दशहरे का मेला
गांवकर हमर दशहरे का मेला
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नेहा , सुनीता.. बिंदियां ..खुशी ...रीता ...कमला नयी उमर और नयी उमंगों को लिये मेले की भीड़ मे खिलखिला रहीं हैं ...सभी साखियां चक्कर वाले बड़े से झूले मे बैठी हुई चक्कर के उस बिंदु पर आकर असीम आनंदित होती हैं जब झूला ऊपर से नीचे की तरफ़ तेजी से आता है...शरीर भार विहीन सा लगने लगता है ..पेट मे अजीब तरह की हलचल होती है ..और यही हलचल आनंदित करती है सब जोर से चिल्लाती हैं और एक ठहाका मेले के शोर मे घुल जाता है l
रीता की नज़र चमकते पर्स पर ठहरती है जिस पर सुनहरे चमकीले रंग मे अँग्रेजी के अक्षरों से लवली (L O V E L Y )लिखा है वो उसे खरीदने के लिये उत्सुक है ..ठेले वाले से दाम पूछती है ..जोड़ तोड़ कर के वो उस पर्स को पैतीस रुपये मे खरीद लेती है जिसपर दुकान दार ने एक दाम नब्बे रुपये लिख रखा है ...चमकते पर्स को पाकर रीता का चेहरा भी चमकने लगता है ...आह ये आनंद और कहाँ सिवाय मेले के !!!!
मेले मे सभी सहेलियों ने कुछ न कुछ खरीदा है कमला को बालो मे लगाने वाला लाल पीला रबर भा गया और खुशी ने राज(जिसे वो प्रेम करती है )के लिये चाभी का गुच्छा लिया है जिसपर R अक्षर लिखा है ..जब से उसे Raj अच्छा लगने लगा है उसे अँग्रेजी के इस R अक्षर से भी प्रेम हो गया है ..!!!
सुनीता ने अपनी नयी भौजाई के गर्भस्थ शिशु के लिये नन्हे नन्हे मुलायम जूते लिये हैं इस जूते को पहनकर वो अजन्मा बच्चा कैसे चलेगा इसकी कल्पना ही सुनीता के लिये असीमित सुख है ....!!!
नेहा की नज़र काँच के रंगबिरंगे कंगनो पर ठहरी है..ये कंगन मोतियों से जड़े हुये हैं ...बहुत कीमती मालूम पड़ते हैं दाम पूछने की हिम्मत जुटा कर पूछती है कितने के हैं भइया
(केतना भाव हई एकर)???
सौ रुपया जोड़ा ....ले जाओ बिटिया पहीनोगी तो ऐक्के दीखोगी सौ म !!!
बहुत महँगा है दादा !!!!
चीज़ भी तो बढ़िया है ..अच्छा लाओ दस कम दे दो !!!इतना रुपया नही है हमारे पास....कुल सत्तर लेकर चली थी जिसमे से अबतक आधे खर्च हो गये ...!!
दे दो न दादा रानी जो बगल मे खड़ी थी सहेली का उतरा चेहरा देखकर बोल पड़ती है ...अच्छा चलो दस हम मिला देते हैं लाओ पैतालिस मे दे दो ..कंगन वाला दोनो सहेलियों को एक नज़र देखता है और अखबार मे लपेट कर कंगन दे देता है ....दोनो सहेलियों के चेहरे पुनः खिल उठते हैं ...नेहा इतना सुंदर कंगन पाकर खुश है बहुत खुश क्या ये खुशी सोने के कंगन से तनिक भी कम है ....!!!!
मेला पूरे यौवन पर है ...हँसी ठिठोली करती साखियां मेले मे घूम रहीं हैं ....एक तरफ़ से चौकिया निकल रहीं हैं कोई हनुमान जी का रुप धर कर आया है तो कोई श्री राम का ...सबसे ज्यादा आकर्षक लग रहा है रावण ...पर एक अजीब तरह की घृणा पैदा करता है ये रावण ...सभी साखियों का मन करता है की ये रावण जल्दी से जल्दी मर जायें जल्दी ही श्री राम आकर रावण पर तीर चला कर इस का सर्वनाश कर दें ...भीड़ चरम पर है ...भक्ति भाव मे पूरा मेला डूबा है ...जय श्री राम के नारे बुलंद हैं ....चारो तरफ शोर गुल है ...चमकती लाइटें हैं ...अभी रावण नही जला है ....अभी रावण की चीख नही निकली है ...तभी अचानक रीता की एक चीख उसी शोर मे भी उठती है पर कहाँ से उठती है कोई जान नही पाता है ...कैसे रीता मेले से दो किलोमीटर दूर निर्जन स्थान मे पेड़ के पीछे बिन वस्त्रों के निर्जीव पड़ी मिली और पास ही lovely पर्स भी पड़ा था .....!!!!
कोई जान नही सका कब वो सखियों से अलग कर दी गयी ...इतनी भीड़ मे किसने उसे उठा लिया...और इस तरह फ़िर से एक दशहरा और बीत गया ...अगले साल फ़िर कुछ और साखियां किसी और दशहरे के मेले मे खुशियाँ बटोरने आयेगी ...जलता हुआ रावण देखने आयेगी ....और बाकी रह जायेंगे हमारे आपके बीच इसी तरह छद्म वेष धारी रावण !!!!
