कविता-देखो - RP

करके देखो - LET'S DO

कविता - "देखो "
नकाब ; चेहरे से हटाकर देखो
उजड़ी बस्ती को बसाकर देखो।


कीमत पैसों की समझ जाओगे
मेहनत से ; खुद कमाकर देखो।


हर जर्रे - जर्रे में ; राम बसते है
हृदय सबरी सा ; सजाकर देखो।।


बेरहम होकर; गुलाब तोड़ते हो
कभी पौधों को लगाकर देखो ।


 प्रेम जुदाई की बाते करते फिरते है 
ये है क्या, कभी माँ को गले लगाकर देखो।
 
आजाद देश में बेफिक्र घूमते हो
फर्ज-ए -मिट्टी भी निभाकर देखो।



****राहुल प्रसाद(RP) - आधा सा लेखक  ***




ख़ुशी की बात यह है कि यह कविता sbi magazine / राजस्थान पत्रिका /अमरउजाला में प्रकाशित हुआ।
https://www.amarujala.com/kavya/mere-alfaz/rahul-prasad-accha-lgta-hai-hme

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