TOP 50 SHORT STORY--ये पढ़िए जरूर दिल छू जायेंगे आपके


                 श्रेष्ठलघु कहानी  संकलन - अनुभव आधारित

 ये कहानियाँ हमारे आसपास  की ही हैं ...बस मैं देख लेता हूँ और आप तक पहुंचा देता हूँ। और हा इसके भाव में  प्रेंरना,  समाज  की  कुरुतियां ,दर्द , रोस, किसी बिशेष पर कटाक्ष या व्यंग्य भी हो सकता है लेकिन पुरे धर्म और समुदाय पर नही।
हम तो आइना है दाग दिखाएंगे चेहरे के,जिसे बुरा लगे वो सामने से हट जाए. ... मुझे जमीन की हकीकत पे बात करनी है..

 जो -जो देखता हूँ कहता चला जाता हूँ  ,यही रचना बन जाती है।  -राहुल प्रसाद 

इसमें से कुछ मैंने लिखे है  -RP से सम्बोधित  है और कुछ दोस्तो  के अनुभव और सोशल मीडिया से लिया गया है... Arranging New to Old (update)

मौसम
==========लघु कहानी -
'यार ! आज गर्मी बहुत है . साला ये ए.सी. भी आफ़िस का आज ही खराब होना था . हम तो अब इसके आदी हो गए हैं .'
दूसरा बोला -ये एडमिन वाले भी तनिक ध्यान नहीं दे रहे आजकल !

आफिस LUNCH ROOM म ठंडा पीते हुए बतिया रहे थे ......

तभी एक का फ़ोन घनघनाया .

'पता नहीं कौन क्लाइंट है साला , आराम से दो घूँट ठंडा भी नहीं पीने देते .' उसने अपना फोन जेब से निकलते हुए कहा . देखा तो उसके पिता का फ़ोन था .


'हेल्लो ! PAPA , क्या हुआ ? कैसे फोन किया ?'


'बेटा ! हफ्ता हो गया कमरे में बिना पंखे के दम घुटता है . अगर रिपेयर हो गया हो तो आज शाम ले आना .'


उसने फोन काटकर चुपचाप जेब में रख लिया .... मौसम ठीक हो गया था अचानक!!! RP

दोस्तों मेरी ये छोटी छोटी रचना पसंद आती है आपको तो LIKE शेयर करे ताकी और लोगो तक पहुंच सके मेरी बात। ... लघु कहानी मेरे ऐसे कई रचना मिलेंगे आपको जो अभी की घटना पर आधारित होगी।
धन्यवाद, आपका आभार।
राहुल प्रसाद
लघु कहानी -2
लाकर रहेंगे आज़ादी
सुबह स्कूल पहुँचते ही क्लासरूम में चॉक ढूँढने लगा वो। पैसे  मम्मी की तबियत खराब थी इसलिए वो सफेद वाले जूते धुल नहीं पाई। तो बस कहीं से चॉक मिल जाये तो घिस कर कामचलाऊ सफेदी तो आ ही जाएगी। लेकिन ज़्यादातर क्लासरूम बंद पड़े थे और जो खुले थे उनमें कुछ था नहीं। उसके लिए ये थोड़ा सीरियस मामला था क्योंकि PT वाले सर अक्सर उसको हड़काते थे लेकिन आज स्वतंत्रता दिवस है, आज भी जूते गंदे रहे तो पिट जाएँगे।
ये जद्दोजहद हुआ करती थी जब हम पढ़ा करते थे या हमारे भाई बहन। आज के टाइम पे देखो तो कितनी मामूली लगती है, बल्कि हंसी भी आती है वो समय याद करके। लेकिन ज़रा बालमजदूरी कर रहे के बारे में भी सोचिए ,
स्टेशन के बाहर हाँथ में किताबों का एक गट्ठर लिए, चिल्ला-चिल्ला कर बेंच रहा है। एक किताब हमने भी ली इससे, " कुरुक्षेत्र" दिनकर जी की।
लेकिन क्या लगता है? ये लड़का जब अपनी उम्र का हो जाएगा, तो वो भी अपनी तत्कालीन स्थिति पर ठहाके लगा पायेगा या कलाम जैसे नाम कमा पायेगा या किस्मत को दुत्कारेगा? कि उस दिन ऐसा न होता तो आज ऐसे न जी रहे होते। और ये कोई एक कहानी नहीं है, शहर के सभी चौराहे  पे गुबारे बेचने वालों से लेकर के, चाय की दुकान पर वेटरगिरी करने वाले किसी भी लौंडे से पूछो तो कहानी एक जैसी ही मिलेगी। "बाप रिक्शा चलाता है और दारु पीता है, माँ है नहीं और है तो इतना काम करती है कि फुरसत नहीं, भाई बहनों की गिनती नहीं है।"

पता है एक परिस्थिति नहीं एक श्राप है। जो आज़ादी 70 साल पहले मिल चुकी है उसके जश्न के साथ, तमाम ऐसी आज़ादियाँ हैं जो लेनी अभी बाकी है। चाहे वो इन लड़को के लिए पढ़ाई और बेसिक सुविधाएँ हो बालमजदूरी या वैश्याओं और  वर्ग के मूल अधिकार। महिलाओं की पुरुषों से बराबरी हो या पुरुषों का धूमिल होती छवि। लेकिन यकीन है सब मुमकिन होगा। आज नहीं तो कल: हम लाकर रहेंगे आज़ादी!
अभी जो भी काम मिला है उसको बखूबी कर रह है अपनी तरफ से बेस्ट एफर्ट दे रहे है जिसे  हमे संतुष्टि मिलती है मगर प्रयास जारी है कि एक बड़े रेस्पोसिबिल्टी मिलने का और उस पर खरे उतरने का।

Rp

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Mrs. Banker
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आज गुस्से में घर से खाना भी नहीं लिया था और निकल पड़ा सदानन्द आफिस की तरफ .
'क्या हुआ सदानन्द जी ? आज कुछ परेशान लग रहे हैं आप !' ऊषा ने पूछी .
'कुछ ख़ास नहीं ....सब ठीक है !"
'बहिन कहते हो मुझे और दोस्त भी मानते हो . इतना तो समझती हूँ तुम्हें . तुम्हारा टिफिन भी नहीं है आज . सब ठीक नहीं है सदानन्द !'
'नीता हर बात में मुझे ही दोष देना रोज झगडा करना उसकी बन गया है . कुछ भी नहीं सोचती कि मैं परेशान हूँ और फिर भी रोज झगडा करती है ...जब देखो मुझे ही सिखाती है . तंग आ चुका हूँ मैं .'
'हम्म ! वैसे ये सब मैं भी पूछ्हने ही वाली थी . पहले जैसी चमक नहीं रही तुम्हारे चेहरे पर और तुम्हारा स्वभाव भी बहुत चिडचिडा होता जा रहा है . पर एक बहिन होने के नाते ... सिर्फ इतना कहूँगी कि ख़ुद सोचो उस की जगह बैठकर ! क्या उसे दुःख नहीं होता तुम्हें परेशान   देखकर ? तुम्हारी पत्नी है वो ...तुम्हारे बच्चों की माँ है . तुम्हारा और उसका भविष्य सांझा है . कभी-कभी अपनी गलती मान लेने से तनाव कम हो जाता है . घर सांझा जिम्मेदारी होता है ....दोनों अलग-अलग दिशा में चलें तो जीवन की गाडी सहज नहीं चल सकतीसदानंद !'
सदानंद कुछ देर चुप रहा . फिर फोन मिलाने लगा .
'नीता ! सॉरी यार , मैं जल्द ही सब ठीक करता हूँ . मान लिया अब नुक्सान तो हो ही गया है ...पर घर का नुक्सान सहा नहीं जाएगा . आज मेरा खाना घर रह गया है . क्या मेरा खाना नहीं पहुँचाओगी ....भूखा नहीं मरना है मुझे !'
चेहरा सहज हो गया था . तनाव की जगह अब राहत थी . नीता की मुस्कान और चौड़ी हो गयी थी .
ओ भाई ! आज क्या खिला रहे हो ?'
'कोफ्ते आ रहे हैं Mrs Banker के ..हा हा हा '
~राहुल प्रसाद~आधा सा लेखक

लघु कहानी -
क्या हिंदुत्व दूषित हो गया है ?
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बहुत मुश्किल में हूँ और दुःख भी होता है ऐसा लिखते हुए . क्या हम अपने मूल पर रोयें ? क्या हम इन तथाकथित भगवानों द्वारा छले जाते रहे ?

कहाँ गए वे संत ...जो अपना मठ बेच गरीबों की सेवा को अपना धर्म समझते थे . जो मोक्ष से ज्यादा जरुरी सेवा को मान देते थे .

कहाँ गए वो संत ...जो भरी सभाओं में राजा को लताड़ सकते थे और कांच पीकर मृत्यु तक का सफ़र करते थे .

आधुनिक तथाकथित भगवान् क्यों कंचन और कामिनी के मोह में फंस रहे   हैं ? क्या यह हिंदुत्व का पतन है ? क्या यह लोगों की उदासीनता है ? क्या धर्म अब मृत प्राय है ?

क्यों एक बीयर बार चलाने वाला महामंडलेश्वर बन जाता है ? क्यों एक गोद-गोद झूमने वाली औरत महामंडलेश्वर बन जाती   है ? क्यों एक किन्नर महामंडलेश्वर बन जाता है ?

