अधूरी_ख़्वाहिशें-14 "तुम चोर हो "(एक होली ऐसा भी ) संस्मरण


जब भी डायरी देखता हूं...
तेरी यादो सिलसिले पहले की भांति ही काबिज़ हो जाते है,
आज फिर पलटता रहा उस पन्ने को पर उसी पे नजर  टिक जाती है और फिर क्या बहने लगा उन्ही जज्बातों का समुंद्र जो कभी हिलोरे लेता था मुझमे,भले ही बेजान खामोश सा हो गया था !
वो लहरे कुछ लम्हात के लिए,
पर यकीन मान एक तूफ़ान
तेरी यादो का हर रोज बहता था मेरी आँखों से,
जब से खोली है डायरी वो सुखी गुलाब महक रही है..वैसे ही!

"इस पेज मे अभी भी... नज़रें चुरा रही हो  तुम
मैंने कागज़ पर भी बनाई हैं आँखें तुम्हारी 😘"

तेरा प्यार फिर से फिजाओ में, और भिगो रहा है 
 समुंद्र सा है तेरी मोहब्बत  -फिर से लहर बढ़ने लगी है किनारों पर मिलने की तमन्ना में......

....पेज पलटते ही तुम्हे  पाया -

मैने रंग दि हर रंग तेरे नाम से
मेरी आंखों से पूछो इश्क का रंग कौन सा है!
☺☺
सामने लिखा थातुम चोर हो 

