श्रेष्ठ प्रेरणात्मक कविताएँ कॉपी पेस्ट
श्रेष्ठ प्रेरणात्मक कविताएँ -Motivational Poem
जब हताशा मन को घेर लेती है —तब अक्सर किसी और के कहे प्रेरणादायी शब्द हमारे लिए ऊर्जा और आशा के स्रोत का कार्य करते हैं। “नर हो न निराश करो मन को” जैसी पंक्तियों ने असंख्य मानवों के मन के अंधेरे हेतु सूर्य का काम किया है। मैंने 3 महीनो तक लगभग 200 कविताओं को पढ़ा है और कविता कोश के विशाल संग्रह से हम कुछ प्रेरणात्मक रचनाएँ चुनकर लाए हैं।
आशा है कि ये रचनाएँ इस संकलन के ज़रिए आशा का और प्रकाश फैलाएँगी। "राहुल प्रसाद "
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1
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
इधर उधर कई मंज़िल हैं चल सको तो चलो
बने बनाये हैं साँचे जो ढल सको तो चलो
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं तुम
अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो
यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिराके अगर तुम सम्भल सको तो चलो
यही है ज़िन्दगी कुछ ख़्वाब चन्द उम्मीदें
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो
हर इक सफ़र को है महफ़ूस रास्तों की तलाश
हिफ़ाज़तों की रिवायत बदल सको तो चलो
कहीं नहीं कोई सूरज, धुआँ धुआँ है फ़िज़ा
ख़ुद अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो
Nida.fazli
2 लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
जो बीत गई सो बात गई | |
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खुद से ही पूछता हूँ मैं,
खुद को कितना जानता हूँ मैं ?
चाहता तो हूँ मंदिर बनाना ,
पर क्या राम मेरे दिल में है?
चाहता तो हूँ मस्ज्जिद बनाना,
पर क्या रहमान मेरे दिल में है?
सुबह उठ कर मैंने ,
क्या राम को याद किया हैं कभी ?
सुन कर नमाज की अजान ,
क्या सजदे में सिर झुकाया हैं कभी?
बस चंद लोगों के कहने पर ,
सड़कों पर उतर आता हूँ मैं ।
राम कौन रहमान कौन ?
क्या उन्हें कभी समझ पाया हूँ मैं ?
खुद से ही पुछता हूँ अब,
खुद को क्या पहचानता हूँ मैं?
3-छिप-छिप अश्रु- गोपालदास नीरज
छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।
सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है।
माला बिखर गयी तो क्या है
खुद ही हल हो गयी समस्या
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है।
खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चांदनी
पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों!
चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।
लाखों बार गगरियाँ फूटीं,
शिकन न आई पनघट पर,
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल-पहल वो ही है तट पर,
तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों!
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।
लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,
तूफानों तक ने छेड़ा पर,
खिड़की बन्द न हुई धूल की,
नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है!
*****
4 हम को मन की शक्ति देना / गुलज़ार
दूसरो की जय से पहले, ख़ुद को जय करें।
भेद भाव अपने दिल से साफ कर सकें
दोस्तों से भूल हो तो माफ़ कर सके
झूठ से बचे रहें, सच का दम भरें
दूसरो की जय से पहले ख़ुद को जय करें
हमको मन की शक्ति देना।
मुश्किलें पड़े तो हम पे, इतना कर्म कर
साथ दें तो धर्म का चलें तो धर्म पर
ख़ुद पर हौसला रहें बदी से न डरें
दूसरों की जय से पहले ख़ुद को जय करें
हमको मन की शक्ति देना, मन विजय करें।
5
खुश हूं ।”जिंदगी है छोटी,” हर पल में खुश हूं
“काम में खुश हूं,” आराम में खुश हू”आज पनीर नहीं,” दाल में ही खुश हूं
“आज गाड़ी नहीं,” पैदल ही खुश हूं”दोस्तों का साथ नहीं,” अकेला ही खुश हूं
“आज कोई नाराज है,” उसके इस अंदाज से ही खुश हूं”जिस को देख नहीं सकता,” उसकी आवाज से ही खुश हूं
“जिसको पा नहीं सकता,” उसको सोच कर ही खुश हूं”बीता हुआ कल जा चुका है,” उसकी मीठी याद में ही खुश हूं
“आने वाले कल का पता नहीं,” इंतजार में ही खुश हूं”हंसता हुआ बीत रहा है पल,” आज में ही खुश हूं
“जिंदगी है छोटी,” हर पल में खुश हूं”अगर दिल को छुआ, तो जवाब देना”
“वरना बिना जवाब के भी खुश हूं.