क्या धर्म आजकल खरीदा-बेचा जा रहा है ? क्या ये बड़े-बड़े डेरे और संत आम भोली जनता का .....उल्लू बना रहे हैं ?

क्या व्यक्तिगत से सामूहिक हुआ धर्म पतन की ओर ले जा रहा है ? क्या वास्तव में मोक्ष का सर्टिफिकेट देने वाले बाबा लोग स्वयं माया के मोह से मुक्त हुए हैं ?

जवाब हम सबको ढूँढने हैं . धर्म कभी भी ऐसा नहीं है जैसा की आचरण से इन तथाकथित संतों और बाबाओं द्वारा दिखाया और सिखाया जा रहा है ? हिन्दू धर्म को बदनाम करने की साजिश है यह दुनिया में यह तथाकथित पत्रकारिता के नाम पर और सनसनी बनाकर अपना टी आर पी बढ़ाया जा रहा है ...तो क्या ऐसे में संतों के लिए भी आचार संहिता की जरुरत है ? क्या कानून को इन पर भी नकेल कसने की जरुरत है ? क्या अखाड़ों को विचार युद्ध की जरुरत नहीं है ? समाज के कल्याण की जगह समाज का खुला शोषण आखिर कब तक?????
ये कलयुग का चरित्र चित्रण है जहाँ स्वार्थ ,लोभ ,अहंकार और वासना अपने चरम पर है और लोग बहकने को ही धर्म मान बैठे है / ♥♥राहुल♥

लघु कहानी -
नहीं बनने दूँगी तुम्हें ...माँ
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चिड़ियों की चहचहाहट उसे बहुत पसंद थी . अक्सर अपने घर के बाहर दाना और पानी रखती थी . एक रोज कोई पंछी बेचनेवाल गुजर रहा था तब उसने एक पिंजरे में सुन्दर चिड़िया देख उसे ख़रीदा था . फिर उसकी अकुलाहट देख उसका जोड़ा भी बनवाया था . दोनों चोंच लड़ाते चहकते रहते थे .

वह बहुत खुश थी . लेकिन समय सदैव एक सा नहीं रहता . जब-जब उसके मन में अपने बेटे का ख्याल आता . उस चिड़िया की आवाज उसे ऐसा लगता जैसे काट डालेगी कलेजे को .

गर्मियों के दिन थे . चिड़िया पिंजरे में बहुत फुदक रहीं थीं . उसने देखा तो पिंजरे एक हल्का नीला  -सफ़ेद अंडा पड़ा हुआ है . बुढ़िया जैसे पगला गयी थी . उसने तुरंत डंडा उठाकर पिंजरे पर दे मारा . पीली  जर्दी बाहर निकल पड़ी थी .

चिड़ियाँ बहुत दुखी होकर पंख फडफडा रहीं थीं . इधर बुढ़िया भी आंसू बहा रही थी . मत रोओ तुम ...ये दुःख कुछ देर का है ....जब बच्चे उड़ जायेंगे तो ये दुःख मरने तक हो जाएगा ...मैं तुम्हारा हाल अपने जैसा नहीं होने  दूँगी. नहीं बनने दूँगी तुम्हें ...माँ !

समसामयिक संदर्भ में ऐसो आराम के लिए लोगो को अपने घर परिवार को छोड़ने की सोच
जीवन की ये भी रीत बन सकती है की माँ बच्चे को जन्म ही देना छोड़ दे ।
#मुंबई#बेटा#माँ कंकाल#  बेहद दुखद -झकझोर दिया मुझे।


मुस्कान की पूँजी
==========लघु कहानी -

पिछले दो तीन दिन से हेमलता न तो नेट पर एक्टिव दिखाई दी न ही कोई फोन आया तो उसने सोचा कि घर चलकर हालचाल मालूम किया जाय उसका . उसने  टैक्सी बुक की और पहुँच गयी .

दरवाजा किसी पुरुष ने  खोला था  . पहली बार उसे देखा था . मन आशंका से भर गया .

'भाई साहब ! हेमलता तो ठीक हैं न ? कहाँ हैं वो ?'

'आइये ! सब ठीक है . दरअसल हम दोनों जरा बाहर चले गए थे .'

हेमलता आते ही सीमा से गले लगी . आज उसके चेहरे पर पहले जैसी मायूसी नहीं थी वह बहुत खुश थी .

'अरे! क्या बात है ये साठ का फूल तो पच्चीस की तरह मुस्कुरा रहा है ! नजर न लग जाय मेरी ....हा हा हा ' नुपुर बोली .

'हाँ, यार ! कब तक मन को मारती अपने . बच्चे अपने घरों के हो गए . मैं चौकीदार बनी अपने रुदन की सीटियाँ कब तक बजाती रहती  सिसकियों से . सोच लिया कि जब वो खुश हैं तो मैं क्यों दुखी रहूँ .
ये मेरे फेसबुक के दोस्त थे . पत्नी का स्वर्गवास हो गया . बच्चे बाहर सेटल हैं . अकेले थे . मुझे समझते भी हैं . सो हमने दोस्ती को रिश्ते में बदल लिया ...अब तू इन्हें जीजा जी कह सकती है ...हा हा हा .' हेमलता उसे बाहों में भरते हुए बोली .

सीमा एकटक निहारती रही . उसे बहुत अच्छा लग रहा था . उसे अहसास हुआ कि औलादों की भेजी गयी पूँजी से ज्यादा जरुरी है जीवन की असली ख़ुशी ...मुस्कान की पूँजी .
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जीत व्यावहारिकता की, हमे लगता है भविष्य शायद यही है।
सुखद बदलाव की तरफ़ इशारा है। वृद्धाश्रम में रहने से अच्छा है कि दो लोग एक दूसरे का सहारा बन जायें।
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  अपनी ताकत
==========लघु कहानी -3  

आफिस से लौटते हुए रफ़ीक को देखकर सुरेन्द्र बोला -

'भाई जान ! गली में बहुत गन्दगी है . शिकायत कर के  भी देख लिया . कोई फायदा नहीं निकला . सब लोग मुँह बना के चले जाते हैं पर करता कोई कुछ नहीं है .'

'हा हा हा ...सुरेन्द्र भाई ! जो होता है करने से होता है . आदमी जब किस्मत बदल सकता है तो क्या गली की हालत नहीं !'

'पर ये काम हमारा तो नहीं है !'

'भाई ! गली हमारी है बस इतना याद रखो . पांच मिनिट रुको और जरा पैंट चढ़ाकर तैयार हो जाओ ! मैं भी  आता हूँ .'

रफ़ीक के साथ उसका बड़ा बेटा और दोनों भाई भी थे . जिनके हाथों में तसले , फावडे और झाड़ू थी .

'सुरेश भाई ! आ जाओ !'  उसने आवाज लगाईं और वह गली के एक सिरे से शुरू हो गया . कूड़ा उठाकर बोरी में भरना शुरू कर दिया . फिर झाड़ू से साफ़ किया . नाली का गंद निकालकर बाहर करना शुरू कर दिया . गली के और लोग भी देखा देखी अपने घर के सामने कूड़ा उठाने लगे . जो लोग अभी तक पांच दिखाई दे रहे बारह पंद्रह में बदल गए .

तभी सुरेश की पत्नी ने सबको आवाज लगाईं .

'सब यहाँ आ जाइए . चाय तैयार है .'  सबने हाथ धोये और चाय पीने लगे .

औरतों ने बाल्टियां निकाल पूरी सड़क को धो डाला . बच्चों ने भी अपना काम किया और नाली के बगल में चूना डाल दिया .

'सुरेश भाई ! किसने किया है ये सब ? अरे! भाई हम अपनी ताकत को जानते ही नहीं हैं . सब मिले तो मिल गयी आजादी इस कूड़े से और गन्दगी के कारण फैलने वाली बीमारियों से .'

'सही कहा भाई जान ! अगर हम सब मिल जायें तो कोई भी गन्दगी और बीमारी नहीं बचेगी फिर मोहल्ले की हो या देश की .'

'हा  ...सही कहते हैं आप ! अब कल सुबह पार्क का नंबर है . उसके बाद सब मिलकर आजादी का जश्न मनाएंगे और वन्दे मातरम् गायेंगे .'

'यानि कि मजहबी गन्दगी भी दूर ....हा हा हा .'
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आजादी का जश्न
==========लघु कहानी- 4 
अरे! आज भी काम पर हो ? क्या आजादी का जश्न नहीं मनाओगे ?' छावनी के  बाहर बैठे मोची को देखकर सैनिक बोला .

'साहब ! भूख से आजादी नहीं मिली है . देश की आजादी का जश्न मनाने ही तो यहाँ आया हूँ !' मोची बोला .

'मतलब नहीं समझा भाई !"

'साहब ! आप मुस्तैदी से देश की रक्षा करते हो दिन रात  . मैं आप सब के जूते पॉलिश करता हूँ . आप है देश के सेवक और मैं आपका सेवक . आपको सेल्यूट करना चाहता हूँ ...मगर मजबूर हूँ ...ठीक से खड़ा नहीं हो सकता . आप से सीखा है कि सेवा कैसे की जाय .'

सैनिक ने तनकर उसे सेल्यूट किया .

'जय हिन्द साहब !'

'जब तक लोग तुम्हारी तरह सोचते रहेंगे और काम करेंगे . हर लम्हा जश्न का होगा ...हर लम्हा बेकारी और भुखमरी से आजादी का जश्न होगा .'

