बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और बेटी को समझो भी

#बेटी बचाओ_बेटी पढ़ाओ और बेटी को समझो भी


बहुत_दिन_हुए आपको कोई कहानी नहीं सुनाई ना!!
 आज एक कहानी सुनाता हूँ । मैं ये नहीं कहता की आपको पसंद आएगी ही आएगी, हाँ मगर आपके मन में कुछ सवाल जरुर उठेंगे। गौर से सुनिएगा अगर कुछ समझ आ जाए तो समझ लीजिएगा और अपने आस पास ऐसे किरदार को खोज कर ज्यादा कुछ नहीं तो उसके लिए दुआ कर दीजिएगा



एक_लड़की_थी, जिसे शब्दों से बहुत प्यार था, ठीक वैसे ही जैसे प्रेमिका को होता है अपने प्रेमी से मिले पहले गुलाब से, जैसे प्रेमिका अपने उस गुलाब को सबसे छुपा कर किताब में रखती है वैसे ही ये लड़की भी अपने शब्दों को अपनी डायरी में छुपा कर रखती थी। हाँ मगर एक बात थी लड़की के शब्द उस गुलाब की तरह सूखते नहीं थे, बल्कि उसकी मायूसी के साथ वो शब्द और हरे हो जाते थे। ऐसा नहीं था कि वो अनाथ थी या गरीब थी या उसे किसी तरह का पारिवारिक दुःख था । उसे दुःख था बस परिवार के कुछ सदस्य से जो लडकियो कि आवाज को दबाते थे,  उसे कभी कभी अपने हक़ की लड़ाई लड़ने का मन करता था। ये हक़ अपनी मर्ज़ी से खाने पहनने और घूमने का हक़ नही ये हक़ था बस अपनी बात कहने का। अपनी वो बातें जो लड़की के अंदर खौलती थीं जो उसकी नींदे उड़ा देती थीं – उसके परिवार में एक हद कही ज्यादा पितृस्तात्म्क में महिलाये दबी हुई सी थी। वो सारे घिनौने अहसास वो लिखना चाहती थी जो उसने महसूस किए थे (परिवार के ही कुछ लोगो में अमीरी पर  नशा चढ़ा था पैसे के लिए वे लोग कुछ असामजिक तत्व का सहारा लेते थे), जब जब वो स्कूल से नैतिकता की घंटी पढके  आती तो परिवार में कुछ बोल जाती, जो लोगो को नागवार गुजरता। अब वह मैट्रिक पास कर चुकी थी ।
इसी तरह एक दिन वो कुछ बोल गई जिससे लोगो के नजर में चढ़ गई 
तो फिर क्या ! उसके कुछ अपने ही लोगो  ने उसी पे आरोप लगा दिया की तुम्हे ये सब सिखाता कौन  है, वो खामोश हो गई .. जो अभी अभी उसने नैतिकता सीखी थी सच्चाई समझ आ रहा था उसके फिलिंग को दफनाया  जा  रहा था ... ( मानो किसी अपने ने ही ज़बरदस्ती उसके सपनो को तोड़ने की कोशिश की )
चुकी , वो पढ़ लिखकर ईमानदार वकील बन, समाज को न्याय दिलाना चाहती थी.... उसे ये सब करने से रोका गया,  अपनी बात कहने से रोका गया उसे अपनी सूझ बूझ से कुछ भी करने पर मना किया गया।
वो ये सब बोलना चाहती थी चिल्ला चिल्ला कर मगर उसका मुंह हर बार उसके अपने ही बंद कर देते रिश्तों और इज्ज़त का हवाला दे कर। जो सोते जागते बस यही सोचती कि आखिर करे क्या कैसे अपनी बात कहे किसी से। ऐसे ही बचपन से सोचते सोचते ख़यालों को छुप छुपा कर डायरी में लिखते हुए वो यंग हुई थी । इसलिए वो सपने टूटने के बाद भी साहित्य में रूचि होने के कारन  हिंदी से ग्रेजुएशन करना चाही पर  यहां भी  किसी ने नहीं  सुना।जैसे जैसे उसकी उम्र बढ़ी वैसे वैसे अनकही बातों का बोझ बढ़ता गया। कागज़ के पन्नें भी आखिर कितना सुनें। कोई तो ऐसा चाहिए था जो सुने तो समझे भी समझे तो कुछ कहे भी। और फिर आखिर उसे कोई मिल ही गया जिसे वो दिल ओ जान से ज़्यादा चाहने लगी जिसने उस लड़की की बातों को सुना फिर समझा और फिर अपने मन का कहा भी। दरअसल वो लड़का  मध्यम बर्गीय परिवार से, इसलिए उसने प्राथमिकता पढाई को ही दिया था  उसका कुछ सब्जेट में काफी अच्छी पकड़ थी।  वो शर्मीला, साफ विचार वाला , ईमानदार और हेल्पफुल था, उसका भी उदेश्य पढ़-लिखकर एक अच्छे पोस्ट पाकर  समाज सेवा करना ही था। 