7
मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती
बैठे-बिठाए पकड़े जाना बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता
कपट के शोर में सही होते हुए भी दब जाना बुरा तो है
जुगनुओं की लौ में पढ़ना
मुट्ठियां भींचकर बस वक़्त निकाल लेना बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता
सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना
सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना
सबसे ख़तरनाक वो घड़ी होती है
आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो
आपकी नज़र में रुकी होती है
सबसे ख़तरनाक वो आंख होती है
जिसकी नज़र दुनिया को मोहब्बत से चूमना भूल जाती है
और जो एक घटिया दोहराव के क्रम में खो जाती है
सबसे ख़तरनाक वो गीत होता है
जो मरसिए की तरह पढ़ा जाता है
आतंकित लोगों के दरवाज़ों पर
गुंडों की तरह अकड़ता है
सबसे ख़तरनाक वो चांद होता है
जो हर हत्याकांड के बाद
वीरान हुए आंगन में चढ़ता है
लेकिन आपकी आंखों में
मिर्चों की तरह नहीं पड़ता
सबसे ख़तरनाक वो दिशा होती है
जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए
और जिसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा
आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाए
मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती ।
8
कविता-साँसे
अनमोल है ये साँसें
चूकना मत ,
बहुत बार मौके मिले हैं
इस जन्म में मत चूकना ।
आती श्वांस में
नाचता जीवन
और जाती श्वांस में
हँसती
मौत को देख लेना।
आती साँस के
ताजे सवाल
और जाती साँस की
असहायता को
पढ़ लेना।
आती साँस के
अवसर और
जाती साँस की
थकान को जान लेना।
ये साँसे भी अपना
सब कुछ एक देह पर
निवेश कर देती है
इन साँसों को
कंगाल मत होने देना।
बहुत पीड़ा पाती है
ये साँसें ,
जब देह के
भीतर जाती है
और प्रार्थना की बजाय
वासना से
मुलाक़ात कर बैठती है।
स्वयं में असहाय
महसूस करती है ये
जब भीतर
परमात्मा की बजाय
अहंकार से
मुलाक़ात कर बैठती है।
गिनती की ही मिली है
ये साँसें।
इन गिनती की
साँसों से ही चेतना को
प्राण और
बल मिल रहा है,
देखना
और गहरे तक
गौर से देखना कि
अज्ञानता के गर्भ से
पोषित अहंकार
और वासना के हाथों
कहीं चेतना ,
पदार्थ पर ही
लुट ना जाए।
हर साँस की
कीमत का
अंदाजा लगा लेना।
देह से इसका नाता
टूटे उससे पहले ही
सूरती के धागे से
प्रभुता की कलाई पर
प्रेम का धागा
बाँध लेना।
बहुत अनमोल है
ये साँसें।
उसकी मर्जी से
मिलती है
बस अपनी ही
मर्जी से इन्हें
प्रदूषित ना कर देना।
कुंवारी मत जाने देना
और विधवा भी
मत होने देना ,
हर साँस
सुहागिन बने ऐसा
परम विवाह रचानाI
💐💐💐💐
क्यूँ होने दें | सलमान फ़हीम
ख़ुद को आख़िर इतना मजबूर क्यूँ होने दें,
जो मुक़द्दर में लिखा है बस वही क्यूँ होने दें।
हर जगह क्यूँ करें उस शख़्स को महसूस,
वो इंसान ही रहे उसे ख़ुदा क्यूँ होने दें।
आग ही सही पर यहाँ जलती रहे,
हम अपने दिल में अँधेरा क्यूँ होने दें।
रोज़ तस्वीर से उसकी क्यूँ मिलाएं आँखें,
एक ही हादसे को रोज़ क्यूँ होने दें।
पुराने खतों को उसके जला दिया है,
भर चुके ज़ख्मों को हरा क्यूँ होने दें।
बस एक लफ्ज़ ही रहे ज़िंदगी का मेरी,
उसके नाम को इसकी दास्ताँ क्यूँ होने दें।
अब इत्तेफ़ाक़न कभी कहीं मिल जाएगी तो,
पूछ लेंगे मोहब्बत से उसे दुबारा क्यूँ होने दें।
9
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..