ऐसी हस्तियों की कमी है मां भारती.ऐसा उत्पादन बढाओ न मां ।

ये लघु कहानी  मेरे आर्मी दोस्त  का अनुभव था ।   उन का  आभार और नमन।
***

इस्लाम खतरे में है
==========लघु कहानी -5 

'अबे! महमूद ये तिरंगा लिए कहाँ जा रहा है ?' मौलवी साहब ने पूछा .

'सलाम ! आज हमारे स्कूल में आजादी का जश्न मनाया जाएगा और मैं वहां पर वन्देमातरम गाने वाला हूँ ,' वह ख़ुशी से तिरंगा दिखाते हुए बोला .

'नामाकूल ! तुम लोग जहन्नुम में जाओगे . ये इस्लाम के खिलाफ है .' लगभग चीखते हुए मौलवी साहब बोले .

'सही कह रहे हैं आप , जितने भी बादशाह संगीत और नाच देखते थे सब जहन्नुम में गए  , वो मुसलमान जिनकी रोजी रोटी तिरंगा पतंगों से चलती है , वो सेनायें जो तिरंगा लिए हम सब की  जान बचाती हैं ,,,जरुर जहन्नुम में जायेंगी ....आपके झूठे इस्लाम की वजह से . आप के इस्लाम ने दुनिया को क्या दिया ?   ....क़त्ल ओ गारद ! आप अपनी सोच के साथ जिंदा ही जहन्नुम में हैं ....इस्लाम आप जैसे लोगों के ख्यालों की वजह से खतरे में है .'

और वह शान से तिरंगा लिए ....सुजलाम सुफलाम ...गुनगुनाते हुए आगे बढ़ गया .

ज़िन्दा लाश
==========लघु कहानी -6 

सुना है बहिन जी आप नए घर में जा रहीं हैं !'

'हाँ, बहिन मेरे लड़के ने नया फ्लेट लेकर दिया है ऊँचे स्काई  टॉवर में . जानती हो पच्चीसवीं मंजिल पर है हमारा घर .'

'और तुम्हारे साथ कौन रहेगा ?'

'अकेली का क्या बहिन ! यहाँ रहे या वहां .....मरना तो है ही एक दिन !'

'माफ़ करना बहिन ! मुझे कहना  तो नहीं चाहिए , पर कहती हूँ कि  यहाँ बस्ती में गन्दगी है , शोर है , झगडे हैं ....मगर जिन्दा तो हैं हम . वहां तो कोई मरा पड़ा रहे ...कोई पूछता भी नहीं है .'

'हेल्लो ! बेटा ...क्या तू मुझे जीते जी मार देना चाहता है ? मैं नहीं जाउंगी उस सुनसान शान्ति में ....मैं यहीं ठीक हूँ . कम से कम यहाँ ज़िन्दा लोग तो हैं जो लड़ते-मरते हैं , चिल्लाते हैं , राम-रहीम करते हैं ...मुझे मरना नहीं है ...मौत से पहले .. ज़िन्दा लाश बन के .'
----माँ बाप को बुढ़ापा में छोड़ने वाले एश्बाज़ बेटे देखो आज   कैसा डर  पैदा कर दिए समाज मे.

हम भी इंसान हैं
==========लघु कहानी -7 

कमरे में घुप्प अँधेरा देखकर पत्नी ने लाईट जलाई तो अपने डाक्टर पति को रोते हुए देख सन्न  रह गयी .

'अजी ! क्या हुआ है जो आप रो रहे हैं ?

'सरला ! बहुत बुरा हुआ है , ज़िन्दगी में मौत तो बहुत देखीं हैं मैंने पर इस बार जो मौत का तांडव हुआ है . उसने मुझे अन्दर तक हिला दिया है . एक दो नहीं .......पैसठ नौनिहालों की मौतें !'

'तुम्हें दुखी होना चाहिए , मगर ये सोचो कि जो बीमारी से लड़ रहे हैं उनको तुम्हारी ज्यादा जरुरत है . ये शोक मनाने का समय नहीं है . उठिए ! काम पर चलिए . यहाँ मैं हूँ न ....अपनी तो एक ही बिटिया है ...वहां तो कईयों की आँख के तारे आपका इंतज़ार कर रहे हैं .'

'लोग हमें जल्लाद कह रहे हैं ."

'तो जाओ ! और उन्हें दिखा दो कि हम जल्लाद नहीं हैं ...हम भी माँ-बाप और इंसान हैं .'

डाक्टर ने अपना बैग लिया और रात को ग्यारह बजे निकल लिया   बीमार बेटी को छोड़ ...इंसानियत का फ़र्ज़ निभाने .

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कर्तव्य पराणता में पत्नी का सहयोग प्रसन्ननीय।
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लौटना  ही पडेगा
==========लघु कहानी -/=8 
गांव से आये युगल नोकरी करते करते बड़े शहर में शिफ्ट हो गए।


' महेश ! तुम्हारा मेल आया था . क्या तुम कल अपने पिता को देखने जा रहे हो ?'

'यार ! यहाँ ज़िन्दगी की वाट लगी हुई है और तुम कह रही हो छुट्टी कर वहां गाँव में देखने जाऊं . न वहां ए. सी. है न कोई साधन . कमाल करती हो यार !'

'और पिता जी का क्या ?'
'वो तो पैदा ही वहां हुए हैं गाँव में ....सब सह लेते हैं .'

'कुछ दिन तुम नहीं सह सकते ? मैंने छुट्टी ले ली है . तुम भी तो गाँव से ही आये हो !'

देखो मेरे कितने दोस्त फॉरेन सेटल हो गए वो भी तो मैनेज करते ही है न! मोह माया पीछे दखेलती है ...
'यार ! अब लौटा नहीं जाता पीछे ..ज़माना आगे बढ़ रहा है .


'और सम्बन्ध ?'

'बाबूजी को रेंट मिलता ही है 20 कमरों का सब अपना ही तो है गाँव का ... फिर भी पैसे भेज देता हूँ उन्हें .'

और वह ताली बजाते हुए दूसरे कमरे से निकला सोनू कहते हुए।

'वैरी वेल पापा ! फॉरेन मैं भी जाऊंगा ...
 मैं भी पैसे ही भेजता रहूंगा .

बेटे की बात सुनते ही उसे करंट लगा जैसे .

'सुनो ! कपडे लाओ !...भविष्य के लिए ....लौटना  ही पडेगा .'

#खरी बात से कभी कभी लोगो के लिए जज़्बा जगाना ज़रूरी हो जाता है।
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लघु कथा- भाई बहन का भाग 1 है
 बलिदान
=======लघु कहानी -9   
'ये क्या हो गया ? हाय ! राम .' और दीपक की माँ अपना सर पकड़ कर बैठ गयी .

'अरी ! भागवान क्या हुआ है ? अपना सर पकड़ क्यों बैठ गयी ?'

पत्नी ने अखबार आगे कर दिया . बेटे के साथ एक लड़की की फोटो थी ..जिसमें लिखा था दीपक लड़की  को लेकर फरार था .

'ओह ! ऐसा कैसे हो सकता है ? इस लड़की ने तो उसे राखी बाँधी थी . इसकी फोटो भी भेजी थी उसने व्हाट्सअप पर . जरुर कोई गड़बड़ है ... दीपक ऐसा नही है अपने वाइफ को धोखा नही दे सकता।

'हेल्लो ! ' फोन बजता रहा मगर कोई आवाज नहीं आई .
पिता को  हिचकिचाहट था मगर हिम्मत कर बहू को .... . उसने फ़ोन लगाया .

'हेल्लो ! बेटा , मैं दीपक का पापा बोल रहा हूँ . ये अखबार में क्या है ? क्या ये सच है ?'

हस्ते हुए बोली
बाबूजी ! ये सब झूठ है... दीपक को फंसाया गया है . दिखाया गया पेपर में।

'लेकिन क्यों ?'

'बात ये है कि लड़की के पिता उसकी शादी किसी लड़के से अमेरिका में करना चाहते थे और उसे ये पसंद नहीं था .इसलिए ऐसा किया है ताकि शादी भी रुक जाय और वह जिस चाहती से उसी से शादी कर सके . आज शाम तक सब ठीक हो जाएगा .
आप चिंता न करें . दीपक ने सिर्फ अपनी बहिन के लिए बलिदान दिया है. आजकल कुछ लडाइयां भाई इज्जत दांव पर लगाकर भी लड़ते हैं .
यह क्या बात हुई?
जो लड़की अपनी इज्ज़त को अखबार की सुर्खी बनाने की हिम्मत रखती है पर अपने पिता से अपनी शादी का विरोध नहीँ कर सकती? बाबूजी ये तो समाज की सोच हैं क्या करेगी  बहुत कोशिस की पर उसके घर वाले नही माने।
'...ओह दीपक अभी तक सुधरा नही कुछ पल के लिए हम भी डर गए थे।
उसके हेल्पफुल वाली आदते अभी तक गयी नही!!!
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सब कुछ insaanपे निभर्र है  कौन अपना कौन पराया।
नही तो आजकल लोग अपने फ़्रेंड की बहन जो की उसकी भी बहन के समान ही है फिर भी लोग गर्ल फ़्रेंड बनाये घूम रहे है।

लघु कथा- भाई बहन का भाग 1 है इसके विपरीत भाग -2 में आपको पढ़ने को मिलेगा ।

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लघु कथा भाई बहन का भाग 2 है।
कीमत
==========लघु कहानी -10   
'ले आये साड़ी अपनी बहिन के लिए !' पत्नी ने लगभग गुर्राते हुए बोला .