 दो इंसानों की कुंडली मिल जाने से रिश्ता अमर नही होता रिश्ता मजबूत होता है,दो इंसानों की सोच मिलने से और इनकी सोच मिल चुकी थी । दोनों मन ही मन हमेशा एक होने का सोच चुके थे ।मगर जब उसने ये बात अपने घर तो  बताई तो सबने उसका विरोध किया। उसके घर वाले भी लड़के को जानते थे उसके मेहनतकश की तारीफ कई बार कर भी चुके थे मगर अमीरी का शौक वालो को तो पहली प्रथमिकता पैसे ही होती है, तुरंत लड़की के दिमाग में ये भर दिया गया की उसके घर वाले गरीब है अभी का लिबिंग स्टैण्डर्ड वो कभी नहीं मेन्टेन कर सकता। हमारा समाज में नाक कट जायेगा।
दूसरी बार उसके फीलिंग को दबाया जा रहा था। 
 उसने सोची क्यों ना अपनी बात को एक कहानी  के द्वारा सब तक पहुंचाया जाए क्यों ना समाज की बुराईयों और उसकी गिरी हुई सोच का आईना दिखाया जाए। मगर उसे इसके लिए भी रोका गया यह कह कर कि समाज हंसेगा खानदान की बेईज्ज़ती होगी। उसकी डायरी को भी परिवार वाले जला दिए और  तो  और उस पवित्र लड़की पर चरित्रहीन का कलंक लगा दिया यहाँ तक की साथ साथ परिवार को बदनाम करने का आरोप लगा दिया गया, वो काफी हतास थी कि ये परिवार समाज कि कैसी रीत है एक लडकी, लडके के छुए बगैर चरित्रहीन कैसे हो सकती है और घर परिवार वालो को सबसे ज्यादा चाहने पर भी इस तरह का जूठा आरोप!
लड़की को अपने दोनों सपनों को मारना पड़ा। क्योंकि उसे अपने परिवार से प्यार था  अपने पिता का ख़याल था। अगर वो मनमौजी होती तो शायद खुश होती मगर उसने अपनी खुशी मार कर सबको खुश करना सही समझा। उसके मन को कोई नहीं समझा उससे बिन पूछे ही भारीभरकम दहेज़ देकर एक इंजीनयर से अचानक सगाई करा दिया गया, हमारे समाज में इंजीनयर डॉक्टर का नाम ही काफी है
उसके सामने आपनौकरी/बैंक कर्मचारी भी है तो उसके सामने समाज नगण्य मानता है । समाज अपने आप इन्जिन्यर का सैलरी, कार्यक्षमता, रहन सहन और जगह पहले से मन में तय करके बैठे रहता है कोई देखता भी नही वो इन्सान भला समाज के लिए कुछ करेगा पायेगा भी या नही।
और फिर एक दिन वो लड़की घुट घुट कर मरते हुए शादी कर ली, ज़िंदा रहीं तो चंद सांसें और कुछ ज़िम्मेदारियाँ मगर वो लड़की जिसके पास सपने थे वो अपने ही अन्दर मर कर दफ़न हो गई। उसके इस जबरन विवाह (forced marriage) में मुस्कुराहटें भी थीं हंसी भी थी मगर वो सुकून मर गया उसके अंदर जो एक वक्त में उसके चेहरे का नूर हुआ करता था। आज उसे रोता देख भी समाज खुश है क्योंकि वो समाज जीत गया था लड़की हार गई थी।
लड़का  भी वही समाज का हिस्सा  था, उसने सॉफ्टवेर इंजीनियर से शादी की बात सुनकर अपने प्रिये की भविष्य सुरक्षित देखते हुए, अपने  (वर्षो  के प्यार को दरकिनार कर) दबी हुए आवाज में ही सही मगर लड़की के दिमाग में इंजीनयर और भविष्य के सुनहरी लाइफ स्टाइल वाला सपने को भरने में सफल रहा था।
और उसके पिताजी के साथ देने में भी कोई कसर नहीं छोड़ा।
पिता जी भी बहुत खुश थे लाखो का दहेज़ गाड़ी देकर भी  दिल में  इंजीनियर का  सुकून जो था।
मगर शादी के कुछ दिन बाद लड़की ने, लड़के को जो कुछ बताई वो यहाँ  बया नहीं किया जा सकता बस इतना समझ लीजिए कि उसे बड़े शहर के किसी छोटे कोने में पड़े एक रूम में टिफिन पैक करना है, .,....



