#बैंकिंग_किस्से -5 - नोटबंदी

#नोटबंदी-एक_बैंकर के अनुभव से 

 

#ये_तो_तय है कि भविष्य में बैंकिंग इंडस्ट्री को दो ही तरीके से classifyकिया जाएगा: B.M. और A.M.B.M. stands for ‘Before Modi’ और A.M. stands for ‘After Modi’.


#आज_भी मैं देखता हूँ कि कई लोग शान से मूछों पर ताव देते कहते हैं कि भाई, हमने JAC  बोर्ड से 2008 के समय साइंस में पढ़ाई की है 1st के साथ
(चुकी 40 %लोग ही पास होते थे)
हल्के में न लो. यकीनन, आज से बीस तीस साल बाद जब आज के युवा बैंकर रिटायर होने की कगार पर होंगे तो मूछों या बचे कुचे बालों पर हाथ फेरते हुए जरूर कहेंगे कि भाई हमने मोदी जी के जमाने में बैंकिंग की है, कोई ऐसा वैसा न समझो.

खैर, नोटबंदी के बाद जहाँ एक तरफ बैंकर्स ने पूरी शिद्दत से जन जन के लिए काम करके उनके चेहरे पर मुस्कान लाने का कार्य किया वहीँ आसमान से उतरते दो सौ चैनलों के News tradersकैमरा लिए इस कार्य में व्यस्त रहे कि कैसे बैंककर्मियों की मेहनत मटियामेट की जाए और उन्हें भ्रष्ट बताया जाये.
हालाँकि, लाखों कर्मचारी में से कुछ बीस कर्मचारी भ्रष्ट भी निकले लेकिन इसकी वजह से बाकी लाखों पर आक्षेप लगाना या पूरी इंडस्ट्री को शक के घेरे में कर देना कोई समझदारी का काम तो नहीं.
यहाँ मैं एक किस्सा बता रहा हूँ जो मैंने खुद देखा:

पिछले दिनों ब्रांच से निकलकर एक गुमटी पर चाय पी रहा था तो एक वाकया देखा..बाज़ारों में नोटबन्दी के बाद से तरह तरह की चर्चाओं का बाज़ार इस सर्दी में भी गर्म था..उस समय की बात है जब नोट की अदला बदली चालू थी..
चाय की दुकान के बगल में मेरा बैंक की शाखा थी। शाम के लगभग 7.30 बजे थे और  काम ज्यादा होने की वजह से शाखा खुली थी पर शटर पर ताला लगा था।
एक मजदूर बैंक शाखा के बाहर खड़ा हुआ आवाज़ लगा रहा था लेकिन कोई अंदर से निकलकर नहीं आ रहा था| उसने जोर जोर से कुछ आवाज़ लगाई..मैं भी उसके पीछे जाकर खड़ा हो गया और समझने की कोशिश करने लगा कि माजरा क्या है..आसपास से दो चार लोग और आ लिए|
शाखा से एक अधिकारी उठकर आया और उसने पूछा कि क्या बात हैक्यों खड़े हो यहाँ??
उसने कहा कि बैंक बन्द हो चुका है अब कल आना..
मजदूर ने बताया कि मेरे पास कुछ भी पैसे नहीं है..दवाई लेने जाना है कुछ भी करके मेरे नोट बदल दो साहब..मुझे मजदूरी में1000 के नोट दिए जा रहे हैं और इसे अब कोई नहीं ले रहा..कुछ कर दो साहब कुछ कर दो..
अधिकारी ने समझाया कि इसके लिए आईडी चाहिएकल आना और बदल लेना वगेरह वगेरह..बात में समय बर्बाद सा होता देख अधिकारी से मैंने रिक्वैस्ट  की तो सर मान गए   और आदमी से कहा कि कितने पैसे हैं तुम्हारे पास?? उसने बताया कि 4000 रूपये हैं और मुझे सख्त जरूरत है पैसे की|