'हाँ, ले आया हूँ .'

'मेरे भाई बहिन का तो तुम्हें कुछ याद रहता नहीं कि कब शादी की साल गिरह है , कब जन्म दिन है और इस मुई मुंहबोली का कोई त्यौहार मत छोड़ना . न जाने इस आदमी को कब अक्ल आएगी कि किसी को बहन मान  लेने से कोई बहिन नहीं बन जाती . जिस दिन कोई लांछन लगा दिया तो मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगे .'

'यार! कितनी बार कह चुका हूँ, भगवान् ने तुम्हें सब कुछ दिया  है मगर जब तक तुम ये ताने, ये झगडा न कर लो तुम्हें चैन नहीं मिलता ! तुम्हारा त्यौहार नहीं मानता !'

'पगला गयीं हूँ मैं , चले जाओ किसी अच्छी के पास . जैसे बहिन बनाई है बीबी भी बना लेना कोई . तुमसे तो दिमाग  ही  फिजूल है . ..कुछ हो जाय तो फिर मुझे मत दिखाना अपनी लटकन सी सूरत .'
और वह अपने भाइयों के लिए लाई राखियों को सहेजने लगी .

वो मन ही मन सिर्फ यही सोच रहा था कि ये भरे पेट वाले इतने खाली क्यों होते हैं . .कभी कभी सोचता -आमिर घर में शादी करके मानों फस ही गया है !
इसके लिए शायद राखी की भी कीमत रुपयों में हो ..
इससे  मुह लगाना समुद्री मागर्मक्ष में मुह  हाथ डालने जैसा है।
छोडो..उसके  लिए इस साडी की कीमत तय करना उसका घटिया सोच है।
  मगर मेरे बहिन लिए इसकी कीमत सिर्फ प्यार है। उससे वर्षो से दूर हु
  उसके आँसू और उस पीले धागे की कीमत सिर्फ प्रेम और विश्वास है .. फिर एक और बहन को खोना नही चाहता. बहन सम्मान तो भाई का फर्ज है....
सुबह फ्लाइट से उसकी पत्नी अपने मइके चली गयी राखी बांधने
और ये भी गांव की ट्रेन पकड़ अपनी बहन से राखी बान्धवने
निकल गया।।।
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ये दोनों लघु कथा की कड़ी prove करता है सब कुछ insan की सोच निर्भर है।


व्यंग्य -राजनैतिक पिशाचों के लिए सब कुछ सम्भव है.

पूरी ईमानदारी
==========लघु कहानी -11 

'साहब ! बहुत बड़ा बबाल हो गया .' पी ए बोला .

'अबे! क्या हो गया .; अपनी जांघ पर बैठी लड़की के बाल चेहरे से हटाते हुए बोला .

'साहब ! आपके लाडले ने एक लड़की के साथ बालात्कार की कोशिश की और पुलिस पकड़ कर ले गयी .' पी ए बोला .

'बेबकूफ ! कमिश्नर को फ़ोन लगाओ कि उसे तुरंत छोड़े ....हम काम पूरा करके ख़ुद ब्यान देंगे इस मुद्दे पर .'

'भाइयो और बहनों ! मैं ऐसे नालायक लडके को माफ़ नहीं करूंगा . इसको कानून सजा देगा . आप भरोसा रखिये पूरी ईमानदारी से जाँच की जाएगी .'

और सब लोग खिलखिलाकर हँस पड़े ।
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 कानून तो एक वायरस है जो मृत प्रायः होता है और उपयुक्त वातावरण में ही सक्रिय होता है।

भाई
======लघु कहानी -12   

"सुनो ! बहिन " एक जवान ने बगल से गुजरती लड़की से कहा .

'सलाम ! पर मैं आपकी बहिन नहीं हूँ . आपको कोई ग़लतफ़हमी हुई है .'

'नहीं , कोई गलती नहीं हुई है मुझे दरअसल ....."

'या ख़ुदा ! दरअसल क्या ....मैं मुसलमान और तुम हिन्दू ! हम भाई बहन कैसे हो सकते हैं ? मुए यहाँ क्या कम मर्द हैं जो आप लोग भी हमें सताने लगे !"

'नहीं बहन ....दरअसल ...."

'अरे! क्या दरअसल ?' वह झल्लाते हुए बोली .

'दरअसल बात ये है कि मेरी बहिन ने राखी भेजी और मैं चाहता हूँ कि ये राखी मुझे तुम बांधो !'

'मुझे माफ़ करना भाई जान ! मैं आपको गलत समझ बैठी . आप लोग यहाँ नहीं होते तो हमें कौन बचाता . तुम लोग कुछ भी नहीं लगते पर हमारी इज्जत और हमारे मुल्क के लिए अपनी जान हथेली पर लिए घुमते हो अपनी बहन ....अपने परिवार से ...माफ़ कर दीजिये मुझे .' उसकी आँखों से बहते आंसू उसके गुलाबी चेहरे पर उतर आये थे .

हाथ में राखी बांधकर जैसे ही वह चलने लगी तो जवाँ ने पांच सौ का नोट उसके हाथ पर रख दिया .

'भाई जान ! काश हम कश्मीरी बहिनों को भी आप जैसे भाई नसीब हुए होते तो ये जन्नत ....जहन्नुम न बनती .'..जवान उसके आंसू पोछते हुए कहा तेरा एक भाई ही काफी है तेरे मुल्क के लिए।
 और उसने जवान के हाथ को चूम लिया ...
जो लोग देश के सेवा करते है उनकी सोच को परखना खुद में बेईमानी है। फिर भी हमारे देश कुछ बुद्धजीवी
यही विश्वास को धूमिल करने का प्रयास कर रहे।-दुखद
**ये लघु कहानी आर्मी दोस्त के सौजन्य से आप तक पहुचाने की लिए उसका आभार और नमन।

बराबरी करूं क्या ?
==========लघु कहानी -13 
'तुमको तो कुछ दिखाई नहीं देता , वो उस चपरासी की बीबी को देखो कैसा बन के रहती है . और एक तुम हो की बाबू होते हुए भी उसकी बराबरी नहीं कर सकते !'

'भागवान ! रहने दो ये राग . उसकी दूसरी बीबी है , उस से अठारह साल छोटी है ...अब प्रमोशन भी होने वाला है पत्नी कृपा से ! मैं भी बराबरी करूं क्या ?'

भाई  आजकल ज्यादा कहना मना है ..लोग पाठ बहुत पढ़ाते हैं .इसलिए एक छोटा सा बयंग्य से कटाक्ष है बेशर्मो पर।
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पुण्य के भागीदार
==========लघु कहानी -14 
'भाई ! ये सेब  और केले कैसे दिए हैं ? ग्राहक ने पूछा .

'सेब सौ रुपये और केले साठ रुपये .'

तभी एक महिला आई और उसने भी भाव पूछा .

'बहिन ! जी सेब  बीस रुपये हैं और केले दस रुपये दर्जन !'

'भैया ! एक किलो सेब और एक दर्जन केले दे दो !' और उसने पचास का नोट आगे कर दिया .

पहला ग्राहक कुछ बोलना चाहता था मगर दुकानदार ने उसे  इशारा कर बोलने से मना कर दिया .

दुकानदार ने सामान महिला के झोले में डाल दिया और बाकी पैसे उसे दे दिए . जैसे ही वह बाहर गयी दुकान से पहला ग्राहक गुस्से से बोला -

'कैसे अजीब आदमी हो यार ! मुझे इतना महंगा और उसे इतना सस्ता माल . क्या मेरे पैसे मुफ्त के आते हैं ?'

'भाई साहब ! वो एक विधवा और चार बच्चों की माँ है . उसका बच्चा असाध्य रोग से लड़ रहा है. वह किसी से मदद नहीं लेती . इसलिए मैं उसे कम दाम पर सामान बेचकर उसकी मदद करता हूँ . आप से मैंने कोई बेईमानी नहीं की है .'

'मुझे माफ़ करना भाई साहब ! मैंने आपको गलत समझा , आपने बहुत सही किया . ऐसा कीजिये मेरा सेब और केला डबल कर दीजिये . अकेले तुम ही इस पुण्य के भागीदार क्यों बनों....कुछ हिस्सा मुझे भी मिलना चाहिए ,,,

(एक व्हाट्सअप  मेसेज से )

राष्ट्र मंदिर
==========लघु कहानी -15 
'भाई साहब ! कहाँ से आ रहे हैं ?'
'भाई जी ! बिटिया के लिए रिश्ता तलाश रहा हूँ पर लोगों के मुँह बहुत बड़े हैं , कहीं कुछ चाहिए, कहीं कुछ .'

'एक पुजारी से रिश्ता करोगे ?'

'पुजारी से ? मजाक क्यों करते हो भाई ! वैसे ही परेशान हूँ .'

'नहीं भाई ! मजाक नहीं कर रहा हूँ . सरकारी नौकरी है और ज्यादातर पूजा में व्यस्त रहता है . बहुत ही मजबूत है और दबंग भी .'

'कहाँ रहता है ? मंदिर कहाँ है ? किस का बेटा  है ?'

