सतरंगा अहसास सापुतारा- यात्रा संस्मरण 26/08/2017

संस्मरण- यात्रा #रंगा_सा (सापुतारा हिल स्टेशन )










 



गुजरात में गणेश चतुर्थी एक विशेष तरह का पर्व  है प्रत्येक लोग अपने घर /मोहल्ले में गणपति जी कि मुर्तिया स्थापित करते है 5-7 दिनों तक पूजा अर्चना भोजन भंडारा सब आपस में मिलकर करते है और विसर्जन तो बहुत ही धूमधाम से करते है जैसे फिल्मो में देखते है

आज सुबह गणेशजी का दर्शन किया चुकी आज बैंक भी छूटी थी तो स्वभाविक है की दिन में भी गहरी नींद लिया जाये इसलिए दोपहर 1 बजे सोया मगर कुछ समय बाद एक भयावह सपना देखा की तुम वहा घुटन महसूस कर  रही  हो! तुम तो जानती हो मैं हमेशा से अरमान रहा है  की तुम जहा भी रहो आजाद रहो और तुम अपने मन की सुनो। हां मै तुम्हे नहीं पा सका! हा मगर दिल कि एक ख्वाइश है कि तेरी खोज खबर मिलती रहे जहा भी हो बस खुश रहो तुम।  दिमाग में  बहुत चीजे चल रहा था कही तुम बीमार तो नहीं या कोई संकट में तो नही हो   यही सोच सोच कर आज ब्याकुल सा हो रहा और रात के ढाई बज गए नींद नहीं आ रही.सोच रहा था कि काश तेरी शहर के हवा का रुख मुड़ जाता इधर !!

अपने दोस्त(रूममेट) को बताया तभी उसने कहा कि कुछ देर सो जाओ कल कही घुमने चलते है 6 बज गए फिर भी आँख खुली ही रही।   

सूरत से 172 KM  दूर सापुतारा हिल स्टेशन के लिए  हम 6 दोस्त एक कार से निकल पड़े.ड्राइवर भी बाबा मौर्या की लगातार गाने बजाये जा रहे थे मानो ऐसा लग रहा था  की गाड़ी में ही बाबा मौर्या की मूर्ति  है और विसर्जन कि के लिए निकले हो !!

कुछ देर बाद सब बैंकिंग बैंकिंग गपसप कर रहे थे  हमेशा की तरह चुकी 5 बैंकर और 1 टैक्स अफसर थे। ब्रेकफास्ट  के बाद  स्टार्ट हुआ अंताक्षरी खेलना। करीब 1 घंटा तक गाने का बौछार हो चूका था गजल गीत गाने - किशोर दा अर्जित  ,हनी सिंह से लेकर despiseto तक चला मगर कोई ग्रुप हारने का नाम ही न ले रहा था ये संगीत का महासंग्राम देखकर -ड्राइवर भी अपने हँसी के ठहाको को रोक नही पाते।

