5रुपैया वाली मेंटल

बैंक वालो को बस दो ही समय चैन मिलता है। 30 दिन के मथोपच्ची वाली मेहनत के बाद क्रेडिटेड सैलरी वाली सुबह और छुट्टी वाले दिन से पहले की रात।

अमेजन नेटफ्लिक्स के कंटेंट नही सोहाता मुझे कोशिश किए पर काल्पनिक बकैती व समय नष्टम महसूस हुआ,शायद इसकी एक वजह पहले से ही कई सारे नाटक उपन्यास पढ़ लेना हो।

फणीश्वर नाथ रेणु जी एक बेजोड़ कहानी पढ़ रहा पंचलाइट
कई बार अकेले खुद ही ठहाके...और अस्सी नब्बे दशक के पहले जैसे जीवन आनंद के लुफ्त न उठाने पाने की टीस!
यह कहानी रेणु जी ने सिर्फ #पंचलाइट को केंद्रित करके गांव कस्बे के भाईचारे एवं जीवन आनंद को दर्शाया है।

जो #खुद को जला कर दूसरों को रोशनी दे आज के दौर में उसे #मेंटल कहा जाता  हैं
...जबकि पहले  के दौर में इसको मेंटल कहा जाता था।

यह गांव में महज दो तीन ही  पाया जाता था इसे एक चालाक आदमी
केरोसिन तेल छिड़क कर जलाता था और उसे बच्चे बूढ़े सब चारो तरफ से घेरे होते थे जब तक आंगन गली भकाभक इंजोर न हो जाता। 5 रुपए की एक दो मेंटल पूरी रात बरात संभाल लेती।

आज का दौर में लोग यारी रिश्तेदार में जाने से पहले गरीबी अमीरी के हिसाब मिठाई की डब्बा पैक कराने लगे है...

वो दौर ही कुछ और था
मात्र एकबार कह देने से ही परिवार समेत फंक्सन में आ जाना, चुल्हा पर बनी शुद्ध षोंन तरह तरह के पाहुर पकवान निकाल स्नेहता से सबको खुद ही परोसना, सबो के बीच मे सुख दुख बतियाजना, खाना गाना नाचना और फंक्शन को यादगार💝

राहुल- मेंटल (बैंकर बाबू) मैंने जिया है #5रुपैया वाला मेंटल, गांव-देहात और पतल-भात ♥️

मुझे याद है सचमुच में  मड़वा-बारात,भोज-भात वाले दिन पंचलाइट को जलाने वाले का पाँव भारी रहता था जैसे आज डिस्को डीजे वाले बाबू का🙅

अंग्रेजी लोग पेट्रोमैक्स कहते है इसे...
आपके यहां क्या कहा जाता इसे?


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