खुद में ही खुद को गुम कर दिया है-BANKER


  बैंक के इंटरव्यू  रूम से बाहर निकलते ही  कुछ  काम के लिए उनके पास जाना पड़ा 
एक तेज तर्रार बैंक कर्मचारी जो  डॉक्यूमेन्ट अरेंजमेंट के कार्य में लगे थे उनके पास मेरा नम्बर आया तभी किसी बात पर उन्होंने पूछा 
भाई क्यों बैंकिंग जॉब में आना चाहते हो ?
मैंने कहा बैंक में सभी तरह के लोगो को सेवा करने का मौका मिलेगा , सैलरी , सरकारी , गुड इंफ्रास्ट्रक्चर , फ़ास्ट प्रमोशन , मेडिकल , पेट्रोल और समाज में स्टेटस है। 

लगता है काफी सही तरीके से इंटरव्यू की तैयारी किए हो  एक दम  एक ही लाइन में सब रटू  तोते की तरह उगल  दिए  ....

सर  आप ऐसा क्यों बोल रहे है। .... क्या गलती  कहा मैंने ?

देखो भाई  तुमने  जो  कहा  वो बाते  सिर्फ कहने के   लिए है।
तुमने अपनी बातें तो सुना दीं, अब यहाँ से एक कटु सत्य समझकर और दिल में उतारकर जाओ..
हो सकता है तुम सेलेक्ट हो जाओ तो ये बात तुम्हारे काम आएगी..
तुम पब्लिक सर्विस के लिए निकले हो और इज़्ज़त कमाने की लालसा रखते हो तो सदैव दुखी रहोगे..Frustrate हो जाओगे, नौकरी खराब लगने लगेगी..
तुम सीधे साधे लगते हो  इसलिए  एम्प्लोयी तुम्हे  काम  में  ज्यादा फसाएँगे  थोड़ी  चालाकी  रखना।  यहाँ सीनियर से बात सिर्फ सॉफ्ट स्किल और बटरिंग  से होता है।
फैक्ट  कोई नहीं सुनता। 
बैंक में  जॉब  करने वाले न  कभी  उगते हुए सूरज देख  पाते है  न  कभी  ढ़लते  हुए शाम
 इसलिए  टाइम का  पाबंद  रहना।
बैंक का काम कभी खत्म नही होता है ..
परिवार  मिलते जुलते  रहियो।

अगर अच्छे से नौकरी करनी है तो इज़्ज़त घर की खूँटी पर टांगकर निकलो और मुस्कुराते हुए, हंसते हुए दूसरों को इज़्ज़त दो,
ईमानदारी से उनके काम करो 
भले ही कोई तुम्हें कितना भी बेइज़्ज़त करके क्यों न चले जाए...
अगर ये सब करोगे तभी बैंक में टिक पाओगे 
 जिंदगी हंसते हुए कट जायेगी और सदैव स्वस्थ, मस्त और व्यस्त रहोगे..

उस समय बहुत गुस्सा आया और अजीब सा लगा कि आखिर ये भाईसाहब नकारात्मक बातें करके किसी के करियर की शुरुआत में ही उसे हताश क्यों करना चाहते हैं..शायद कामचोर हो!

लेकिन  अब अहसास हुआ की वो  भाई साहब बिलकुल सही थे अपनी जगह पर ! कामचोर नही बल्कि एक ज़िमेदार कर्मचारी थे वो। 

 

खुद में ही खुद को गुम कर दिया है

 कभी कभी लगता है.....

कभी कभी लगता है जैसे खुद में ही खुद को गुम कर दिया है..
एक छोटे से कमरे से शुरू होता दिन...
रोज़ाना एक सी मगर ठीक सी दिनचर्या...
कुछ मुस्कुराते चेहरों से रोज़ाना नमस्कार..
स्माइल का साइज़ रोज़ाना एक सा बरकरार..
उस मुस्कान के पीछे एक गहरा सा सन्नाटा,
आँखों के आगे पड़ते है रोज़ कई चेहरे,
लेकिन फिर भी लगे हैं तन्हाइयों के पहरे,
रोज़ कानों में पड़ती  गूँज...सर  ये काम! वो काम!
रोज़ाना वही कुर्सी
आसपास वालों का पहाड़ सा गुस्सा..
और कभी मन्द सी स्माइल,
पैरों के किनारे रखी वो धूल खाती फ़ाइल,
फिर रोज़ एक जैसा काम....
एक जैसी शाम..

शाम के बाद  थके कदम  लौटना..
पॉकेट में पड़ी चाबी याद दिलाता ताले की
अँधरा छाया है मेरे मन की तरह घर में...
एक चिराग जलाता हु दोनों जगह
दिल को मिला थोड़ा सुकून हो पर देह को कहाँ आराम
  • फिर से वही तीरछी  रोटी पकाना 
फिर सुस्त तंग आलस्य में घिरी रात...
मन ने ही अनसुनी कर दी मन की बात..

रोज़ थककर एक ही मन्ज़िल पर फिर बैठ जाना...
फिर अगले दिन रिवाइंड मोड लगाना...
और फिर वो ही..
सही मन्ज़िल पर पहुंचकर भी भटकने का एहसास..

खुद से खुद ही बात करके सोचता हूं 
क्या वही मै हूँ???

सच कहूं तो खुद में ही खुद को कहीं गुम कर दिया है....

-राहुल प्रसाद


लेकिन मजे की बात यह की
खुद में खुद से खुद को,
ढूँढने की जंग जारी है..


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