तभी ठडी हवाओ का झोंका सभी के जुल्फों को तीतर बितर करने लगा और मेरी लालमय आँखों में भी हरियाली समा गई थी। बारिस भी होने लगी थी हमलोग 100km का सफर कर चुके थे और घनी जंगल में प्रवेश कर चुके थे
 गुजरात आर्थिक सांस्कृतिक और खाश करके पर्यटन में  काफी विकसित है बहुत सारे पयर्टको  की गाड़ियां  4 लेंन पर सरपट दौड़ी जा रही थी उधर पहाड़ो से उतरती  हुई नदिया भी सरपट दौड़ रही थी जो लोगो में और भी ऊर्जा भर रही थी सबके मुख से यही बात निकल रहा था ऐसी हवा तो एसी- कूलर भी नहीं दे पाती है काश इन वादियो में एक छोटा सा घर होता।....सब अपने अपने क्षेत्रिय..पर्वतों पार्क और जंगल की चर्चा कर रहे थे...
 हमे तो लग रहा था कि हम झारखंड की वादियों (बेतला, पतरातू, रामगढ , लातेहार, सारंडा और नेतरहाट) में भर्मण कर रहे है।
अब डिसाइड हुआ की क्यों न एक बार क्षेत्रीय गीत संगीत का महासंग्राम हो जाये।
यूपी  वाले ने- " यूपी  बिहार लूट ले "से धमाकेदार शुरुवात किया
राजस्थान वाली -  बन्ना रे, थारो ढोल बाजे ढोल, मैनू पल पल याद सुनाकर सबको मनमोह ली थी। बिहार वाली कहा चुप रहने वाली उनका तो है ही लॉलीपॉप लगे लू , चार दिन खातिर आइल हल्फा मचा के गइल सबको कार में ही झुमा दिया।
हम दो झारखण्ड वाले नागपुरी और खोरठा -अठरह साल, स्कुल के टेम पे, गुइयां हमर लागे प्रेम कली जईसन गाकर सबको चौका दिया था।
एमपी वाली दोस्त - मन्मस्त हुआ, लटको छोड़ देबुँदेलखंडी के साथ साथ पंजाबी सांग (पानी दा, तेनु समझावा की) के साथ हमलोगों पर भारी पड़ गई और फिनाले उसी के नाम हो गया। 
एमपी  वाली दोस्त ने तेनु समझावा गाकर तुम्हारे मधुरिम आवाज को फिर से मेरे कानो में तरो-तजा कर गई थी। 
सरपट दौड़ती गाड़ी भी काफी ऊँची पर्वतों पर आ चुकी थी कुछ पहाड़ो को तो बदल ढक लिए थे अद्भुत नजारा था जितना सुने थे उससे कहि अधिक था।
पर्वतों के नजारो में  नीचे हरी-भरी गांव दिखती हमलोग बस यही सोचते की ये लोग कितने सुकून से रहते होंगे।
अब हमलोग सापुतारा की वादियों से रूबरू होने वाले ही थे क्योंकि नजारा बता रहा था कि यहाँ बड़े बड़े मॉल और बील्डिंग नही बल्कि
ऊँचे प्नेर्वतो के घने बृक्ष गगन चुम रहे थे । बृक्ष हमे 
अहसास दिला रहे थे हमारी दी हुई हवा (साँस )पे तुम जिन्दा हो
फिर भी हमे दिन व दिन बेहरहमी से काटते जा रहे हो।
उधर -पहाड़ो पर भरी जल के बोझिल को
नदिया गोद में भरते हुए कलकल करती उस जल को
खेतो और शहरो तक पंहुचा रही ताकि हमारे लिए श्रमी कृषक अन्न उपजा सके और प्यास बुझा सके।
यह साफ हो गया  कि हम प्रकृत पर ही जिन्दा है कितना भी साइंस टेकनोलजी के पीछे भाग ले मगर
सुकून तो प्रकृत के गोद में ही है।

हमारी कार बादलो से घिरी एक पर्वत के पास आ कर रुक गई-सामने लिखा था -सापुतारा हिल स्टेशन में आपका स्वागत छे!
सबसे पहले हमलोगों ने झील में बोटिंग का लुफ्त उठाया
वहा भारी सँख्या में लोग मौजूद थे बच्चे बूढ़े नौजवान और कुछ इश्कबाज भी।
वहाँ पर अद्भुत मौसम था एक तो झील का साफ़ पानी(गंगजल ही था)
दूसरी ओर फॉल से आती हुई पर्वतों को चीरते हुए जल का वो सफ़ेद नजारे के साथ साथ सुहानी हवा जो मन को मदहोश कर रहा था  ऊपर से रिमझिम वर्षा की बुँदे तो मानो हमे भी रोमंटिक  बना दिया हो बहुत सारे कपल सिंगल नाव में
आपसी प्यार को और भी मजबूत रिस्तो में तब्दील कर रहे थे। करे भी क्यों न ऐसा सुकून वाली मौसम मिलती कहा है!