'फिलहाल समंदर में है , जहाज उसका पूजा स्थान है और सारा देश उसका मंदिर है और मेरा बेटा है ....फौजी है जल सेना का .'

'अरे ! भाई , पहले क्यों नहीं बताया ....मैं बेकार ही मकानों में दामाद तलाश रहा था . राष्ट्र मंदिर का पुजारी दामाद कौन नहीं चाहेगा !'

'देश बदल रहा है
==========लघु कहानी -15 

'डाक्टर साहब ! ये लीजिये ऑपरेशन के पैसे.' और उसने मेज पर पैसे रख दिए .

'कितने हैं ?'

'जितना आपने कहा था जी ! पूरे दो लाख हैं .'

'भाई ! वो तो GST आने से पहले का था . तीस हजार और लाओ !'

'पर साहब ! डाक्टर नहीं बदला , मरीज और मर्ज़ नहीं बदला तो फिर बढ़ोत्तरी किसलिए ?'

'भाई ! देश बदल रहा है .'

# करप्शन और corrupted लोगो से संबंधित बयंग्य।


विश्वास का  चाँद
==========लघु कहानी16 
बहुत गहरी रचना

विवाह का घर .नई आयी दुल्हन और सुहागरात .बाहर  हंसी ठहाकों  की आवाज . और नवेली कुम्हलाई सी बैठी थी . क्या कहेगी ? कैसे कहेगी ? कल क्या होगा ? सैकड़ों सवाल ...मेकअप के बाबजूद भी उसकी रंगत उड़ा  देने पर आमादा थे .
संजय को लगभग धकेलते हुए उसकी भाभी ने हंसते हुए नवेली के कमरे में भेजा . और बाहर से कुण्डी लगा दी . संजय नवेली की तरफ बढ़ा  तो नवेली की कजरारी आँखों में आंसू थे .
'क्या हुआ ? तुम रो क्यों रही हो ? क्या तुम खुश नहीं हो इस शादी से ?' संजय बोला .
'वो बात नहीं है जी ...बात ये है कि ....'
'क्या बात है ? डरो मत मुझसे कहो ! अगर मैं कुछ कर सकता हूँ तो जरुर करूँगा .'
'कल सुबह चादर देखी जायेगी और आपके साथ सब मेरी हँसी उड़ायेंगे .' और वह फिर से रोने लगी .
'ओह ! तो ये बात है ....पगली कहीं की .' संजय ने अपनी कमर से कटार निकाली और अपने अंगूठे को काट खून के कुछ कतरे सफ़ेद चादर पर टपका दिए .
'ये क्या किया आपने ?' नवेली ने उसका अंगूठा चूसते हुए कहा .
'पत्नी बनाया है तुम्हे ...सिन्दूर मांग  में भरा है...दिल में उतरने के लिए अगर रास्ता खून से होकर बनता है तो बहुत आसान है ....तुम्हारी इज्जत ...मेरी इज्जत है नवेली .'
और अँधेरी रात में  विश्वास का  चाँद .... ज़िन्दगी के पहले  मिलन को सदैव के लिए    संजय को चाँदनी का कर गया .  
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देश से क्या लेना देना ?
==========लघु कहानी -17 
'भाई ! आज बहुत देर से पहुंचे , क्या बात है ?  बाबूराम ने पूछा .

'भाई ! कैसे पहुंचा हूँ ये पूछो ! न जाने क्या हो गया है इस देश को ,  हर कोई सुविधा चाहता है बस .'

'वो तो हमारा हक़ है . हम सरकार बनाते हैं तो उम्मीद भी तो उसी से रखेंगे !' रामबाबू बोला .

'हाँ, सिर्फ सुविधा पर हक़ है , सिक्के का दूसरा पहलू कर्तव्य भी तो है . धरने प्रदर्शन में जितनी उर्जा और पैसा खर्च होता है उतने में तो किसी भी इलाके की तकदीर और तस्वीर बदल सकती है .''समझा नहीं मैं , क्या कहना चाहते हो ?'
'अरे ! भाई, आरक्षण के लिए गाडी रोकेंगे , आग लगायेंगे , धरने देंगे , कानून हाथ में लेंगे पर सफाई के लिए सरकार को कोसेंगे, महंगाई के लिए सरकार को कोसेंगे .  क्या कभी किसी ने सोचा है कि सरकार है क्या ? हम ही लोग सरकार हैं . क्या मरते हुए जवानों के लिए किसी ने धरना दिया है ? क्या जवानों के परिवार की मदद कभी हम करते हैं ? हम में से कितने लोग सैनिक कल्याण कोष में दान देते हैं ? देश भक्ति के नारे लगाना भर देश भक्ति नहीं है . शहीद के जनाजे में शामिल होना कोई इवेंट मैनेजमेंट नहीं है . अगर श्रद्धा है देश और देश के जवानों के प्रति तो और कुछ नहीं बनता तो सम्मान तो दे ही सकते हैं . ''बात तो तुम सही कह रहे हो मगर ये बात इनको बताये कौन ?'ये भी खूब रही , ये सोशल मिडिया पर , अखवारों में और सडकों पर हंगामा मचाने वाले क्या ये नहीं जानते कि यह देश का नुकसान है . विरोध नहीं उसके तरीके बदलने की जरुरत है और पहले देश को रखकर काम करने की जरुरत है . मालूम है मैं फौजियों की गाडी में मिन्नतें करके किसी तरह पहुंचा हूँ ....ये रेल रोकने वाले क्या जाने कि किसी को तकलीफ भी होती है इस सब से .'
'भाई ! यहाँ सब को अपनी-अपनी तकलीफ से मतलब है ....देश से क्या लेना देना ?

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लघु कथा ......जड़
शायद ये हर शख्स के साथ हो रहा है...

बचपन से किशोरावस्था तक के दिन याद आते हैं..जिस इंसान से मिलते थे वो दोस्त होता था..उसकी जाति, उसके धर्म, उसके सामाजिक status, पारिवारिक पृष्ठभूमि से कोई मतलब नहीं था..
स्कूल के समय तो दोस्त ऐसे लगते थे जैसे अपने ही परिवार के सदस्य हों..कई बार समझ ही नहीं आता था कि ईद पर हमारे यहाँ सेंवई क्यों नहीं बनती और इसे खाने के लिए वसीम या रईस के घर क्यों जाना पड़ता है..
क्रिसमस पर फेलिक्स ही क्यों केक खिलाता है..
स्कूल लाइफ तक ज़िन्दगी नाम लेते लेते, काम लेते लेते, मौज और आराम लेते लेते कटी

फिर हम सब हो गए 18 वर्ष के..Adult franchisee दिमाग पर हावी हो गया..सियासत के मायने समझने लगे क्योंकि मताधिकार मोड एक्टिव हो गया..फिर नाम के साथ उपनाम भी महत्वपूर्ण हो गया..

उसके बाद दोस्तों के धर्म, जाति, सामाजिक पृष्ठभूमि सबपर हम गौर करने लगे..लोगों के सरनेम पर नज़र जाने लगी..उनके गृह क्षेत्र पर ध्यान जाने लगा..जिन दोस्तों के साथ कभी मतभेद नहीं होते थे उनसे विचारधारा के आधार पर मनभेद होने लगे..

पहले मुलाकातों पर जहाँ एक दुसरे की ख़ुशी परेशानी साझा होती थी वहां अब विचारधाराओं के टकराव की बहस होने लगी...

कई बार रस्ते में दोस्तों के मिलते समय नमस्कार इसलिए भी नहीं हुआ क्योंकि राजनीतिक रूप से दोनों के विचार पृथक थे।

ये सब कुछ शुरू हुआ 18 के बाद...Adult franchisee वाले अधिकार के बाद...अपनी पसंदीदा पार्टी का सिम्बल जब दोस्ती पर भारी पड़ गया तब से ये सब शुरू हुआ..यानि इसकी जड़ है सियासत

निष्कर्ष ये है कि जो लोगों के बीच बड़ी बड़ी दीवारें बन गयी हैं न जो दिखती तो नहीं है पर हैं बहुत विशाल...इसकी मूल जड़ ही सियासत है..
सियासत हर रोज़ इस दीवार में जानदार सीमेंट डालकर इसे रंग रोगन कर मजबूत बना रही है...

