुबह माँ को कॉल किया
बेटे की आवाज सुनते ही माँ की आत्मा में थोड़ी ठंडक तो मिली मगर टाइफाइड सुनते ही बहुत परेशान हो गई और
उसी दिन अस्पताल पहुच गई।
अगले 2 दिन में उसका बेटा ठीक हो गया और फिर से अपनी माँ की सेवा त्याग देख माँ को अपने साथ घर मे रखने का निर्णय लिया।
बहुत खुशनसीब है वो जो रोज एक पहर का खाना अपनी माँ और पत्नी के साथ खाते है।
कुछ दिन तक साथ रही बुढ़ी माँ अपने बेटे को कीचन में देखना रहा नही जाता जितनी काया चलती वो करती गई
फिर क्या यही आदत बन गई। बहु की बाते खुद सुन लेती थी पर एक दिन बेटे का शोषण सहा नही गया बहु को उसी के भाषा मे जबाब दे गई।
अब क्या होना था ! मामला यहाँ पर आ गया बूढ़ी को घर में नही रहेगी वरना बीबी तलाक दे देगी।
इस उलझन को देख मा ने कहा बेटा मेरी वजह से तू उदास ना हो मैं गाँव वापस जा रही हु वैसे भी साल दो साल में ऊपर तो जाना ही है। बेटा अपनी माँ के उम्र देखकर दूसरा उपाय सुझा कही इसी शहर में रखे और कभी कभी बीबी से चुपके मिल भी ले। बीबी से सलाह मशवरा किया तभी बीबी ने उसे एक शेल्टर के बारे में बताई जिसमें यतीम बच्चे बूढ़े रहा करते थे।
माँ भी उस शेल्टर का नाम सुन खुश हो गई और खुशी खुशी रहने को राजी भी।
दूसरे दिन बीबी बेटे और माँ बड़ी कार से पहुचे ये देख वहा के लोगो नो सलाम नमस्ते किया मा बेटे को।
फिर मा को रखने के लिए बेटे औऱ बहु ने 13 नम्बर का कमरा पसन्द किया..वापस संचालक से बात करने आया!
तभी माँ और संचालक के बीच वार्तालाप देखकर बेटे ने टोका आपलोग एक दूसरे को जानते है क्या???
तभी संचालक ने कहा इनको 23 वर्षो से जानता हूं
और आपको 27 वर्षो से
वो कैसे??
बेटे जिस कमरे में आप गए थे!
आज से 23वर्ष पहले....
वही 13 नम्बर के कमरे से इन्होंने गोद लिया था आपको!!!!
उस समय आप सबसे कमजोर लड़के थे इस यतीमखाने का औऱ कुष्ट रोग से पीड़ित थे.
हम समझ सकते है बहुत परिश्रम की होगी आपकी माँ आपको पालने के लिए।
बहुत भले औऱ जिंदादिली इंसान है आपकी माँ!!
*************
मेरी उंगली सुन्न हो गया इससे आगे मेरी कलम नही चल सकती।
इस सच्ची कहानी को sbi अधिकारी 2दिन पहले ही लंच करते वक्त बताये थे। (जब बेटे ने वर्षो बाद घर आया तो मा का कंकाल पाया के न्यूज़ पर )
उस वक्त मैं सुन्न हो गया था फिर मैडम खाना जारी रखते हुए कहा,
समय के साथ साथ रिश्तों की संवेदनशीलता बदल रही है, संबंधों के बीच नि:स्वार्थ प्रेम और भारतीय परिवार की परम्परा का मजबूत किला धीरे धीरे ढहने लगा है। देश में बुजुर्ग मॉं-बाप के प्रति बेटा-बहुओं का व्यवहार और बृद्धाश्रम में दिन काटते तिरस्कृत जीवों की कहानी आप न्यूज़ में रोज पढ़ते होंगें
आज प्रतिभावान युवा वर्ग का पलायन तो हो रहा है, आस-पड़ोस, दूर ही दराज के क्षेत्रों में भी युवा वर्ग बेरोजगारी की मार से बचने के लिए दूसरे राज्यों और विदेशों की ओर पलायन कर रहा है। इसके लिये किसे दोष दें... आर्थिक उदारीकरण, बाजारवाद, उपभोक्तावादी संस्कृति, कौन जिम्मेदार है...?
सर ने कहा ’नहीं, मेडम! सिर्फ भारतीय परिवार नहीं सारा संसार इस दर्द से अछूता नहीं बचेगा, संवेदनाहीन समाज में भावनाहीन किन्तु, हाड़ मांस के चलते फिरते रोबोट ही रह जायेंगे..।
राहुल इतने भावुक सही नही खाना खाओ! मैडम बोली
इतने में सर बोल ही दिए राहुल घर से 2000km दूर रहता है माँ की याद आ रही होगी इसको।
मेरी ऑखे अपने आप मुंदने लगी... पर मैने खुले रखते कहा-
मानवीय मूल्यों का विनाश समस्त मानवजाति को अंधेरों की ओर खींच ले जायेगा... दुख इस बात का है सर!
मेरे मन में असंख्य प्रश्न नागफनी की तरह उग आये थे, जिनकी चुभन मेरी चेतना को लहूलुहान कर रही थी। युवा वर्ग का इस तरह परदेशी होना... परिवार, समाज और देश के लिये कितना भयावह है, असंख्य असहाय जर्जर वृद्ध स्त्री पुरूषों वाला भारत तब किस दिशा में कैसे और कितनी प्रगति कर सकेगा...?
ये कहानी साबित करता है-
"लहू का रंग सफेद होने लगा है!!
*******************
बचपन में जो मांयें अपने बच्चों को बिना खीजे एक ही बात सौ बार बतातीं हैं। बच्चों की बेबकूफी भरी बातो को हँसकर सुनती हैं, उनकी जिज्ञासा शांत करतीं हैं। वही बच्चे बड़े होने पर माँ की बातों से बोर होते हैं। उन्हें बीबी की बातें अच्छी लगती हैं। माँ की बातें सुनना उन्हें पसंद नहीं। भूल जाते हैं उन माँ-बाप के सारे अहसानों को जिन्होंने अपने बच्चे की सलामती के लिये न जाने कितने मंदिरों, मस्जिदों, चर्चांे में दुआयें मांगी। न जाने कितने मंदिरों में दिये जलाये अपने घर के आँगन में एक दीप जलाने के लिये। क्या उन्हें मालूम होता है कि एक दिन यही दीप उन्हें जलायेगा। खुद कष्ट सहे पर बच्चों पर दुःख की छाया भी न पड़ने दी बच्चों की राहों में फूल ही बिछाते रहे। वही बच्चे बड़े होकर आज अपने माँ-बाप के लिये जहर उगल रहे हैं। भले ही आज हम हर क्षेत्र में प्रगति कर रहे हों पर नैतिकता के क्षेत्र में तो हमारा पतन ही हो रहा है
राहुल प्रसाद -"आधा सा लेखक"
सुनिए!
पैसा अच्छा जीवन जीने के लिए आवश्यक है लेकिन माँ, बाप या अन्य कोई रिश्ता भी बहुत जरुरी होता है. कमाने के पीछे रिश्तों को गवाना बेबकूफी है.....
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