सब दोस्त मन ही मन अपने प्रिये को याद कर रहे थे। और मन को बहलाने के लिए झील की पानी को
एक दूसरे पर फेककर  कैमरे में कैद कर रहे थे। 
हमें भी तुम्हारी याद आया , सोचा  काश ! कभी ऐसे ही तुमको सैर करा पाते पर वक्त को ये सब मंजूर न था।
अपने  इमोशन को कंट्रोल किया क्योंकि वहां मेरी  एक भी आंसू हम सब की सैर पर पानी फेर देता। 
बहुत सेल्फिबाजी भी हो  रहा था कई तो डंडे लगाकर भी सेल्फी ले रहे थे। हा ये भी जरूरी है आजकल लोगो को रिस्ते निभाने का टाइम कहा है अब तो सबकुछ फेसबुक  /व्हाटस ही है।
तभी मेरी नजर एक बेफिक्र सेल्फबाज पर पड़ी ऐसा लग रहा था कि वो पानी में गिरने वाली है
उनसे कहा "बेन" थोड़ी संभल के सेल्फी लो अन्यथा आपका मुह लटकेगा(मोबाईल पानी में न गिर जाए) नही तो आप ही लटक जाइएगा।
सभी दोस्त हंस पड़े...... 
मै सभी दोस्तों को खूब हँसाता हु कभी कभी फिजूल की बाते करके भी मगर वे दोस्त (3 गर्ल) बुरा नही मानते क्योकि वो हमें समझते है उनके साथ ब्रांच में काम किया है।
हा मुझे पता है मैं हँसाने के लिए बचपना, नॉनसेंस ,और फिजूल की बाते करता हु पर क्या करूँ अब तो दूसरे के  मुस्कान में ही तेरा मुस्कान ढूंढता फिरता हु।
हमलोगो ने संग्रहालय जाकर  सापुतारा की मनमोहक वादियों का विस्तृत जानकारी लिया काफी दिलचस्प चीजे मिली आदिवासी बहुल इलाका उनकी रहन सहन पर्व त्यौहार मंदिर ,सांप की  कहानी  पर सापुतारा का नाम पड़ना ।
खान पान . संस्कृति और प्रकृत का भंडार - सापुतारा। 
अब हमलोगों ने वहाँ के गाँव वाली पकवान(ब्यजन) का लुफ्त उठाया फिर रोप वॉक एवं केबल कार का आनंद उठाया, शबरी धाम मंदिर गया , ये वह जगह है, जहां शबरी ने भगवान राम को चख-चख कर बेर खिलाए थे और स्टैप गार्डन में भी घुमा। 
अभी भी हमलोगो में कोई थकान नहीं था क्युकी वहाँ अलग प्रकार की हवाएं चलती है मौसम जो " पचरंगी " चुकी हर कुछ मीटर की दुरी  पर मूसलाधार  बारिश , कही रिमझिम , कही झरने की छिटकते वो पानी के बुँदे कहि मीठी धुप, और तो और पहाड़ो पर बादल छाए रहना लेकिन सभी जगह एक कॉमन  था वो सुहानी हवाएं जो सबको ऊर्जावान रखती है। 
अब शाम हो चुकी थी सबका इंतजार खत्म होने वाला था चुकी सब कोई चाहता है सनसेट पॉइंट पे जाकर बदलो को छू जाये। 
अब भीड़ चल पड़ी थी डेढ़ किलोमीटर आसमान को छूती सहाद्रि पर्वतमाला की सबसे उची चोटी सनसेट पॉइंट की तरफ। 
हमलोग भी  पहुंच चुके थे गजब का नजारा था 1000 m समुद्र तल के उचाई पर स्थित लगभग 3 km में फैले फिल्ड जहा हजारो लोग यहाँ तक बच्चे बूढ़े सब.
मेला तो  मेला होता है जो बचपन की यादो को तरोताजा करा जाता है , पर ये कुछ खाश था क्युकी प्रकृति का मेला हर एक चीजे दिल को छू जाती थी लगभग सभी वैसे चीजे थी जो बचपन में सभी किये होते है। 
मैंने गन से निशाने बाजी की पर एक भी बलून फोड़ नहीं पाया एहसास हुआ की अब तो हम बड़े हो गए है /
उसके बाद मैं  रिंग का खेल खेला लगातार दो बार हार गया गुस्सा आ रहा था चुकी बचपन में तो कई बार साबुन और इमली चॉकलेट पैकेट को यु ही चुटकी में फसा लेता था मगर कसक के साथ मेरी  नजर बनी हुई थी उस इमली के पॉकेट पे ,अन्ततः  चौथी राउंड में इमली डब्बा फस ही गया। 
इमली की टॉफी को देखते ही सबने उस पर टूट पड़ा। इमली की टॉफी बेपरवाह खाते रहा इस बार 