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दिल छू लेगी ये Story
एक बार जरूर पढें..................*
 .
एक 14 साल के लड़के को अपनी ही क्लास
 की लड़की जिसकी उम्र 10 साल
 थी,से प्यार
 हो गया
 पर वो कह नही पा रहा था क्योकि वो लड़की
 अमीर
 थी।.....वह लड़की बहुत ही खुबसूरत
 थी।.....वो कई
 बार अपने प्यार का इजहार करना चाहता था पर
 बार बार उसे अपनी गरीबी का एहसास
 हो जाता था
 तभी वो कभी कह
 ना सका।......लड़की के लिये उसके दिल मे
 प्यार और बढ़ता गया।.....दिन बीतते गये. स्कूल
 का आखिरी दिन आ गया।......लड़का अपने घर
 से
 स्कूल आ रहा था तभी उसे रास्ते मे
 उसी लड़की की फोटो मिली। लड़का
 बहुत
 खुश हुआ,और उसे अपने प्यार
 की आखिरी निशानी समझ
 कर रख लिया।.....समय
 बीतता गया लड़का बड़ा होकर उस
 लड़की को जिंदगी भर तलासता रहा पर
 वो ना मिली।.....कुछ दिनो बाद लड़के की शादी
 एक खुबसुरत लड़की से हो गयी।
 लकिन
 वो आज भी लड़की से प्यार करता था।......एक
 दिन
 वो उसी लड़की की फोटो देख
 रहा था तो उसकी पत्नी ने पुछा" कि ये कौन है और
 आपको कहां से मिली!?"लड़के ने कहा कि तुम
 इसे
 जानती हो? लड़की ने कहा "ये मेरी बचपन
 की फोटो है । मै इक लड़के से प्यार
 करती थी और उसे देने जा रही
 थी पर रास्ते मे खो गयी थी।
 शायद
 भगवान को मेरा प्यार मंजूर ना था।"लड़के ने उस
 लड़के का नाम पूछा और कहा कि तुम आज
 भी उससे
 प्यार करती हो?लड़की ने नाम बताया और कहा मै
 उसके सिवाय और किसी से प्यार
 नही करती".....लड़के ने नाम सुना और रोते हुये
 अपनी बचपन की फोटो दिखायी और
 कहा कि क्या ये ही वो लड़का हैँ....लड़की ने
 कहा हां तो क्या आप ही वो......???दोनो अपनी 2
किस्मत पे रोकर खुश होते है
 कि उन्हे
 अपना प्यार मिल गया.....
अगर प्यार
 सच्चा हो तो खुदा को भी उसे
 मिलाना पड़ ता है......

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विषय – काजल
शिर्षक – स्वाभिमान
” तुम खुद को समझती क्या हो ? तुम्हे वही करना होगा जो मै कहूंगा | पति हूं मैं तुम्हारा | मुझे तुम्हारा ये सजना संवरना ज़रा पसन्द नही | घर में रहो घर का काम करो इस से ज़्यादा उड़ने की ज़रूरत नही | ”
” मैने ऐसा किया क्या जो आप इतना सुना रहे हैं मुझे |”
” मेरे सामने ज़बान लड़ाती हो | अभी के अभी घर से निकाल दूंगा दर दर मारी फिरोगी | कोई है भी तो नही तुम्हारा |”
इतनी बात मोहिनी के स्वाभिमान को चोट पहुंचाने केलिए काफी थी | वो उठी और कमरे में चली गई | इधर रमेश मन ही मन गद्गद था अपनी जीत पर |
मगर ये क्या मोहिनी कुछ ही देर में वापिस आई | होंठों पर लिपिस्टिक और अपनी बड़ी सी खूबसूरत आंखों में ” काजल” लगाए |
” रमेश ! अपने पुराने ख़्यालों से बाहर आईए | वो ज़माना गया जब औरत का सहारा बस उसका पति होता था | आज का दौर है जहां पत्नी अपना सहारा खुद बन सकती है | मै जा रही हूं अपनी मर्ज़ी से आपके निकालने की ज़रूरत भी नही | अपनी आज़ादी से जीऊंगी |”
और मोहिनी अपने काजल लगे बड़ी सी आंखें (जो रमेश को कतई पसन्द नही थीं ) दिखाती दरवाज़े की तरफ बढ़ गई |


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आखिर कब तक…
सच है कड़वा तो होगा ही ज़रूर पढ़ें मेरी कहानी और अपनी राय दें…
के साथ बिस्तर गर्म करने का ख्वाब मोहल्ले का हर सफेदपोश और इज़्जतदीर सज्जन सजाते हैं | उसकी मजबुरी का फायदा उठाने की हर मुमकिन कोशिश की गई | किसी मे मौकरी का लालच दिया किसी ने विधवा है तो शीदी के खिवाब दिखाने की कोशिश की | मगर वो सब सहती सब सुनती मगर अपना इमान ना डोलने देती अपना | एक इज्ज़त ही तो जायदाद बची थी उसके पास | जब सब की कोशिश नाकाम हुई तो तब दौर शुरू हुआ अफवाहों का | गुप्ता जी शहर के जानो माने वकील डॉक्टर वर्मा को बता रहे थे ” अजी आयी थी हमारे पास बोली 10000 हज़ार रात भर की लेगी | मैने उल्टे पांव भगा दी मैने कह दिया मै ऐसा नही कोई और दर देख लो ” जबकी सच ये था के यही वो शक्स थे जो अक्सर उसके घर में तांक झांक करते पाये जाते थे…ये इफवाह फैलती गई | किसी ने कहा जहां काम करती है वहां के मालिक के साथ चक्कर हे जिसके जो मुंह मे आया वो बोला | आखिर कब तक कोई सहे एक सुबह जब दोपहर तक वो ना दिखी तो पड़ोसी ने दरवाजा खटखटाया मगर कोई सुगबुगाहट नही | धीरे धीरे सारा मोहल्ला इक्टठा हो गया | दरवाज़ा तोड़ा तो पाया | खुद पंखे से लटकी है और बच्चा जिसे शायद ज़हर दिया था बिस्तर पे मरा पड़ा है | लोगो के दिल फिर दया ना ईई फिर फुस्फुसीये पाप का बोझ ले के कब तक जीती मगर डायन ने बच्ची को क्यों मारा | बच्ची को मारती ना तो क्या करती छोड़ देती तीकी फिर उसके उसपे कोई गंदी नज़र डाले उसका दीम तय करे अच्छा किया दो मासुम को इस नर्क से मुक्ती दिलाई |
ये  कहानी किसी एक औरत की नही ये कहानी है हर शहर हर गांव हर कस्बे मे बैठी उस औरत की जिसके साथ मजबुरीयां हैं और वहां बैठे हैं मजबुरीयों का फायदा उठीमे वीले | अगर मान गई तो ठीक नही तो बदनाम कर के उस से आत्महत्या तो करवा ही देंगे | तरस आता है ऐसे लोगों पर कैसे अपने गुनाहों की लेखी देंगे…
मै राहुल इस कहानी के माध्यम से यही बताना चाहता हूं के जी लेने दें किसी को अपनी ज़िंदगी अपने कुछ पल के काम सुख के लिये मत मारें अपना ज़मीर औरत की इज्ज़त करना सीखें ये लोग जो ऐसी सोच रखते हैं…किसी तरह की गलती के लिये माफी चाहूंगा…

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#राक्षश रामरहीम
लघुकथा

दोषी.....
जैसे ही विशिष्ट अदालत के जज ने दोषी, ढोंगी बाबा के खिलाफ फैसला देकर उसे उम्र कैद की सजा सुनाई पीड़ित लड़की ने हाथ जोड़कर जज साहब को धन्यवाद देते हुए कहा--
"इस ढोंगी बलात्कारी के साथ ही यही सजा मेरे माँ-बाप को भी दी जाए।"
"क्या... "
उपस्थित सब लोगों पर जैसे बिजली गिर पड़ी।
"यह क्या कह रही हो?" जज साहब ने आश्चर्य से पूछा।
" हाँ जज साहब। मैं ठीक कह रही हूँ। इस ढोंगी के साथ ही इस अपराध में मेरी जैसी हर पीड़ित लड़की के माँ-बाप भी बराबर के दोषी होते हैं।" लड़की ने शांत स्वर में उत्तर दिया।
जज दिलचस्पी से लड़की को देखने लगे। और लड़की के माँ-बाप सिर पीटने लगे-
"पागल हुई गयी है क्या छोरी। होस में तो है। कइं बोल रही सै?"
"मैं बिल्कुल ठीक बोल रही हूँ। पूरे होश में। वो बाबा ने नहीं बुलाया था मन्ने अपने आश्रम में। उसने तो जो किया गलत किया। लेकिन मैं तो तुम्हारी बेटी हूँ। मेरे अच्छे बुरे की जिम्मेदारी तो तुम्हारी थी। तुम कैसे अपनी बेटी को उसके आश्रम में छोड़ आये?"
लड़की के माँ-बाप आवाक हो गए। जज साहब सोच में पड़ गए।
"लड़की शाम सहेलियों के साथ घर से बाहर जाने को या पिक्चर जाने को बोले तो घरवालो के सीनों पर सांप लौट जाता है, रूढ़ियाँ बीच मे आ जाती है। परिवार की इज्जत पर बन आती है। लेकिन उसी लड़की को साध्वी बनाकर ऐसे ढोंगियों के हवाले करते तुम्हारी इज्जत में बट्टा नहीं लगता?
जज साहब। ढोंगी बाबाओं से भी पहले ऐसे भक्तों को जेल में डालना चाहिए। ये सब बाबा इन्ही भक्तों के खड़े किए हुए राक्षस हैं।"
स्तब्ध अदालत को सांप सूंघ गया।

******सबक सीखो इन घटनाओं से कोई  बाबा बहकावे में न आये *****मेहनत करो आगे बढ़ो।
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 फेसबुक से अलविदा कुछ वक्त के लिए
मस्तियां पढ़ते पढ़ते हो तो ज्यादा अच्छा रहता है ये एहसास  कहानियो और कविताओं का पिछले 3 महीनो में लगभग हिंदी के 250 से ज्यादा रचनाये पढ कर एक नया
अनुभव से आया और हिंदी लेखन में बहुत कुछ सीखा भी
आज
 बहुत दिनों बाद दीपकवा (दोस्त) का फ़ोन आया
उ  प्रोफेसर बन गया है सुन के डबल ख़ुशी हुआ
एक तो दोस्त प्रोफ़ेसर वो भी इंग्लिश का  दूसरा की तुम जैसे ईमानदार और मेहनती लोग सरकारी कॉलेज में पहुचे हो।
अंग्रेजी प्रोफ़ेसर बनने के लिए तुम्हे कितना ज्यादा मेहनत करना पड़ा  होगा हम समझ सकते है
चुकी
हमलोग हिंदी मध्यम से पढ़े लिखे है स्कुल में छत से पानी टपकता था ज्यादा तर क्लास पेड़ के नीचे ही किया।
6ठी कक्षा से  तो a से apple  स्टार्ट किये थे हमलोग।

... उसका एक बात हमे झकझोर गया
"राहुल तुमसे हमे कुछ एक्स्ट्रा उम्मीद है!
तुम अच्छा लिखने लगे हो पर अभी फेसबुक में टाइम waste ना कर।

सोशल मीडिया पे
कई बातों पर रिएक्ट करने का मन होता है फिर जान बूझ कर नहीं करता चुकी रिएक्शन leads to frustration. action leads to reaction.
दुनिया प्रतिक्रियाओं से नहीं बदलती. दुनिया छोटे छोटे कामों से बदलती है.ऐसा मेरा अनुभव है.