 हां हिम्मत कर- दो चीजे लड़के ने उसके परिवार वाले को बताना चाहा था -उस लड़की को समझिए वो भोलीभाली दिल की है दुसरो की भलाई करते करते खुद को भूल जाती है,सच के रस्ते उसे सुकून देती है..आपलोगो की स्नेह की सख्त जरुरत है, दूसरा  उसका लिविंग स्टैण्डर्ड पहले जैसा नहीं है वहां। पर वो लोग क्या समझेंगे जिनको पैसे से सब कुछ खरीदने की आदत पड़ चुकी हो।. 

हां पहले से हजारो सपने टूटने के साथ साथ जुदाई का बोझ दिल से कम नहीं हुआ था - उस लड़के को, अब उसे अपने सोच से घिन भी आने लगा - शर्म तो आएगा ही जो दुनिया में सबसे ज्यादा आप पर विश्वास करे और आप उसको  दूर होने के रस्ते दिखाये। मगर क्या कर सकता था वो, हालत बहुत ही नाजुक थे - वैसे उस प्रेम कहानी में कुछ विश्वास कि डोर दोनों तरफ से कमजोर थी एक दिन
वो बहुत  उदास थी ... फोन पे रोये जा रही थी ...
सुनो तेरे चहरे पर मायूशी कभी नही देखना चाहते है हमे पता है न तुम्हे  ... बेवजह खुद का दोष देना बंद करो.. प्रेम में त्याग तो हमेशा से होता रहा है वैसे भी तुम्हारा त्याग पे मुझे गर्व है इससे तुम्हारे घर के सभी सदस्य खुश है  तुम मेरे लिए परफेक्ट हो। ओके
मेरे नसीब में तेरे मिलना था ही नहीं। तुम्हारी  खुली जुल्फे और तेरी हाथो से बनी चाय , रोज सुबह सुबह तेरी मुस्कान देखना और शाम में तेरी मधुर स्वर से गीत सुनना अब एक सपना ही बन के रह गया। 
सचाई यही है की ये जीवन है यहां  सुख दुःख का सामना करना ही पड़ता है शायद कुछ वक्त बाद हमारे तुम्हारे दुःख दर्द के बदल छट जायेंगे। 
जींवन तो जीना ही पड़ता है अगर रास्ता बंद हो  जाये तो दूसरा रास्ता ढूंढ़ना ही पड़ता है इसलिए मुझे भी एक रास्ता अपनाना पड़ेगा। 
मैं आध्यत्म और सामाजिक क्षेत्र में काम करने जा रहा हु इसलिए मुझे कठिन परिश्रम करना होगा उसके लिए पढाई  करनी होगी।
 
मै तुमसे बिलकुल भी नाराज नहीं हूँ। 
 हा मैं फ़ोन पर लाइफ के लिए कुछ बाते की थी जो  हमदोनो का ड्रीम था अगर  कुछ बुरा लगा हो तो दिल से सॉरी।
हां तुम ऑनेस्ट, बहुत सुन्दर के साथ साथ हेल्पफुल हो...ये सब चीजे  एक इंसान  में होना बहुत बड़ी बात है। हां पता है तुम  अब भी बहुत प्यार करती हो मुझे लेकिन तुम्हारे पास दूसरे परिवार की जिम्मेदारी मिली है और तुम्हारे ईमान पर  पूरा  यकीं है तुम  बखूबी रिस्तो को निभाओगी सबको प्यार करती होगी और सेवा भी !
कुछ ही समय के लिए सही तुम मेरे को हमसफर चुनी, मेरे लिए सौभाग्य है। 
आभारी रहूँगा ...हमेशा
बस तुम खुशी और उमंग में रहना। अपना  ख्याल रखना। 

जिंदगी जीना है तो दुःख दर्द भूलकर नए रस्ते तलाशने पड़ते है इसलिए उसने कुछ समय उससे बाते की और उसकी नए करियर टीचिंग और  उसके जीवन जीने की उदेश्य को समझा और उसे भरपूर प्रोत्साहित किया।

