बैंकिंग किस्सा-३ जागरुकता

बैंकिंग किस्सा-३ जागरुकता- rahul prasad
जुलाई 2015...माधवपुर पोरबंदर 


ये आज के दौर की उस स्याह हकीकत को बयां करता है जहाँ लोग निरिह, बेबस इंसान को दबाने में कसर नहीं छोड़ते और मजबूत, दमदार लोगों के सामने चुप्पी साध लेते हैं चाहे वो जुर्म की इंतेहा ही न कर रहे हों...

एक सरकारी बैंक की शाखा में एक मेनेजर साहब हैं..बोलने के एकदम सोना, व्यवहार से एकदम हीरा..हंसीं तो जैसे चेहरे से हटने का नाम नहीं लेती..एक दिन शाखा में bsnl की लाइन डाउन होने के कारण connectivity नहीं आ रही थी। मैनेजर साहब चाय और बिस्कुट खा रहे थे और क्लर्क अपने अन्य कामों में मशगूल थे। 
तभी एक ग्राहक आये और पासबुक प्रिंट करने को कहने लगे..मैनेजर साहब ने विनम्रता से समझाया कि connectivity नहीं आ रही है इसलिए अभी ये काम नहीं हो पायेगा। 
ग्राहक बमक पड़े..मैनेजर साहब से कह दिया कि तुम लोग हमारे पैसों का खाना खाते हो, हमारी बदौलत तनख्वाह पाते हो और हमारे काम के लिए ही बहानेबाज़ी कर रहे हो..
मैनेजर साहब के आत्मसम्मान को थोड़ा धक्का लगा लेकिन वो एक आदर्श बैंकर की तरह मुस्कुराते रहे। तभी अचानक पुलिस के दो सिपाही रूटीन चेकिंग के लिए बैंक आये। 
मेनेजर साहब ने विनम्रतापूर्वक ग्राहक से कहा कि भाईसाहब, आपने सही कहा कि हम आपके पैसे का ही खाते हैं और हर पब्लिक सर्वेंट पब्लिक की ही वजह से ज़िंदा है। लेकिन क्या आप ये ही बात यहाँ खड़े सिपाही से बोल सकते हैं???
ग्राहक के पास न जवाब था, न हिम्मत...
मैनेजर साहब मुस्कुराये और कहा कि आप जैसे जागरूक लोगों की देश को जरूरत है लेकिन ये जागरूकता और अधिकार बैंक काउंटर के साथ साथ अन्य विभाग जैसे पुलिस, नगर निगम, तहसील आदि में भी दिखाएंगे तो देश बदलते देर नहीं लगेगी..
15 रूपये सर्विस चार्ज के लिए बैंक मैनेजर से लड़ने के साथ ही रिश्वत मांगते हुए अन्य विभागों के अधिकारीयों से भी लड़े तो देश वैसे ही सुधर जाएगा...

जागरूकता, अधिकारों का ज्ञान, बदलाव अत्यंत आवश्यक है लेकिन इसे समानता से हर जगह लागू किया जाये तो..  

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