उस समय बैंक के बाहर भीड़ का आलम ये होता था कि आधी रात भी बैंक खुल जाए तो लोग कतार में लग लें| इस बीच बैंक के बाहर कुछ लोगों को खड़ा देख आसपास कुछ और लोग एकत्रित हो चुके थे|
फिर वरिष्ठ प्रबन्धक ने परेशानी समझते हुए उस मजदूर को 100के 40 नोट गिनकर अपनी जेब से दिए और उससे 1000 के नोट ले लिये| 

मजदूर ने दिल खोलकर उसे दुआएं दी और कहा कि तुम लोगों का ईश्वर भला करे..तुम लोग बहुत मेहनती हो और ये कहता हुआ मजदूर वहां से चल दिया|
अब जिसने वहां खड़े होकर बातचीत सुनी उसने वरिष्ठ प्रबन्धक को दुआएं दी और बैंककर्मियों की तारीफ की लेकिन कई ऐसे भी थे जिन्होंने दूर से केवल नोट लेते देते देखा और इससे ज्यादा उन्हें कुछ मालूम नहीं| वहां हुई बातचीत के बारे में उन्हें पता नहीं और न ही उन्होंने जानने की कोशिश की|
फिर मैंने देखा कि चाय की गुमटी पर उन्हीं में से कुछ लोग चर्चा करने लगे कि बैंक में इस तरह से लेनदेन करके नोट बदले जा रहे हैं..
कुछ कहने लगे कि हाँदेखो पैसे ले देकर नोट बदल रहे हैं..
कुछ ने कहा कि देखो आईडी बिना लिए बदल दिए नोट और बिना पूरी बात जाने बैंककर्मियों को बेईमानी का सर्टिफिकेट बांटना शुरू कर दिया..

अगर नियमों के आधार पर देखा जाए तो बैंककर्मी ने वाकइ गलत किया था लेकिन अगर नैतिकता के तराजू पर तोला जाए तो एक महान कार्य किया था| केवल चार हजार रूपये से अगर किसी की दवाई या घर का चूल्हा जल रहा हो तो इसमें गलत क्या है?


लेकिन न्यूजट्रेडर्स और जजमेंटल लोगों को आदत हो गयी है व्यवस्था को कठघरे में खड़ा करने की और व्यवस्था को हर संभव तरीके से गरियाने की|

जिन्होंने इस पूरे वाकये को करीब से देखा और समझा था वो केवल दुआएं देकर अपने अपने घर को निकल गए लेकिन जिन लोगों ने केवल दूर से नोटों को हाथ में लेते और देते देखा उन्होंने मन से उपजी ये बात फैलानी शुरू कर दी कि सभी बैंकवाले भ्रष्ट हैं और ये सिलसिला बदस्तूर जारी भी है..

उस दिन के बाद से इस तरह की कई बातें सुनने को मिलीं कि बैंक में बाहर से नोट बदल दिएकिसी ने कहा कि मेनेजर ने मेरे सामने एक दुकानदार को पुराने के बदले नए नोट दिए वगेरह वगेरह और हर बार मेरे जेहन में उस दिन के इस वाकये की छवि उभरती रही..कई जगह से बैंककर्मी भ्रष्टाचार में भी पकडे गये लेकिन वो चंद ही थे और चंद लोगों की वजह से पूरी व्यवस्था को गाली देना जायज नहीं|

कहने का आशय ये है कि सिक्के के एक पक्ष को देखकर या किताब के कवर को देखकर फैसला न करें कि वो अच्छी है या खराब..आँखों से दिल में उतरने की भी कोशिश करें..
तालाब में हर तरह की मछली हैलेकिन बस दिक्कत ये है कि बुरी मछली चर्चाओं में हर जगह ज़िंदा रहती है..
जिसकी नीयत जैसीउसे दिखी प्रभु मूरत वैसी...
राहुल -आधा सा लेखक

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