हैं फ़ूल रोकते, काटें मुझे चलाते..
मरुस्थल, पहाड चलने की चाह बढाते..
सच कहता हूं जब मुश्किलें ना होती हैं..
मेरे पग तब चलने मे भी शर्माते..
मेरे संग चलने लगें हवायें जिससे..
तुम पथ के कण-कण को तूफ़ान करो..
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..
अंगार अधर पे धर मैं मुस्काया हूं..
मैं मर्घट से ज़िन्दगी बुला के लाया हूं..
हूं आंख-मिचौनी खेल चला किस्मत से..
सौ बार म्रत्यु के गले चूम आया हूं..
है नहीं स्वीकार दया अपनी भी..
तुम मत मुझपर कोई एह्सान करो..
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..
शर्म के जल से राह सदा सिंचती है..
गती की मशाल आंधी मैं ही हंसती है..
शोलो से ही श्रिंगार पथिक का होता है..
मंजिल की मांग लहू से ही सजती है..
पग में गती आती है, छाले छिलने से..
तुम पग-पग पर जलती चट्टान धरो..
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..
फूलों से जग आसान नहीं होता है..
रुकने से पग गतीवान नहीं होता है..
अवरोध नहीं तो संभव नहीं प्रगती भी..
है नाश जहां निर्मम वहीं होता है..
मैं बसा सुकून नव-स्वर्ग “धरा” पर जिससे..
तुम मेरी हर बस्ती वीरान करो..
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..
मैं पन्थी तूफ़ानों मे राह बनाता..
मेरा दुनिया से केवल इतना नाता..
वेह मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर..
मैं ठोकर उसे लगाकर बढ्ता जाता..
मैं ठुकरा सकूं तुम्हें भी हंसकर जिससे..
तुम मेरा मन-मानस पाशाण करो..
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..
⊙⊙⊙⊙⊙⊙⊙⊙⊙
गोपालदास "नीरज"
10 -कविता -मंजिल का सफर
हम मंजिल की तलाश में जीवन पर्यन्त भटकने को अपनी यात्रा समझते हैं जबकि मंजिल हर पल हमारे बगल से गुजरती है। कोई मंजिल हमारी यात्रा की पूर्णाहुति नही होती। अनवरत और अंतहीन यात्रा के लिए मंजिलों का सफर राह निर्देशक मात्र हो सकता है विराम का संवाहक नहीं। दरअसल मंजिल के पीछे भागना यात्रा नही होती है.
10
· कभी गम, तो कभी खुशी है ज़िन्दगी
कभी धूप, तो कभी छाँव है ज़िन्दगी . . . . . . .
विधाता ने जो दिया, वो अद्भुत उपहार है ज़िन्दगी
कुदरत ने जो धरती पर बिखेरा वो प्यार है ज़िन्दगी . . . . . .