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#एक पुतले का दहन, यह तो उत्सव है। अपने हृदय में बसे पाप का दहन कर दें तो मनोकामना पूर्ण हो, स्वच्छ समाज और भयमुक्त जीवन हो।-RP
ये वर्तमान मानसिकता का अच्छा चित्रण करने का मौका मिला - मेरे दोस्त पल्लवी की कलम से है।
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नेहा , सुनीता.. बिंदियां ..खुशी ...रीता ...कमला नयी उमर और नयी उमंगों को लिये मेले की भीड़ मे खिलखिला रहीं हैं ...सभी साखियां चक्कर वाले बड़े से झूले मे बैठी हुई चक्कर के उस बिंदु पर आकर असीम आनंदित होती हैं जब झूला ऊपर से नीचे की तरफ़ तेजी से आता है...शरीर भार विहीन सा लगने लगता है ..पेट मे अजीब तरह की हलचल होती है ..और यही हलचल आनंदित करती है सब जोर से चिल्लाती हैं और एक ठहाका मेले के शोर मे घुल जाता है l
रीता की नज़र चमकते पर्स पर ठहरती है जिस पर सुनहरे चमकीले रंग मे अँग्रेजी के अक्षरों से लवली (L O V E L Y )लिखा है वो उसे खरीदने के लिये उत्सुक है ..ठेले वाले से दाम पूछती है ..जोड़ तोड़ कर के वो उस पर्स को पैतीस रुपये मे खरीद लेती है जिसपर दुकान दार ने एक दाम नब्बे रुपये लिख रखा है ...चमकते पर्स को पाकर रीता का चेहरा भी चमकने लगता है ...आह ये आनंद और कहाँ सिवाय मेले के !!!!
मेले मे सभी सहेलियों ने कुछ न कुछ खरीदा है कमला को बालो मे लगाने वाला लाल पीला रबर भा गया और खुशी ने राज(जिसे वो प्रेम करती है )के लिये चाभी का गुच्छा लिया है जिसपर R अक्षर लिखा है ..जब से उसे Raj अच्छा लगने लगा है उसे अँग्रेजी के इस R अक्षर से भी प्रेम हो गया है ..!!!
सुनीता ने अपनी नयी भौजाई के गर्भस्थ शिशु के लिये नन्हे नन्हे मुलायम जूते लिये हैं इस जूते को पहनकर वो अजन्मा बच्चा कैसे चलेगा इसकी कल्पना ही सुनीता के लिये असीमित सुख है ....!!!
नेहा की नज़र काँच के रंगबिरंगे कंगनो पर ठहरी है..ये कंगन मोतियों से जड़े हुये हैं ...बहुत कीमती मालूम पड़ते हैं दाम पूछने की हिम्मत जुटा कर पूछती है कितने के हैं भइया
(केतना भाव हई एकर)???
सौ रुपया जोड़ा ....ले जाओ बिटिया पहीनोगी तो ऐक्के दीखोगी सौ म !!!
बहुत महँगा है दादा !!!!
चीज़ भी तो बढ़िया है ..अच्छा लाओ दस कम दे दो !!!इतना रुपया नही है हमारे पास....कुल सत्तर लेकर चली थी जिसमे से अबतक आधे खर्च हो गये ...!!
दे दो न दादा रानी जो बगल मे खड़ी थी सहेली का उतरा चेहरा देखकर बोल पड़ती है ...अच्छा चलो दस हम मिला देते हैं लाओ पैतालिस मे दे दो ..कंगन वाला दोनो सहेलियों को एक नज़र देखता है और अखबार मे लपेट कर कंगन दे देता है ....दोनो सहेलियों के चेहरे पुनः खिल उठते हैं ...नेहा इतना सुंदर कंगन पाकर खुश है बहुत खुश क्या ये खुशी सोने के कंगन से तनिक भी कम है ....!!!!
मेला पूरे यौवन पर है ...हँसी ठिठोली करती साखियां मेले मे घूम रहीं हैं ....एक तरफ़ से चौकिया निकल रहीं हैं कोई हनुमान जी का रुप धर कर आया है तो कोई श्री राम का ...सबसे ज्यादा आकर्षक लग रहा है रावण ...पर एक अजीब तरह की घृणा पैदा करता है ये रावण ...सभी साखियों का मन करता है की ये रावण जल्दी से जल्दी मर जायें जल्दी ही श्री राम आकर रावण पर तीर चला कर इस का सर्वनाश कर दें ...भीड़ चरम पर है ...भक्ति भाव मे पूरा मेला डूबा है ...जय श्री राम के नारे बुलंद हैं ....चारो तरफ शोर गुल है ...चमकती लाइटें हैं ...अभी रावण नही जला है ....अभी रावण की चीख नही निकली है ...तभी अचानक रीता की एक चीख उसी शोर मे भी उठती है पर कहाँ से उठती है कोई जान नही पाता है ...कैसे रीता मेले से दो किलोमीटर दूर निर्जन स्थान मे पेड़ के पीछे बिन वस्त्रों के निर्जीव पड़ी मिली और पास ही lovely पर्स भी पड़ा था .....!!!!
कोई जान नही सका कब वो सखियों से अलग कर दी गयी ...इतनी भीड़ मे किसने उसे उठा लिया...और इस तरह फ़िर से एक दशहरा और बीत गया ...अगले साल फ़िर कुछ और साखियां किसी और दशहरे के मेले मे खुशियाँ बटोरने आयेगी ...जलता हुआ रावण देखने आयेगी ....और बाकी रह जायेंगे हमारे आपके बीच इसी तरह छद्म वेष धारी रावण !!!!
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#एक पुतले का दहन, यह तो उत्सव है। अपने हृदय में बसे पाप का दहन कर दें तो मनोकामना पूर्ण हो, स्वच्छ समाज और भयमुक्त जीवन हो।-RP
ये वर्तमान मानसिकता का अच्छा चित्रण करने का मौका मिला - मेरे दोस्त पल्लवी की कलम से है।
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