अब धीरे धीरे पढ़ाई के competion मोड में चले जाना है कुछ कर दिखाना है।
इस हफ्ते के बाद व्यस्त हफ्ते शुरु होने वाले हैं.

अलविदा दोस्तों !
आप सभी ने मुझे बहुत सराहा , कोसने के साथ साथ सचेत  भी किया और अपना प्यार दिया .
जो समझ आता था आपसे सांझा किया . कितना साहित्य था नहीं मालूम , मगर सुकून जरुर था मेरे लिए .

आपको कितना परेशान किया या सुकून  दिया ये आप ही जानते हैं . कुछ समय अब आप लोगों से दूर रहूंगा

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इंसानी बीमारी
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'सर ! इस लडके को कालेज से बाहर निकालना पडेगा आपको. यहाँ का माहौल खराब कर रहा है ये !"

'क्या किया है इसने ?'

''एक कमी हो तो बताएं .....ये कभी फुटपाथ वाली औरत को अम्मा कहता है ...कभी उनसे भुट्टे खाता है ...कल एक घायल कुत्ते का इलाज करवाने चला गया और अपना पीरियड मिस कर दिया .'

'इतना ही नहीं सर ! हिंदी मूवी देखता है और वो पागल लोगों की तरह सुबह साधना करता है ....हा हा हा ....ऐसे योगियों की जगह तो पहाड़ हैं ...जंगल है ...हा हा हा .'

'सही कहा आपने ! एक इंसान को जानवरों के बीच नहीं रहना चाहिए ...इसे बाहर  कर दो यहाँ से जिस से पहले की इंसानी बीमारी तुम सब में फैल  जाए . कल मेरा इस्तीफा आ जाएगा .'
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विदेह
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विदाई का समय बहुत ही भावुक होता है . फिर ये तो रिश्ता भी ऐसा था कि कोई सोच भी नहीं सकता था . डाक्टर निकिता असाध्य रोग पर काम कर रहीं थी . उस रोज जो मरीज आया था उसके भाई का हुबहू लगता था जो एक कार दुर्घटना का शिकार हो गया था . निकिता को भी न जाने क्या सूझा . पहली ही मुलाक़ात में उसने नवीन को खुलकर कह दिया कि क्या मुझसे शादी करोगे ?

उसके साथ आई माँ हैरान थी कि कैसी अजीब लड़की है अपनी जिंदगी को एक बुझते दिए की लौ में रौशन करना चाहती है . मगर वह कुछ कह न सकी . उन्होंने यही सोचा कि मरीज को हिम्मत और जीने की आस देने के लिए ही डॉक्टर ने ऐसा कहा है .

नवीन पर निकिता प्रयोग करती रही और कामयाब भी हुई . इधर नवीन  ठीक हो गया था . ये बात सबके लिए ख़ुशी की बात थी और रिश्ता भी कोई बुरा नहीं था . मगर कुछ लोग इस बात से बहुत असहज थे कि कैसी पागल लड़की है . अपना कैरियर एक अनजान आदमी के लिए दांव पर लगा रही है . पिता को भी यह रिश्ता पसंद नहीं आया था मगर इकलौते बेटे के बाद निकिता ही एकमात्र ख़ुशी थी . ये ख़ुशी तब तो आंसुओं में ही बदल गयी जब उन्होंने नवीन को देखा था .

नवीन के पिता ने निकिता के पिता के पैर छूते हुए उन्हें गले से लगा लिया . समधी साहब ! आप तो इस युग के राजा  जनक हैं  अपना सब कुछ देकर भी हाथ जोड़ रहे हैं . सच में आप विदेह हैं और बिटिया वैदेही ,जिसने मेरे बच्चे और घर को बचा लिया है . आज से बेटा आपका हुआ . ये दोनों कुछ दिन घर रहकर वापिस लौट आयेंगे . मैं भी इतना निर्दयी नहीं हूँ . मुझे सब मालूम है ....बिटिया ने मुझे बेटा  दिया है अब मैं आपको बदले में वही बेटा सौंपता हु।
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  • रहम 
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'अरे ! वो गाँव वाली सरकारी पानी से आई बाढ़   से मछलियाँ  पकड़ रही है बुलाओ उसे !'

औरत को पकड़कर लाया गया .

'क्या कर रही हो तुम ? मालूम है ये सरकारी पानी है .'

'हम तो माटी निकाल रहे थे इधर से . ' उसने झूठ बोला .

'दिखा जरा ! कितना माटी चोरी किया है?' और वह उसका हाथ पकडे झोंपड़ी में घुस गया .

'हा हा हा ...गरीब है ...लेने दो मिटटी ...और मछली भी ....करारी  है...सा... ली .'

रहम का रक्त उसके कपडे लाल कर रहा था.  उसकी चीखें अट्टहास में कहीं विलीन हो गयीं थी, शासन  की तरह।
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कमाई और कर्म
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दिनभर काम करके वापिस लौटते हुए रतिराम अपने साथी धनीसिंह से बोला

'अबे! तू इतना डरपोक निकलेगा मुझे मालूम नहीं था . साले पीने से मनाकर रहा है और वो इस बात को लेकर की घरवाली बुरा मान जायेगी !'

'भाई ! इसमें डरने की बात नहीं है आपसी समझ है हमारी . वैसे भी शाम तक तीन-चार सौ कमा के ख़ुद पर सौ-दो सौ ऐसे ही उड़ा देना कोई समझदारी नहीं है !'

'साले! अपनी समझदारी में अपनी नामर्दी मत छिपा ....डरता है तू ...फट्टू है ...हा हा हा .'

'हाँ, भाई ! जो कहना हो कहो पर मैं ऐसा नहीं कर सकता !'

'अबे! कमाता मैं हूँ , तू भी कमाता है ...फिर वो साली कौन होती है हमें रोकने वाली . अबे तेरा खर्चा भी नहीं करवाऊंगा . आजा ! ले लियो थोड़ी -सी ...मजा आ जायेगा ...हा हा हा .'

'भैया कुछ भी कहो ....एक बार न कह दिया तो कह दिया .'

सामने  रतिराम की बीबी गोद में बीमार बच्चे को लिए खड़ी रो रही थी और रतिराम की आदत की वजह से कोई भी पैसा देने को तैयार नहीं था . तभी कमला घर में गयी और पांच सौ रुपये उसे देते हुए बोली -

'तुम्हारे भैया हैं न ! रोती क्यों है , सब ठीक हो जाएगा .' और उसने अपने पति को उसके साथ कर दिया .

लगभग बेहोश पड़े पति को देखकर उसके मुँह से न जाने क्या-क्या निकल रहा था.  धनीसिंह गर्व से मदद के लिए जा रहा था . मन का दृढ़ संकल्प आज मित्र के घर को बचा रहा था .वापसी पर आनंद और सुख तो पक्का कर ही लिया था उसने  अपनी संचित कमाई और कर्म से। RP

**ख़ामोशी का हक़
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"कैसी ढीठ हो गयी है चरित्रहीन ! इतना कूटा है तुझे फिर भी नहीं बताती कि जेवर किस .. को दिए हैं ? कौन है तेरा यार ?" शराबी पति जो मुंह में आये बके जा रहा था.

"हो सके तो अपने मरते बाप को देख आना .....और बोलने का न सही ...पर ख़ामोशी का हक़ तो मुझे है ! उसी ने बेटी बोला था ....और तुम्हे पैदा किया था . दे दिए सब उसके ईलाज को ."


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मैं पैसा हूँ:!

मुझे आप मरने के बाद ऊपर नहीं ले जा सकते; मगर जीते जी मैं आपको बहुत ऊपर ले जा सकता हूँ।
मुझे पसंद करो सिर्फ इस हद तक कि लोग आपको नापसन्द न करने लगें।
मैं भगवान् नहीं मगर लोग मुझे भगवान् से कम नहीं मानते।
मैं नमक की तरह हूँ; जो जरुरी तो है मगर जरुरतसे ज्यादा हो तो जिंदगी का स्वाद बिगाड़ देता है।
इतिहास में कई ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे जिनके पास मैं बेशुमार था; मगर फिरभी वो मरे और उनके लिए रोने वाला कोई नहीं था।
मैं कुछ भी नहीं हूँ; मगर मैं निर्धारित करता हूँ; कि लोग आपको कितनी इज्जत देते है।
मैं आपके पास हूँ तो आपका हूँ:! आपके पास नहीं हूँ तो; आपका नहीं हूँ:! मगर मैं आपके पास हूँ तो सब आपके हैं।
मैं नई नई रिश्तेदारियाँ बनाता हूँ; मगर असली औऱ पुरानी बिगाड़ देता हूँ।
मैं सारे फसाद की जड़ हूँ; मगर फिर भी न जाने क्यों सब मेरे पीछे इतना पागल है ?
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सबसे बड़ा शिक्षक !