लडकी के टीचर वाली ड्रीम को  लड़के ने उसके पति को भली भांति समझाया  और हँसते हुए कहा  यकीं मानिए जब भी उसके लबो से  गीत सुनिएगा तो  उसकी मधुरिम आवाज आपको सुकून जरूर देगा वो भी हस पड़े और उसकी खूबसूरती और चरित्र की तारीफों की पुल बांध रहे थे। ये भी बोले कि शादी के पहले और बाद में वो बताई थी आपकी चाहत मेरी हमसफर के लिए सुरक्षा कवच कि तरह रहा बिलकुल पवित्र है वो ....धन्यवाद आपको
(तभी लड़के  मन में ही फुसफुसाया आपकी किस्मत साथ दे दी वर्णा उसके हकदार तो हम ही थे।) शायद अब बात बन चुकी थी... 
 वो हमेशा से खुली पंक्षी की तरह हवाओ में  साँस लेना चाहती है, आप प्लीज उसे  बंधन में न रखिएगा ये आग्रह करते हुए ......
 उसने  हमेशा के लिए दोनों से दुरी बना लिया। 
 उसे समझ आ चूका था की लाइफ में  कुछ लोग कुछ पल के लिए ही मिलते है.
 मानो! या न मनो!  उनकी यादे और एहसास की खुशबु जीवन भर महकती रहती है। 
खैर ऐसी तो कितनी लड़कियाँ अपने ही अंदर मर जाया करती हैं किस किस का शोक मनाया जाए। 


इन चांद-तारों में है क्या, इन हसीं नजारों में है क्या
        ये नजर-नजर की बात है कि किसे तलाश है क्या। 

बाकि क्या लिखू  उसके सपने ने मेरे आँखों से आंसू भर दिए है! हां मैं कोई साहित्यकार नहीं हु जो आपको हजारो शब्दों में उसके एहसासो को बया कर सकू मगर कई सालो से साहित्य पढ़ने ,लिखने और अनुभवों से  छोटा सा लेखक होने के नाते उस लड़की के डायरी की बाते को आपलोगो तक पहुंचने की कोशीश किया हु। वो यही कहना चाहती थी -
सुनिए अगले महीने 11 अक्टूबर को बालिका दिवस है  ना तो सबको बहुत बहुत बधाई हो। बेटियाँ सबको प्यारी हैं मगर उनकी खुशी में सब पीछे हट जाते हैं । आप परिवार हैं समाज हैं बड़े हैं तो जिस पर वो चलना चाहती हैं उस रस्ते की जाँच करिए और फिर उसे चलने को कहिए, बिना जाँचे परखे उसका उस रास्ते पर जाने की पाबंदी ना लगाईए। अपनी खुशियों को मारते मारते कब आपकी लाडली एक ज़िंदा लाश बन जाएगी आपको पता भी नहीं चलेगा। 

आँच
उसने  शादी  के  पलकॊं  पर,
हज़ारों  ख़्वाब  सजा  रखे थे !

असंख्य  भावी  खुशियाँ
दूसरों  को  खुश  करने  में  निकल  गईं ।
वो  प्यार  पाने  की  चाहत ,
काम - काज  के  सौदे  के  साथ  मिल  गए ।

कुछ  ख़्वाहिशें . . .
तवा  पर  रोटियों  की  जगह  सेंक  दिए !
बाकि  बचे  अरमान . . .
टिफिन  में  बँद  कर
रोज़  पति  को  भेजते  गई  ।

सोफा - चादर- रसोई - बरतन ,
जाने कितने नए दोस्त उसके
सबसे अजीज़ होते  गए !

फोन पे पापा  को
अपनी ख़ुशी का भरोसा दिलाना
आसान हो गया !

दिल  की  सारी  उम्मीदें सिमट  कर,
 शाम  के पति के इंतज़ार पे आ के टिक गईं !

फ़िर  भी  एक  डर  सा  हमेशा  दिल  में . . .
 " कोई  आँच  न  आए  रिश्ते  पे "
इसी  सोच  में  गुम  कई  दफ़ा . . .
चूल्हे  की आँच  पर
उँगलीयाँ जला ली  है  उसने । 

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और बेटी को समझो भी
ग़लत को ग़लत बताना ग़लत नहीं है।
ग़लत तो तब है जब आप ग़लत को ग़लत ना कहें और उसे बर्दाश्त करते चले जाएं। हर उस इंसान से लड़िये जो ग़लत हो फिर चाहे वो आपके मां/बाप, पति/पत्नी, भाई/बहन, गर्लफ़्रेंड/बॉयफ्रेंड, बॉस/असोसिएट्स, कोई भी हो।
बेशक, अपने बच्चों को (ख़ासकर लड़कियों को) संस्कार सिखाइये लेकिन उन्हें हर चीज़ को बर्दाश्त करने की घुट्टी मत पिलाईये।उसे लड़ने दीजिये, जीतने दीजिये। वरना वो खुद से ही हार जाएगी .... राहुल प्रसाद