जिससे हर रोज नये-नये सबक मिलते हैं
यथार्थों का अनुभव कराने वाली ऐसी कड़ी है ज़िन्दगी . . . . . .
जिसे कोई न समझ सके ऐसी पहेली है ज़िन्दगी
कभी तन्हाइयों में हमारी सहेली है ज़िन्दगी . . . . . . .
अपने-अपने कर्मों के आधार पर मिलती है ये ज़िन्दगी
कभी सपनों की भीड़, तो कभी अकेली है जिंदगी . . . . . . .
जो समय के साथ बदलती रहे, वो संस्कृति है जिंदगी
खट्टी-मीठी यादों की स्मृति है ज़िन्दगी . . . . . . . .
कोई ना जान कर भी जान लेता है सबकुछ, ऐसी है ज़िन्दगी
तो किसी के लिए उलझी हुई पहेली है ज़िन्दगी . . . . . . . .
जो हर पल नदी की तरह बहती रहे ऐसी है जिंदगी
जो पल-पल चलती रहे, ऐसी है हीं ज़िन्दगी . . . . . . . .
कोई हर परिस्थिति में रो-रोकर गुजारता है ज़िन्दगी
तो किसी के लिए गम में भी मुस्कुराने का हौसला है ज़िन्दगी . . . . . .
कभी उगता सूरज, तो कभी अधेरी निशा है ज़िन्दगी
ईश्वर का दिया, माँ से मिला अनमोल उपहार है ज़िन्दगी . . . . . . . .
तो तुम यूँ हीं न बिताओ अपनी जिंदगी . . . . . . . .
दूसरों से हटकर तुम बनाओ अपनी जिंदगी
दुनिया की शोर में न खो जाए ये तेरी जिंदगी . . . . . . .
जिंदगी भी तुम्हें देखकर मुस्कुराए, तुम ऐसी बनाओ ये जिंदगी
11******
याद रखना लहज़े की नर्मी बनी ही रहे
इमारतें बनती हैं बिगड़ती हैं ढह जाती हैं
ज़मी को कितना भी खोद लो पर ज़मी तो ज़मी ही रहे
हो मेहरबान खुदाया , रहमतों से नवाज़ता रहे तुमको
बस ख़याल रखना ग़ुरूर के ख़जाने में हमेशा कमी ही रहे
महल बनाना चाहे आसमाँ की ऊँचाई जितने
मगर दर छोटे ही रखना जो गर्दन हर वक्त तनी ना रहे
हर किसी को अपनी खूबसूरती पर घमण्ड होता है |
*
******12
मै आज
आपको खूबसूरती की परिभाषा बताता हूँ
खूबसूरत है वो लब...... जिन पर, दूसरों के लिए कोई दुआ आ जाए !!
खूबसूरत है ............वो दिल जो , किसी के दुख मे शामिल हो जाए !!
खूबसूरत है.......... वो जज़बात जो, दूसरो की भावनाओं को समझ जाए !!
खूबसूरत है........ वो एहसास जिसमें, प्यार की मिठास हो जाए !!
खूबसूरत है............. वो बातें जिनमें, शामिल हों दोस्ती और प्यार की किस्से कहानियाँ !!
खूबसूरत है.......... वो आँखे जिनमें, किसी के खूबसूरत ख्वाब समा जाए !!
खूबसूरत है .........वो हाथ जो किसी के, लिए मुश्किल के वक्त सहारा बन जाए !!
खूबसूरत है..........वो सोच जिसमें, किसी कि सारी...... ख़ुशी छुप जाए !
खूबसूरत है.................. वो दामन जो, दुनिया से किसी के गमो को छुपा जाए !
खूबसूरत है.......वो आसूँ जो, किसी और के गम मे बह जाए...!! —
14
मजबूरियों का कोई घर नही...
मिल जायेंगी हर रंग में...