कच्चे आलू के आधे टुकड़े पे तेरा नाम लिखकर, तुम्हारें सफेद शर्ट पर...चटक हरे रंग से जोर का ठप्पा लगा दी...
ही ही ही !!!!.......
मुझे तो गुस्सा आ रहा था मेरी नई शर्ट की ऐसी की तैसी कर दी तुम पर तेरी हसी देखकर थोड़ा मुस्कुराते  हुए कहा ---
तुम चोर हो...क्या???
मैं क्या चुरायी हूँ तुम्हारा?
ये तो मुझे भी नही पता...जवाब क्या दूँ...
बस तुम चोर हो ..चुपके से शर्ट पर धबा लगाई..जो....
और ये लो तुम्हारे शर्ट पे भी चोर की धब्बा लगा दी हूँ...बुरा न मानना...क्योंकि परसों होली है...उन दिनों हमदोनो में बचपना ही था हम दोनों मैट्रिक -इंटर में पढ़ते थे...
तुम गुस्सा होकर मेरी ममी के  पास चले गयेे और मैं भी चुपचाप पीछे-पीछे चली गयी तुम्हारे..मम्मी भी हँसते-हँसते लोट-पोट हो गयी थी.....पर बोली की उसी से साफ करा देंगे-हम भी मुस्कुरा दिए!  और ममी  बोली  इसकी करतूत ही ऐसी रहती है ----
..मेरी करतूत ही ऐसी होती थी...उस वक्त कोई बन्धन नही था...सहजता कूट-कूट के भरी थी...किसी का भी भय नही...कौन क्या कहेगा...मन की सरिता जिस भाव में बह जायें...कोई लोक- लज्जा नही...किसी की फिक्र नही...दिल की मर्जी से सबकुछ...वो दिन कितने प्यारे थे...
वर्षो गुजर गये...सीढ़ियों पे बैठकर सोच रही थी..2 दिन बाद ही होली है...क्या करूँ...क्या पहनूँगी..क्या तैयार करूँगी...किसके घर जाऊँगी...वगेरह-वगेरह...और अचानक बचपन की होली की घटना याद आ गयी...बूढ़े लोगो को बहुत परेशान करती थी भर भर बाल्टी रंग मुह पे ही फेक देती.......
बचपन के उन पंक्तियो में खो गई -
होली का हंगामा है !
सबको रंग लगाना है!
कहाँ बाल्टी बढ़िया है
कहाँ रंग की पुड़िया है
कहाँ रखे हैं लाल अबीर
आया है या नहीं कबीर?
पिचकारी भर लाना है!
होली संग मनाना है!
ऋतुओं पर ठहरा गुलाल है
रंग रंगा हर नौनिहाल है
कोयल कूहू बोली है
होली है भई होली है
नया घाघरा नई कुर्तियाँ
नये पजामे नई जूतियाँ
चूड़ी चुनरी चोली है
होली है भई होली है
आइना पे नजर पड़ा तो पता चला की वो बचपन वाली मुस्कान नही रहा अब ----बड़ी जो हो गई हूं  !!!
फिर ख्याल आया तुम भी तो इस बार की होली में फाइनल इम्तिहान  की वजह से अपने गांव नहीं जा रहे हो ! मम्मी  को बताने लगी की वो घर नहीं जा रहे है होली में तभी मम्मी बोली की हमको पता है  हम निमंत्रण दे दिए है ...
दिल गदगद हो गया ममी की बातो को सुनकर मम्मी हो तो ऐसी !!
अब तो कन्फर्म हो गया की तुम होली में मेरे घर आओगे ! ...मुझसे मिलने भी आओ और तुम गुलाल लगाओगे !
मेरे गालो को पहली बार कोई छूएगा ! अपने हाथों से गुझियां खिलाओगे!
कई सारे सपनो ने इस बार की होली को खास बना दिया था ...उमंग में मेरी मुँह से थोड़ा तेज आवाज से निकल ही गया-रंग बरसे भीगे चुनरवाली रंग बरसे ...
होली हो और ये गाना न निकले मुँह से ये हो नहीं सकता
इतने में माँ आवाज लगायी...आलू के चिप्स और पापड़  बनाने के लिए...होली एक दिन का और तैयारी पांच दिन से...खैर तुमको आलू के चिप्स और पापड़ बेहद पसन्द है मुझे याद है...इस कदर आपके प्यार हम सवरने लगे
 गुनगुनाते हुए मैं पापड़ बनाने में रम गयी थी...कहा जाता है जो दिमाग चलते रहता वही सपने में भी आता है
आज रात के सपने भी उमंग भरी ही थी मैं भागना तो नही चाहती थी मगर तेरे हाथो में रंग देखकर भाग पड़ी भला रंग लगवाने की डर किसको न होता तभी नींद खुली....फटाफट तैयारी करने लगी रूम को सजाने रंगोली.बनाने लगी..खास करके पकवान की तैयारी
रघुवीरा खेले अवध में रघुवीरा गुनगुना रही तभी ममी टोक दी बड़ी बावली है ....जल्दी जल्दी  करो ....।
सड़कों और गलियों में सुबह से ही काफी शोर शराबा था...नगाड़े की डम-डम की आवाज...बच्चे मुँह में तरह तरह के मुखड़ा लगा के गधे को माला पहना के आगे-पीछे तमाशा कर रहे थे...खैर अब सब देखने में मुझे आंनद नही मिलता...शान्ति और सादगी में जो आंनद है वो इस हुल्लड़ में कहाँ...रंग देखकर बुखार सा हो जाता है...हरा रंग जहाँ लग जाए तो वहाँ की चमड़ी ही बेकार...12 बजे तक तो ये रंगोत्सव ही चलेगा...ये सोचकर मैं मुख्य दरवाजा बन्द कर पकवान बनवाने लगी थी... 
रंग की अपेक्षा मुझे गुलाल पसन्द है...आज आओगे तो गाल पे एक तरफ गुलाबी  गुलाल और दूसरे तरफ हरा गुलाल लगाऊँगी...यही सोच-सोच इतरा रही थी...ओह! TV में भी भोजपुरी  के फूहड़ गीत..लेकिन जो भी कहिए अपनी मैथली मगही भोजपुरी की होली गीत में जो मजा है दूसरे में कहा!..चैनल बदलते ही मेरे फेबेरेट मालिनी अवस्थी के साथ
गुनगुनाते फगुनुवा में रंग रच रच बरसे....
मन्द-मन्द मुस्काते हुए सजने लगी...सफ़ेद  रंग का लिबास
और सफेद स्टोन का झुमका पहन ली.-....जुल्फों में मोती चिपका के जुड़ा तैयार की..
महकते सफेद लिली से गजरे बनाते वक्त  उसमे 1 रेड रोज फसाके कलाई में डाल रखी है..समय मिलते ही तुमसे गजरे झट से जुड़े में लगवा लुंगी।
( सब सफेद सफेद सफेद ! खुश भी हु कि जैसे ही गालो में गुलाल लगाओगे मेरा दिल भी तेरे प्रेम रंग में रंग जाएगा परन्तु थोड़ा अफसोस भी है मेरा दिल पहले कि भांति अब सफेद कोरा न रह जायेगा)
...मेज पर गुलाबी और हरा गुलाल रख दी...आलू के चिप्स और पापड़ तल के डिब्बे में रख दी ताकि चुरमुरे रहे...अब आँखों में आकुलता है सिर्फ तुम्हारे आने की...इंतज़ार की घड़ियां बीत गयी और तुम आ गये...मन की व्याकुलता घटने की बजाय बढ़ गयी...उमंग में गुनगुना.जाती -.....चाहै भीजे चुुुनरिया या चोली आज न छोड़ेंगे तेरे संग.खेलेगे होली .....
इससे पहले ही ...माँ को बैठा दी तुमसे बात- चीत करने के लिए...स्वयं आलू के
पापड़ और चिप्स लाने चली गयी...गुझिया, मालपुआ नमकीन पहले से ही मेज पे रख दी थी...