आज शिक्षक दिवस पर स्कूल, कॉलेज और जीवन के विभिन्न चरणों में मिले शिक्षकों की याद आई। सबने कुछ न कुछ सिखाया ही था, लेकिन उनमें जिस एक का हमारे व्यक्तित्व और जीवन पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा, उसे चुनना बड़ा मुश्किल काम था। अथक चिंतन का निष्कर्ष अंततः यह निकला कि जीवन की सबसे बड़ी शिक्षक हमारी-आपकी पत्नियां ही होती हैं। ब्याह तक आपने अपने शिक्षकों और किताबों से जितना भी ज्ञान हासिल किया हो, ब्याह के बाद घरवाली के ज्ञान के आगे सब दो कौड़ी का हो जाता है। अच्छे शिक्षक की तरह पहले वह आपके मन-मष्तिष्क में भरा जीवन भर का अर्जित ज्ञान धो-पोंछ कर साफ़ करेगी और फिर उसमें योजनाबद्ध रूप से भूसा भरेगी। किश्तों में पंख काटेगी और देखते-देखते उड़ाकू से पालतू बना डालेगी। धैर्य और स्टैमिना भी अद्भुत होता है पत्नियों का। सुबह नींद से जगाने से लेकर देर रात सुलाने तक उनका क्लास निरंतर चलता रहता है। आपके उठने-बैठने, चलने-फिरने, पहनने-ओढ़ने, हंसने-बोलने, लिखने-पढने - सबमें खोजकर कमियां निकालेगी और ठोक-पीटकर उन्हें दूर करेगी। अपनी बातों के समर्थन में ऐसे इमोशनल और अश्रु-विगलित तर्क देगी कि आप चाहकर भी उनका प्रतिकार न कर सकें। कहते हैं कि स्वयं को अज्ञानी समझना अच्छे छात्र की सबसे बड़ी पहचान है। इस भरी दुनिया में एक वही है जो हर पल आपको अपनी तुच्छता और मूर्खता का अहसास दिलाती चलती है। सो आपको अगर अच्छे और सच्चे शिक्षक की खोज है तो आंख मूंद कर ब्याह कर लें ! शादीशुदा हैं तो समर्पण कर दें घर में मौज़ूद शिक्षिका के आगे। कृपा आनी शुरू हो जाएगी।

अपनी वाली सहित संसार की सभी पत्नियों को शिक्षक दिवस पर शत-शत नमन !
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पुराने दोस्त
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'क्या हुआ जी ? आज मुंह क्यों लटका हुआ है ?' पत्नी ने पूछा .

'कुछ ख़ास नहीं , बस जरा सा मन अनमना है न जाने क्यों ?'

'जानती हूँ तुम्हें बहुत अच्छे से . कोई बात न हो और तुम उदास ही जाओ ऐसा संभव नहीं है . कह दो जो भी कहना है .'

'दरअसल बात ये है कि मेरी एक दोस्त है . कभी मिला नहीं उस से सिर्फ बात होती है और आजकल बहुत परेशानी में है . उसके पति की तबियत बहुत खराब है और उसे दिल्ली इलाज के लिए आना है राजीव गांधी केंसर अस्पताल में  . मदद करना चाहता हूँ पर कैसे करूँ ये बात परेशान कर रही है . पैसे उसे चाहियें नहीं और इतनी छुट्टियाँ लेकर उसकी मदद की नहीं जा सकती .'

'बस ....इतनी सी बात के लिए खुद को परेशान कर रहे हो . मुझसे बात तो कर ली होती ....शक करना औरत का स्वभाव है . वह प्यार करती है तो शक भी करती है और प्यार करती है तो उसे निभाना भी आता है . अपनी दोस्त को कहो कि वो यहाँ आ जाए . एक कमरा हम उसके लिए एडजस्ट कर देंगे और अगर तुम्हारी दोस्त है ...इसका मतलब मेरी दुश्मन ही होगी ये भी तो नहीं है ...दिल्ली में तो उसकी दोस्त मैं भी हो सकती हूँ न !'

तभी फ़ोन बजा और पत्नी ने उठाया .

'हेल्लो ! अपर्णा,  मैं रमेश की पत्नी बोल रही हूँ बहिन . तुम भाई साहब को लेकर सीधे यहाँ आओ .मैं तुम्हे पता मसेज कर रही हूँ .'

'यार ! यु आर ए गुड फ्रेंड .' और वह पत्नी के साथ लिपट गया .

'हटो ! तुम उसके पुराने दोस्त होकर इतने परेशान हो ये मैं कैसे देख सकती हूँ ...मेरे तो उस से भी पुराने दोस्त और पति हो ...तुम हो।

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लड़का तो मिल जाएगा
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'बकवास बंद कर अपनी , जहाँ हम कहते हैं शादी कर ले . घर की इज्जत भी तो कोई चीज है .'

'कितने में ख़रीदा है लड़का ? मेरे सुख का दाम क्या लगाया है उन्होंने ? आज भी वही आदिम सोच ...बेटी को सुखी करने के लिए दहेज़ दे रहे हैं . साला जब चाहे जैसे चाहे जिस्म नोचेगा और दामाद कहलायेगा . बदन पर नाखूनों के निशान देखकर भी आप कुछ कह न सकोगे ...हाथ जोड़कर सब सहोगे . इसी को कहते हो न अरेंज मैरेज !'

'चार जमात पढ़कर तू क्या हमारी अम्मा हो गयी है ? माँ-बाप का जरा ख्याल नहीं तुझे !'

'ख्याल है तभी तो कह रही हूँ ....लड़का तो मिल जाएगा ......प्रेमी नहीं मिलेगा ! जब प्रेम ही नहीं होगा तो सुख कैसा ? कसाई को बेचते भी हो और दाम भी देते हो ....बकरी से भी गयी गुजरी  हूँ क्या मैं ?'
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अभी की राजनितिक दौर  में शायद ये हर शख्स के साथ हो रहा है...

बचपन से किशोरावस्था तक के दिन याद आते हैं..जिस इंसान से मिलते थे वो दोस्त होता था..उसकी जाति, उसके धर्म, उसके सामाजिक status, पारिवारिक पृष्ठभूमि से कोई मतलब नहीं था..
स्कूल के समय तो दोस्त ऐसे लगते थे जैसे अपने ही परिवार के सदस्य हों..कई बार समझ ही नहीं आता था कि ईद पर हमारे यहाँ सेंवई क्यों नहीं बनती और इसे खाने के लिए नसीम या इबरार के घर क्यों जाना पड़ता है..
स्कूल लाइफ तक ज़िन्दगी नाम लेते लेते, काम लेते लेते, मौज और आराम लेते लेते कटी

फिर हम सब हो गए 18 वर्ष के..Adult franchisee दिमाग पर हावी हो गया..सियासत के मायने समझने लगे क्योंकि मताधिकार मोड एक्टिव हो गया..फिर नाम के साथ उपनाम भी महत्वपूर्ण हो गया..

उसके बाद दोस्तों के धर्म, जाति, सामाजिक पृष्ठभूमि सबपर हम गौर करने लगे..लोगों के सरनेम पर नज़र जाने लगी..उनके गृह क्षेत्र पर ध्यान जाने लगा..जिन दोस्तों के साथ कभी मतभेद नहीं होते थे उनसे विचारधारा के आधार पर मनभेद होने लगे..

पहले मुलाकातों पर जहाँ एक दुसरे की ख़ुशी परेशानी साझा होती थी वहां अब विचारधाराओं के टकराव की बहस होने लगी...

कई बार रस्ते में दोस्तों के मिलते समय नमस्कार इसलिए भी नहीं हुआ क्योंकि राजनीतिक रूप से दोनों के विचार पृथक थे।

ये सब कुछ शुरू हुआ 18 के बाद...Adult franchisee वाले अधिकार के बाद...अपनी पसंदीदा पार्टी का सिम्बल जब दोस्ती पर भारी पड़ गया तब से ये सब शुरू हुआ..यानि इसकी जड़ है सियासत

निष्कर्ष ये है कि जो लोगों के बीच बड़ी बड़ी दीवारें बन गयी हैं न जो दिखती तो नहीं है पर हैं बहुत विशाल...इसकी मूल जड़ ही सियासत है..
सियासत हर रोज़ इस दीवार में जानदार सीमेंट डालकर इसे रंग पेंट कर मजबूत बना रही है..

इसमें खाश बात यह है कि स्टाफ से लेकर रूम पार्टनर सब धीरे धीरे मुह मोड़ लेते है अपने अहंकारी बिचार वे इतने कमजोर हो गए  है कि सामने रहने वाले साथ जीने वाले को समझेंगे नही मगर साध्वी, योगी , केजरी  कन्हैया और रविश की बाते दिलो दिमाग में आसानी से बिठा लेते है।

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