हर तरफ अपना मुँह फाड़े हुये...
तुम अगर समझते हो...
एक तुम ही हो मजबूर...
तो ज़रा देखो , मैं दिखलाता हूँ...
सामने सड़क पर सोया वो आदमी...
जिसकी फटे बोरे की चादर
के अन्दर से झांकता
बदन सर्दी में चिल्ला रहा है...
वो औरत जिसके बच्चे
आज भी भूखे सो गये
क्या तुम इन से भी ज़्यादा मजबूर हो ?
दो प्रेमी जो बिछड़ कर
शायद ज़िंदा तो रहें
मगर जी ना पायें...
पर एक नही हो सकते...
इन रस्मों इन रिवाज़ों
जात पात , दौलत की वजह से...
क्या तुम इन से भी ज़्यादा मजबूर हो ?...
वो बाप जिसके बेटे का
भविष्य कल तय होना है...
फिस की आखरी तारीख है कल
पर उसके पास पूरे पैसे नही
वो सो नही पा रहा इस चिंता में
क्या तुम इस से भी ज़्यादा मजबूर हो ?
वो बेरोज़गार जिसे कर्ज़ा उतारना है...
जिसे घर संभालना है...
मगर वो मेहनत के बाद भी
वो नही पा रहा जिसकी उसे ज़रूपत है...
क्या तुम इस से भी ज़्यादा मजबूर हो ?
वो माँ जो अपने कलेजे के टुकड़े
को आँखों के सामने बिमारी से
तड़पता तिल तिल मरता देख रही है
पर पैसों की कमी की वजह से दुआओं
के सिवा कुछ नही कर सकती
क्या तुम इस से भी ज़्यादा मजबूर हो ?
वो देश जिसकी बेटियाँ शर ए आम
लुट जा रही हैं , पर अपराधी
नाबालिग साबित हो जाता है
और देश बस देखता रोता बिलखता
रह जाता है...
क्या तुम इस देश से भी ज़्यादा मजबूर हो ?...
अगर हो तो बताओ अपनी
मजबूरी ज़रा सुनें की तुम कितने
मजबूर हो...
जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फ़िर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में वह था एक कुसुम
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुबन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ
जो मुरझाईं फ़िर कहाँ खिलीं
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आंगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई
मृदु मिट्टी के बने हुए हैं
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन ले कर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फ़िर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं,मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई.
---हरिवंश राय 'बच्चन'
तो पहले अपना नाम बता दूँ तुमको,
फिर चुपके चुपके धाम बता दूँ तुमको
तुम चौंक नहीं पड़ना, यदि धीमे धीमे
मैं अपना कोई काम बता दूँ तुमको।
कुछ लोग भ्रान्तिवश मुझे शान्ति कहते हैं,
कुछ निस्तब्ध बताते हैं, कुछ चुप रहते हैं
मैं शांत नहीं निस्तब्ध नहीं, फिर क्या हूँ
मैं मौन नहीं हूँ, मुझमें स्वर बहते हैं।
कभी कभी कुछ मुझमें चल जाता है,
कभी कभी कुछ मुझमें जल जाता है
जो चलता है, वह शायद है मेंढक हो,
वह जुगनू है, जो तुमको छल जाता है।
मैं सन्नाटा हूँ, फिर भी बोल रहा हूँ,
मैं शान्त बहुत हूँ, फिर भी डोल रहा हूँ
ये सर सर ये खड़ खड़ सब मेरी है
है यह रहस्य मैं इसको खोल रहा हूँ।
मैं सूने में रहता हूँ, ऐसा सूना,
जहाँ घास उगा रहता है ऊना-ऊना
और झाड़ कुछ इमली के, पीपल के
अंधकार जिनसे होता है दूना।
तुम देख रहे हो मुझको, जहाँ खड़ा हूँ,
तुम देख रहे हो मुझको, जहाँ पड़ा हूँ
मैं ऐसे ही खंडहर चुनता फिरता हूँ
मैं ऐसी ही जगहों में पला, बढ़ा हूँ।
हाँ, यहाँ किले की दीवारों के ऊपर,
नीचे तलघर में या समतल पर या भू पर
कुछ जन श्रुतियों का पहरा यहाँ लगा है,
जो मुझे भयानक कर देती है छू कर।
तुम डरो नहीं, वैसे डर कहाँ नहीं है,
पर खास बात डर की कुछ यहाँ नहीं है
बस एक बात है, वह केवल ऐसी है,
कुछ लोग यहाँ थे, अब वे यहाँ नहीं हैं।
यहाँ बहुत दिन हुए एक थी रानी,
इतिहास बताता नहीं उसकी कहानी
वह किसी एक पागल पर जान दिये थी,
थी उसकी केवल एक यही नादानी!