कोई रोक  टोक जो  न था पिताजी का !
एक दोस्त  ने तो गजब की बाइक नचाया 
कुछ दोस्त ने घुड़सवारी  की , कुछ डरपोक दोस्त ने ऊंट की सवारी  कर ही संतोष किया। 
आदिवासी बहुल इलाका है वह इसलिए हमलगो को आदिवसी नृत्य देखने को मिला जो पूरी तरह से प्रकृति (जल जंगल जमीं )पर आधारित होती है।

बचपना बरकरार था ऐसा लग रहा था की सनसेट पॉइंट पर तो कूद कर ही चढ़ जायेगे मगर कुछ 500 मीटर  चढ़ें  फिर थकने लगे यहाँ पर कई रंग बिरंगे लोग नजर आ रहे थे चुकी सबकी मेकअप पसीने में तब्दील हो चुकी थी लेकिन मजे की बात यह की लोग मेकअप बॉक्स कंधे पे लटकाये हुए ही पहाड़ चढ़ रहे थे  क्युकी सनसेट पॉइंट पे सेल्फी जो लेनी है ।
मुझे हसी तो तब आया जब एक मोहतरमा  ने कहा ओह माय गॉड तुमने इतना ऊंचा पहाड़ क्यों बनाया मैं नहीं जा सकती मेरी पैर लचक जाएगी। कई तो अपने तोंद को ही कोस रहे थे।
कई  अफसोस कर रहे थे की इतना टाइट ड्रेस पहन कर क्यों आये इन पहाड़ो में।
तो कई इस डर से न जा रहे थे कि उनके हल्के कपड़े 
कही तेज हवा का झोखा उडा ले न जाये और उन्हें तार तार न होना पड़ जाये।
इसी तरह से 50 % लोग वही से वापस उत्तर जाते। एक बात और भी थी की उसके आगे बहुत संकीर्ण रास्तो से पहाड़ पर पहुंचना था दाये बाए पीछे सिर्फ खाई थी अगर थोड़ा सा भी पैर फिसलता तो सीधे स्वर्ग पहुंच जाते। इसलिए लोग इसे सुसाइड पॉइंट भी कहते है। 

