जय हो छठी★ मईया


^ पिताजी ने कभी अपनी परम्परा से कटने नही दिये । चाहे वो #परम्परा व्रत त्यौहारों की हो, खान पान कि हो या फिर गांव में भाईचारे  सेवा और प्रगति का।
कभी शहरी या किसी और प्रांत के परिवेश का मुखौटा नही लगाने दिया । हमेशा यही सिखाया कि रहो भले ही जहाँ मर्ज़ी जैसे मर्ज़ी मगर अपनी जड़ों से अलग मत रहो। याद है बचपन मे पापा कहे थे "जो इंसान अपने जन्मभूमि की मिट्टी को धूल कह कर नाक भौं सिकोड़ने लगे वो इंसान अपना अस्तित्व खो चुका होता है ।" मैने भी ऐसा ही किया । मैं कहीं भी रहा कैसे भी रहा मगर झारखण्ड का अपना गाँव और वहाँ कि परम्परा मुझ में हमेशा ज़िंदा रही । 




😊हमेशा से बाहर(9साल) रहा इसलिए ये तो नही कह सकता कि गाँव की बहुत याद आती है । हाँ मगर छठ पूजा बहुत याद आती है कारण ये है कि परम्परा को माँ पापा ने हर जगह ज़िंदा रखा । याद है मुझे मैं 5th में था जब माँ को पहली बार छठ पूजा रखना देखा था उससे पहले गाँव में सब रखते थे पर माँ  नही रखती थीं  । एक कारण ये भी था कि पिता जी पंजाब में 
काम करते थे।पिताजी कहते है
वहा व्रत के बारे में कोई नही जानता था मगर वो tv न्यूज़  में छठ गीत सुनते ही इतने ब्याकुल हो गए थे कि वे पता करने लगे कोई तो करता होगा इस शहर में।
और पता लगा कि कुछ दूर पर कुछ बिहार यूपी के लोग हैं जो छठ मनाते हैं, बिहार यूपी झारखंड  में तो हर तरफ से हार चुके लोगों का एक ही सहारा होता है वो हैं छठी मईया, माँ भी ऐसे ही तब हार गई थीं जब उसका बड़ा बेटा यानी मै TB से पीड़ित था , तब कोई 10 साल का था, गाँव की बैध (झोला छाप डाक्टर) इलाज करके हार चुके थे और घर मे पैसे भी नही थे शहर जाकर इलाज के लिए 
 निराश थी हताश थी तब छठी मईया का सहारा लिया और अपनी औलाद स्वाथ्य के लिए दुआ मांग ली। साहूकार से ब्याज पर पैसे लेकर बेटा का इलाज कराया और वेह जल्दी ही स्वस्थ हो गया। माँ ने छठी मईया की मनऊती माने हुई थी 
तब से  माँ ने भी व्रत शुरू कर दिए और उसके बाद से व्रत का सिलसिला चलता रहा ।

मैंने (इन 7 सालो) में देखा है पहले परदेस में मुट्ठी भर लोग छठ मनाते थे आज मेला लगता है । सब एक जगह इक्कट्ठा हो कर घाट सजाते हैं और धूम धाम से छठ मनाते हैं । 
पिछले सात सालों से पढ़ाई और जॉब की वजह से मै गाँव मे छठी मइया का व्रत में शामिल नही हो सका था जिसका मुझे टिस भी और अपने से शरमन्दगी भी! पर इस बार खुश हूं कि यहा शामिल हु और सबसे बड़ी बात माँ बहुत ज्यादा ख़ुशी से व्रत कर रही है।

