अधूरी ख़्वाहिशें- 1 याद आ रहा

#अधूरी_ख़्वाहिशें-1
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#ख़्वाहिशें’_सिर्फ़_एक कहानी नही, यह तो एक... सफ़र है – ज़िंदगी का सफ़र। जहां सपने जन्म लेते हैं, कुछ पूरे होते हैं तो कुछ अधूरे रह जाते हैं। जहां रिश्ते बनते हैं, कुछ अंजाम तक पहुचंते हैं तो कुछ बीच मझधार दम तोड़ देते हैं। लेकिन ज़िंदगी चलती रहती है.... इन्हीं सपनों और रिश्तों के बीच... बहते पानी जैसी।
हा तो मेरी अधूरी ख्वाइशें रचनाओं की कड़ी में आपको ऐसे ही कुछ अधूरे सपनो के बारे में पढ़ने को मिलेंगे।




याद...हाँ तुम्हारी ही याद आ रहा है...बहुत ही ज्यादा...शायद बता नही सकता कितना...और क्या ? कैसे बताऊँ ? तुम कितना याद आ रहे...यादों का कोई हिसाब- किताब ही नही...यादें बेहिसाब होती है...अब कुछ बताना भी चाहूँ तो सुनो इस कदर तुम्हारी यादे मुझे सताती है...तुम अनुपस्थित होकर भी इस कदर उपस्थित हो..
 आखिर क्यों मुझे तुम इतना दर्द देते हो जब भी मन में आये क्यों रुला देते हो निगाहें बेरुखी हैं और तीखे हैं लफ्ज़ ये कैसी मोहब्बत हैं जो तुम मुझसे करते हो मेरे बहते आंसुओ की कोई कदर नहीं क्यों इस तरह नजरो से गिरा देते हो क्या यही मौसम पसंद है तुम्हे जो, सर्द रातो में आंसुओ की बारिश करवा देते हो

ये कविता
शब्द-शब्द में तुम

अर्थ-अर्थ में तुम
सदियों से रखे हुए किताब के पन्नों के
बीच; गुलाब की ख़ुश्बू में तुम
बारिस के बाद मिट्टी से आती सोंधी-
सुगन्ध में तुम
ध्रुव तारे में भी तुम
कुम्हार द्वारा निर्मित घड़े में तुम
धान की लहलहाती फसल में तुम
महुए की सुगन्ध में तुम
आम की मंजरी में तुम
सुलगती हुई धूप के ख़ुश्बू में तुम
बच्चों की मुस्कान में तुम
पायल की झंकार में तुम
इंद्रधनुष के रंगों में तुम
चिड़ियों की चहचहाहट में तुम
झुकी हुई डालियो में तुम
फूलों की पंखुड़ियों में तुम
चाँद की शीतलता में तुम
सूरज की लाली में तुम....

उपमाएं बहुत सी है...कितना वर्णन करूँ और बताऊँ...तुम खुद भी समझ लिया करो...सब कुछ बोलकर नही बताया जाता...
तुम जहाँ भी हो सुनो...मेरी एक बात मान लेना...मुझे बन्धन पसन्द नही तुम स्वतंत्र जीवन जीना...शायद मैं भी तुम्हें स्वतंत्र किया हूँ..तुम्हे.पता है काव्य रसिक हो गया हूं तेरी यादो में।






हम दोनों अब कुछ इस कदर जिन्दगी जियेंगे...देखिए इस कविता में।
तुम और मैं
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नदी के किनारों भाँति रहेंगे
मैं और तुम ;
किनारों के जल बनकर
बहते रहेंगें
जीवन रूपी प्रेम की नदी में ;
एक छोर पर तुम
एक छोर पर हम;
दूरियाँ अनुपात में होंगी
और बहाव भी एक साथ......

लहरें उस छोर से इस छोर तक
आकर छू लेंगी मुझको,
कभी इस छोर से उस छोर तक
जाकर छू लेंगी तुमको,
हाँ पर कभी हम एकाकार नही हो सकते.......

तालमेल सदा यूँ ही बना रहेगा
सदियों तक प्रेमी आयेंगे
किनारों पर हमारें
अपनी प्रेम का इजहार करेंगें
कुछ कवि गीत रचेंगे
कुछ पक्षी आस-पास विहार करेंगें
कलरव करेंगें ;संगीतमय दिशायें होंगी....

मैं और तुम ; साक्षी बनेंगे;
कवि के गीतों का,
प्रेमियों के प्रेम का,
पक्षियों के कलरव का,
और शाश्वत शांत होकर साथ रहेंगें यूँ ही......

ये ख़्वाहिश तुम्हें कैसे बताऊँ...कभी सामने आये ही नही...आ जाते एक बार तो सब कुछ समझा देता..बहुत बदल रहा रहा हु अपने को पर कुछ भी हो जाये पर तुम्हारी प्रतिक्षा रहेगा ही।


राहुल  

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