कुछ दुरी मैंने दौड़ कर चढ़ा फिर  देखा की एक दोस्त को मेरे दो दोस्त मिलकर चढ़ा रहे  है , तभी एक और ने आवाज लगाई ओह ! मेरी सेंडल टूट गई अब क्या होगा -- मैंने भी तंज कसा - पहाड  ब्रांडेड सैंडल नहीं पहचानती मैंडम । सब दोस्त हाफ्ते हुए सोच रहे थे काश! दो बून्द पानी मिलता , कुछ बहुत चिंतित थे कि अब कैसे उतरेंगे तभी एक कहावत कहते हुए  मैंने सबको हसाया -डर, जोखिम को दरकिनार, चढा वो जैसे तैसे तभी ख़ुदा ने आवाज लगाई अबे ! अब उतरेगा कैसे।
अब पॉइंट पे पहुंचना था कुछ  देर रेस्ट करते हुए  नजारो को कमरे में  कैप्चर करते हुए फिर हम सब सनसेट पॉइंट की तरफ चल पड़े..धीरे धीरे संकरी  पहाड़ो पर चढ़ता गया रिस्क भी  था डर भी था मगर बदलो को छूने के लालसा में बड़ी जदोजहद से हम 3 लोग वहा पहुंच सके ।
सूरज जो दिन भर दुनिया को रौशनी देता है आज उसे आँखों से निराश हताश थके हुए डुबते देखा था ।
तभी हमे ये सिख मिली गर कल कुछ करना है तो रात की नींद जरूरी है।
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बचपन से सपना रहा..                  
इन बादलों पर चढ़ने का...
इनकी ओट में छिप जाने का...  
सुकूं से बैठ बादलों पर...
ज़मीं को निहारने का...
परिंदों की उड़ान ...
और बादलों पर एक मकान का...
सबकुछ बस सफ़ेद हो...
कुछ भी काला नहीं...
मेरे लिबास सफ़ेद...
मेरे ख़्यालात सफ़ेद...
तुम्हारे एहसास भी सफ़ेद...
तुम्हारा किरदार भी सफ़ेद...
बिल्कुल इन बादलों सा...
कुछ भी काला नहीं...
आज बदलो को बाहों में भर्ती हुए
सब सफ़ेद सफेद सफ़ेद लग रहा
आज ये मनोकामना भी पूरी हो गयी।
 और एक अजब सा सुकूँ पाया जब बादलो को अपने बाहो में भरते हुए।
 - जो अदभुत एवं अविस्मरणीय लम्हा है।


"सच कहु तो सापुतारा की हसीन वादियों ने तुम्हारी  यादो को धूमिल सा कर गया -आज । "
  
 "सतरंगा सापुतारा खुशनुमा अहसास देता है। आपको प्रकृति की गोद में बिठाकर आपके दिल में  सुकून भरता  है। "  
"राहुल प्रसाद"-आधा सा लेखक


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#सापुतारा प्रकृति की एक अमूल्य भेट है -
लगातार 60 KM तक गगन चूमती घने बृक्ष एव कई नदीओ की शृखंला आपको तारो तजा कर देती है।
अनेक खूबियों से भरे इस हिल स्टेशन और आसपास का माहौल खासकर अगस्त से अप्रैल तक रिम झिम वर्षा होने की वजह से बेहद सुहाना होता है।
पर्यटक स्थल - गवर्नर हिल , गिरा वॉटर फॉल, सापुतारा झील,पूर्णा वाइल्ड सेंक्चुरी , स्टैप गार्डन में घूमेंशबरी धाम मंदिर, संग्रहालय, सनराइस  पॉइंट नागेश्वर महादेव मनदिर जैन टेम्पल गार्डन  बिशेष  Sunset  Point जो की 1.5 , KM की उचाई पर स्थित सहाद्रि पर्वत माला की सबसे उची चोटी  है जहा ऊपर में ही 3  KM में फैली फील्ड है जिसमे मेला लगता है और हॉर्स एव बाइक राइडिंग भी होता है। 
 जिप लाइन, पैराग्लाइडिंग, रोप वॉक, केबल कार, नौका विहार आदि का भरपूर आनंद ले सकते हैं।
 सापूतारा से सिरडीह करीब 140 km और 
सप्तश्रुंगी गढ़ मात्र 50 kmकी दुरी पर ही है।अपने बच्चो को लेकर अवश्य जाये उनमे प्रकृति के प्रति लगाव पैदा करेगा।
वहा की मदहोश करती वादियां- आपको निश्चित रूप से  हरा भरा  
 तारो-ताजा कर देगा।  


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 झारखण्ड की एरिया भी ऐसे ही -पतरातू घाटी

जल जंगल धरा की -अद्भुत संगम की घाटी पतरातू

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