👌हाँ सुनिए गाँव वाली छठ पूजा की बात ही अलग है । जहाँ पूरा गाँव आस्था और छठी माँ की भक्ति में एक सप्ताह लीन रहता है । गाँव की छठ पूजा का मतलब है परदेसी बाबूओं और बबुनिओं का गाँव आना, 3दिनों तक का ये व्रत गांव के सभी लोगो से मिलान भी करा जाता है।
सबका मिल कर छठ घाट को सफाई करना।फिर सजाना,
 हरे पतियो वाली गन्नों की लंबी कतारें
के बीच बालू का चबुत्तरा बनाकर दिएँ को जलाना। 
अगरबत्तियों की गमक से पूरा वातावरण गमक उठना, 
शाम को ख़िरभोजन का प्रसाद वितरण।
रात भर छठी मइया की गीत और भजन का आनंद उठाना। सुगवा गिरे मुर्झय ये गीत तो सबके
मुह से निकलता है।

दूसरे दिन शाम को बाजा गाजा के साथ
 दौउरा लिए हुए गांव के सभी लोग झूमते गाते हुए और दंडवत प्रणाम करते हुए नदी/ताल पहुँचते है
सजी हुए चबूतरा पर सुपो में
ठेकुआ कसार खाजा मिठाई और फल से लदे डालों का घाट पर सजाए जाना, फिर सूर्य ढलते ही घूम घूम कर अरग(दुध को माथे पर छिड़कना) लेना 
दिपों को जलाकर नमन करना| 


ये दृश्य देखने लायक होता है क्योंकि नदी के किनारों पर दिए की लव और जल में बनी प्रतिबिम्ब मनमोहक होती है।
शारदा सिन्हा जी के छठ गीतों से पूरा माहौल छठमय हो जाना 

और फिर सुबह नहाकर  सूर्य उगते समय अऱग लेना।
और हाँ एक सबसे मुश्किल चीज़ जो चुपके से इस व्रत का हिस्सा बन जाती है वो है बच्चों का मिठाई और फल देख कर उसे खाने की ज़िद्द करना और घर वालों का उन्हे छठी मईया की महिमा सुना कर उन्हे बहलाना । ये सब चीज़ें जैसे एक नई उमंग भर देती हैं, इन्हे सोचते ही वो गाँव वो देहात जो हम में कहीं चुपके से दुबका होता है एक दम से पूरे जोश में आ जाता है । 
शुद्धता, स्वच्छता और पवित्रता के साथ मनाया जाने वाला यह पर्व आदिकाल से मनाया जा रहा है।
छठ पूजा करने वाले व्रती को कई कड़े नियमों का पालन करना पड़ता है जैसे की –
इसमें स्वच्छ व नए कपडे पहने जाते है जिसमे सिलाई न हो। महिलायें साडी और पुरुष धोती पहन सकते है।
इस चार दिनों में व्रत करने वाला व्रत धरती पे सोता है। जिसके लिए कम्बल और चटाई का प्रयोग कर सकता है।
इन दिनों घर में प्याज. लहसुन और मांस का प्रयोग वर्जित होता है।
🎆छठ व्रत है मनोकामनाओं का आस्था का एकता का छठी मईया का सूरज भगवान की आस्था
  झारखण्ड बिहार का यूपी का हर उस इंसान का जिसने मिट्टी की महक को अपनी आत्मा से महसूस किया हो । अच्छा लगता है जब फैशन और हर तरह की आज़ादी की इस चाह वाले दौर में भी आज की पीढ़ी अपनी आस्था अपनी परम्परा अपनी मिट्टी को खुद में ज़िंदा रखे है । 
वैसे हमारा छठ पूजा आस्था भक्ति लोकसंगीत सांस्कृतिक और भाईचारा का समिश्रण वाला दिल मे सुकून भरने वाला त्योहार है।
छठ महापर्व की आप सबको हार्दिक शुभकामनाएं । खुशियों का त्यौहार है खुशी से मनाईए । छठी मईया आप सबकी मनोकामनाओं को पूरा करें और आप सबके घरों में खुशहाली लाएं । 

☸जय छठी मईया 🕉

#राहुल#2017

छठ गीत अनुराधा पोडवाल
छठ गीत कल्पना

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