ये.लो!.. चखो और स्वाद बताओ कैसा है.??..इतने में मन किया कि गुलाल लगा ही दूँ...मौका अच्छा है ...खाते हुए तुम कुछ कर भी न पाओगे..(पर तुम सतर्क थे इस बार पुरानी शर्ट पहन रखे थे ).... 
लेकिन अब ये हाथ क्यों नही बढ़ रहे...इसे क्या हुआ...शायद एक संकोच...लज्जा...संस्कार...सब मिलकर रोक लिये...विशेष डर ये भी था की पापा को सक न हो जाये कही हम दिल दे बैठे है आपको --और पापा को ये सब चीजे बिलकुल समझ से परे है- फिर वे हमेशा के लिए हमदोनो को दूर कर देते !)
मन को दबा लेना ही उचित लगा...पलकें झुकती गयी और 
मै  चोर की तरह नजरे छुपाकर अपने बेडरुम  में चली गई-  फिर अपनी तकया से लिपट गई ,,,,,,
तुम पास रहकर भी दूर हो गए...
 .हम दोनो के ..गुलाल लगाने की ख़्वाहिश अधूरी रह गयी...मन के कोने से आवाज गूँज रही थी...कुछ ख़्वाहिशें पूरी होने में वक्त लगता हैं।
प्रेम और त्याग एक दूसरे के तो पूरक है जिस प्रेम में त्याग नही वो प्रेम अपूर्ण है।
जब साथ होंगे तो ऐसी कितनी बार मालपुआ गुझिया पकवान बनायेगे और साथआपके हाथों से खाएंगे, रंग गुलाल भी लगवाने से डरेंगे नही बेधड़क बेपरवाह होकर धूमधाम से होली खेलेंगे हा मथुरा की तरह💝

जो एहसास
ह्रदय को
ख़ुशी से भर दे
वही प्रेम है .........!!

सचमुच में मुझे उस होली की यादे दिल को खुश कर देता है..
उस होली के दिन -पहले तो उसे देखकर मैं दंग रह गया कितनी बदल गयी थी अपने आप को खूब सवारी  थी  कितनी खूबसूरत लग रही थी वह अपने सफ़ेद सलवार सूट में उसके बाल जिसको
वह अपने उँगलियों से कान के ऊपर रखती थी  तभी सफेद झुमका भी न ओह!! उसके
 उफ़ वो संगमरमर सा फिसलता गाल, सादगी भरी मुस्कान एवं झील सी गहरी आंखे का कशिश देखकर लग रहा था कोई इतना खूबसूरत कैसे हो सकती है बिना मेकअप  में! मानो साक्षात ताजमहल का ही दीदार हो रहा...
काश! कुछ पल पास होती तुम और कह दिया होता"तुम सफेद कपड़ो में बिलकुल ताजमहल लगती हो"!

वैसे तभी एक बात समझ आया कि
तारीफ के मोहताज;
नहीं होते खूबसूरत लोग,
कयोंकि असली फूलों पर;
इत्र  छिड़का नहीं जाता 
उसकी मुस्कराहट आज भी मेरे जहन में है.. उस वक्त मैं हिम्मत कर कह दिया होता काफी स्वादिष्ट गुंजिया बनाती हो "धन्यवाद " 
तुम छुपारुस्तम निकली बहुत सारे गुण दिए है खुदा तुम्हे सिंगिंग, कुकिंग, रंगोली बनाना, होम डेकोरेटिंग, स्पेशली कठिन परिस्थिति में भी मुस्कुराते हुए रिश्ते को निभाना।
काश! उसके चुपके से जाने से पहले कह दिया होता इतने सारे अच्छे गुण भरे है और तुम हमे  बताती भी नही सचमुच  "तुम चोर  हो"


तेरे चेहरे पर रंग लगा देते 
तु पास होती तो हम भी 
होली मना लेते.😒....

सच में ऐसा होली अब नहीं आ सकता --मेरी भी ख्वाइश अधूरी ही रह गई ! 
लेकिन यकीन मानिए कुछ ख्वाइशें अधूरी ही बेहतरीन होती है चुकी आपको मन ही मन उल्लासित और आनंदित करती रहती है वर्षो तक।     ~★राहुल प्रसाद ★

एक नजर देखना तेरा और मेरा लूट जाना
होंठो में छिपाकर नजरों से सबकुछ कहना
याद है वो मुझे देखकर तेरा बार-बार मुस्कुराना

ज़िंदगी में
हमेशा ऐसे लोगों को
पसंद करो
जिनका दिल चेहरे से
ज्यादा खूबसूरत हो । 

खैर  मेरी तो कहानी  अधूरी खवाइसे वाला ही होता है मगर होली की त्यौहार एक अपने आप में अनोखा ही है ---ये पक्ति और गाना आपको होली की यादे ताजा कर देगी।

रंग -रंगीली मस्ती वाला, आया है होली का त्यौहार. 
प्रेम भाव से इसे मनायें, न हो कोई भी तकरार.
 रंग लगायें एक दूजे को, करे प्रेम रस की बौछार, 
जाती -मजहब सब भूले आज, बड़ों को आदर , 
छोटो को दें प्यार. 
रीत -प्रीत , गीत -मीत और, रंग उमंग तरंग उपहार, 
भेद भाव मिटाने दिल का, आता है होली का त्यौहार.
***Happy Holi****◆RP●🎊🎁
आपके
मन और आत्मा के सर्वश्रेष्ठ रंगों में उत्तरोत्तर वृद्धि हो
होली की हार्दिक शुभकामनाएं🌹
उतरी भारत की होली गीत संस्कृति को और भी समृद्ध की है
सुनिए और मदमस्त हो जाइए ...







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