मेरी  भी कुछ विशेष टिम्पणी  है इस जबरन विवाह की असमाजिक  कुरीति पर -

आप बदलिए समाज अपनी सोच अपने आप बदल देगा-
 इंसान खुशियों को खुद से अंदेखा कर देता है और फिर रोता है यह कह कर कि खुशियाँ गुम हो गई हैं मिल नही रहीं  अरे भई कहाँ से मिलेंगी उन्हें तो तुम खुद दफ़ना आए  एक बाप परेशान रह सकता है अपनी बेटी की शादी को लेकरमगर अपनी बेटी के मन का नहीं कर सकतालोग हसेंगे समाज बुरा भला कहेगा ये सोच कर उस बेटी को नर्क भोगने पर मजबूर कर देंगे जिसकी खुशी के लिए पाई पाई जोड़ा और सोचा कि बेटी की शादी ऐसे घर में कराएंगे जहाँ वो खुश रहे  
अरे यार जिसे शादी से पहले ही तुम्हारी बेटी को रखने के लिए लाखों रुपए चाहिए वो भला ख़ाक खुश रखेगा उसे  क्या एक पिता के कंधे इतने कमज़ोर हो गए कि उसे अपनी बेटी का बोझ हल्का करने के लिए किसी को पैसे देने पड़ें ? और समाज ये समाज आप पर हंसेगा,
 अच्छा ये बताइए इससे पहले समाज ने आपके सम्मान में कितनी मूर्तियाँ बनवाई हैं ? क्या आपको विश्वास है कि अपनी बेटी के मन का सुनने के बाद जिन लोगों का आपके खिलाफ बोलने का डर है आपके मन में उन्होंने इससे पहले कभी कुछ नहीं 
बोला आपके बारे में ?

"अगर अरेंज मैरिज इतने ही सही होते तो ना दहेज़ की वजह से  हत्याएं होती ना  ही घरेलू हिंसा और ना तलाक!
मानता हूं  माँ बाप गलत नहीं चुनते मगर वो शख्स सही ही साबित हो ऐसा जरुरी नहीं.."


 इतने नासमझ तो आप सब नहीं फिर ये नासमझी क्यों ?
जानते हैं समाज हमेशा से अच्छा रहा है मगर इस पर जो कुरीतियों की जंग लगी है ना इसने खोखला कर  दिया है समाज कोइसे ज़रूरत है हथौड़े के मार कीआपके जवाब की  अगर आप चोट नही करेंगे तो ये  कुरीतियाँ एक दिन आपकी खुशियों को निगल जाएंगी  हर इंसान अपने ज़िंदगी सफ़र में एक साथी     चाहता है एक ऐसा साथी जो उसकी सोच को समझे और जिसकी सोच आपकी समझ में  जाए 
क्या बुरा है अगर आपकी बेटी सामने से आपको अपने उस हमसफ़र का पता बता दे। आप कोशिश तो करिए उन्हें समझने की एक बार देखिए तो सही की वो किसका हाथ पकड़ कर आगे बढ़ना चाहती है ।आप पिता हैं आप नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा  आपका एक गलत फैसला कितनी ज़िंदगियां बर्बाद कर देगा आप सोच भी नहीं सकते और आपका एक समझदारी का फैसला कितनी ज़िंदगियां खुशहाल बना देगा इसका अंदाज़ा भी आपको नहीं होगा  बेटी बड़ी हो गई है आपकी और समझदार भी यकीन मानिए कभी ऐसा फैसला नसीं करेगी जिससे आप दुखी हों  आपकी खुशी उसकी खुशी में है तो एक बार  उससे पूछिए कि वो किस में खुश है ।आप खुद को बदलिए और फिर देखिए आप पर हंसने की धमकी देने  वाला ये समाज अपनी सोच अपने आप कैसे बदलता है  जैसे की कल्पना चावला , साइना नेहवाल , मेरी कॉम इत्यादि लाखो उधरहण है हमारे ही समाज में जिस पर लोग गर्व करते है।

अपनी बेटी को अब सपोर्ट करो, उस पर अब न चोट करो~  
 " राहुल प्रसाद "(MAY, 2015)

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