यह घाट नदी का, अब जो टूट गया है,
यह घाट नदी का, अब जो फूट गया है
वह यहाँ बैठकर रोज रोज गाता था,
अब यहाँ बैठना उसका छूट गया है।
शाम हुए रानी खिड़की पर आती,
थी पागल के गीतों को वह दुहराती
तब पागल आता और बजाता बंसी,
रानी उसकी बंसी पर छुप कर गाती।
किसी एक दिन राजा ने यह देखा,
खिंच गयी हृदय पर उसके दुख की रेखा
यह भरा क्रोध में आया और रानी से,
उसने माँगा इन सब साँझों का लेखा-जोखा।
रानी बोली पागल को जरा बुला दो,
मैं पागल हूँ, राजा, तुम मुझे भुला दो
मैं बहुत दिनों से जाग रही हूँ राजा,
बंसी बजवा कर मुझको जरा सुला दो।
वो राजा था हाँ, कोई खेल नहीं था,
ऐसे जवाब से उसका कोई मेल नहीं था
रानी ऐसे बोली थी, जैसे इस
बड़े किले में कोई जेल नहीं था।
तुम जहाँ खड़े हो, यहीं कभी सूली थी,
रानी की कोमल देह यहीं झूली थी
हाँ, पागल की भी यहीं, रानी की भी यहीं,
राजा हँस कर बोला, रानी तू भूली थी।
किन्तु नहीं फिर राजा ने सुख जाना,
हर जगह गूँजता था पागल का गाना
बीच बीच में, राजा तुम भूले थे,
रानी का हँसकर सुन पड़ता था ताना।
तब और बरस बीते, राजा भी बीते,
रह गये किले के कमरे रीते रीते
तब मैं आया, कुछ मेरे साथी आये,
अब हम सब मिलकर करते हैं मनचीते।
पर कभी कभी जब वो पागल आ जाता है,
लाता है रानी को, या गा जाता है
तब मेरे उल्लू, साँप और गिरगिट पर
एक अनजान सकता-सा छा जाता है।
****××
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो, न निराश करो मन को।
संभलो कि सुयोग न जाय चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलंबन को
नर हो, न निराश करो मन को।
जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को।
निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
मरणोंत्तर गुंजित गान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
कुछ हो न तज़ो निज साधन को
नर हो, न निराश करो मन को।
प्रभु ने तुमको कर दान किए
सब वांछित वस्तु विधान किए
तुम प्राप्त करो उनको न अहो
फिर है यह किसका दोष कहो
समझो न अलभ्य किसी धन को
नर हो, न निराश करो मन को।
किस गौरव के तुम योग्य नहीं
कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं
जान हो तुम भी जगदीश्वर के
सब है जिसके अपने घर के
फिर दुर्लभ क्या उसके जन को
नर हो, न निराश करो मन को।
करके विधि वाद न खेद करो
निज लक्ष्य निरन्तर भेद करो
बनता बस उद्यम ही विधि है
मिलती जिससे सुख की निधि है
समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो।
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