झारखण्ड यात्रा, थकान और भगवान

झारखण्ड यात्रा, थकान और भगवान - एक सच  
मजाकिया अंदाज मे।

झारखण्ड आना हो तो आपको सबसे पहले टिकट की मारा मारी के लिए कमर कसनी पड़ती है कभी कभी तो सोचता हूँ कि शायद बिहार झारखण्ड से लोग शायद डेली अॅप डाऊन करते होंगे दूसरे राज्यों में इसीलिए जब भी टिकट खोजो तो टिकट चार्ट रिग्रेट फील करने लगता है हमको भी दया जाती है जब कोई इतने मासूम तरीके से अफ़सोस जताता है तो फिर मजबूरी में खुद दक्षिणा के अधिकारी हो या ऐजेंट भाईयों को दक्षिणा दे कर टिकट जुगाड़ करना पड़ता है   कहते हैं ना मजबूरी जो ना कराए शरीर से हष्ट पुष्ट हो कर भी जनरल का मार झेलने की हिम्मत नहीं हो पाती अब भीड़ गर्मी सब सहन हो जाता है जरनल का मगर ये साईलेंट बम का अटैक असहनीय होता है इसीलिए कान पकड़ लेते हैं जनरल का नाम सुनते ही   चलिए 560 के स्लीपर का 1500 दे कर टिकट मिल भी जाता है तो अब दिक्कत आती है स्लीपर में बढ़ रही वेटिंग वालों की भीड़ कुछ वेटिंग वाले तो बड़े सज्जन होते हैं, उन्हें देखते आपको खुद दया जाएगी और आप अपनी सीट का आधा हिस्सा उनको उस हक़ से दे देंगे जैसे बड़े लोग किसी गरीब पर मेहरबान हो कर अपनी ज़मीन का टुकड़ा उन्हें घर बसाने को दे देते थे   और कुछ वेटिंग मानव भारतीय जुगाड़ संस्कृति के धरोहर होते हैं ये सबसे पहले किसी बकलोल दिखने वाले पैंट्री वाले को पकड़ कर खाने पीने वाली चिज़ों के गलत रेट का उदाहरण दे कर कंप्लेन बुक की मांग करते हुए दिखाएंगे कि इन्होंने  रेलवे टूरिज़्म की डिग्री ले रखी है फिर ये आपके हाव भाव देखेंगे, कहीं आपको इन्होंने अपनी बातों से प्रभावित पाया तो झट से कहेंगेअरे भाई साहब, .सी तक में ट्राई किए पर टिकट नहीं मिला टी सी को पच्चीस सौ दे रहे थे पर साला टिकट नहीं दिया अब सामने वाला सोचता है इतना बुद्धिमान आदमी ऐसे कैसे खड़े हो कर जाएगा मगर आपके सोचने से पहले वो आपके बगल में लेटने की जगह बना चुका होता है और धीरे धीरे शर्णार्थी से इस्ट इंडिया कंपन्नी बनते उसे देर नहीं लगती और कुछ ही देर में आपकी सीट पर उसका कब्जा होता है और आप भी दाँत चिआर कर कह देते हैं कोई ना लेटे रहिए हम टहल लेते हैं अब जनाब जुगाड़ू लाल अंदर ही अंदर अपनी विजय पर मुस्कुरा रहे होते हैं   स्लीपर का धीरे धीरे जरनल होते जाना आपके तीन गुने दाम पर कटाए टिकेट की खिल्ली उड़ा रहा होता है और दूसरी तरफ़ ट्रेन का तपता हुआ तवा हो जाना आपकी बची खुची सहनशक्ति भी छीन लेता है सीट पर लेटे लेटे बदन जल रहा होता है और ट्रेन का अकारण ही लेट होते रहना दिल को जला रहा होता है ना धुंध है ना कोहरा ना बाढ़ ना बारिश फिर भी प्रभू की दया सै ट्रेन 6 घंटे से ज़्यादा लेट हो रही है प्रभू भी सोचते हैं ससुरों जल्दी पहुंच कर करोगे भी क्या, तुमको कौन सा मिनिस्ट्री संभालनी है हम भी करेजा पर मुक्का मार कर कह लेते।हैं जैसे प्रभू की माया वैसे माया किसी की नहीं है माया तो काशी की ना हुई जहाँ स्वयं भगवान शिव विराजे थे तो और किसी की क्या होगी   खैर हमको क्या लेना इन सबसे गर्मी की मार, बकचोदों की बकचोदी, ट्रेन की 6 घंटे लेट की सुस्ती ये सब झेल कर थका हुआ शरीर ले कर जब राची
पहुंचा तो लग रहा था जैसे महीने पहले पैदल ही राची
के लिए निकला था और आज पहुंचा हूँ  
अब घर के लिए बस पकडा तो सालो से पड़े खंडर रोड में उठा पटक करते भगवान भरोसे
यह बस शाम तक घर पहुचा  ही देता है ।
फिर हाल चाल पूछते बताते रात में नींद बताती है झारखण्ड यात्रा थकान और भगवान।



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