अनुभव से कटु सत्य -4 Thoughts


हमारा जीवन विचारों (Thoughts) से ही चलता है| हर विचार एक बीज की तरह होता है, जो हमारे नजरिया और व्यवहार रुपी पेड़ का निर्माण करता है|

जहाँ ! हमारा स्वार्थ समाप्त होता है....!
वही से..
हमारी इंसानियत आरम्भ होती है......!!

A

Friends, हर एक  काम की  अपनी  importance होती  है , अपने  काम  को  बड़ा समझना ठीक  है  पर  दूसरों  के  काम  को  कभी  छोटा  नहीं  समझना  चाहिए  ; हम  औरों  के  काम  के  बारे  में  बस उपरी तौर पे  जानते  हैं  लेकिन  उसे  करने  में  आने  वाले  challenges के  बारे  में  हमें  कुछ  ख़ास  नहीं  पता  होता . इसलिए  किसी  के  काम  को  छोटा  नहीं  समझें  और  सभी  की  respect करें .

B
फ्रेंड्स, बहुत बार हम किसी सिचुएशन के बारे में अच्छी तरह जाने बिना ही उसपर रियेक्ट कर देते हैं। पर हमें चाहिए कि हम खुद पर नियंत्रण रखें और पूरी स्थिति को समझे बिना कोई नकारात्मक प्रतिक्रिया न दें। वर्ना अनजाने में हम उसे ही ठेस पहुंचा सकते हैं जो हमारा ही भला सोच रहा हो।

C
Friends, हमारे साथ  जो कुछ भी  घटता है  उसके  positive और  negative aspects हो सकते हैं . ज़रुरत  इस  बात  की  है  की  हम  positive aspect  पर  concentrate करें  और  वहीँ  से  अपनी  inspiration draw करें .

Friends, आप अपनेँ बारे मेँ क्या सोचते है? खुद के  आप क्या राय स्वयँ पर जाहिर करते हैँ? क्या आप अपनेँ आपको ठीक तरह से समझ पाते हैँ? इन सारी चीजोँ को ही हम indirect रूप से आत्मसम्मान कहते हैँ। दुसरे लोग हमारे बारे मेँ क्या सोचते हैँ ये बाते उतनी मायनेँ नहीँ रखती या कहेँ तो कुछ भी मायनेँ नहीँ रखती लेकिन आप अपनेँ बारे मेँ क्या राय जाहिर करते हैँ, क्या सोचते हैँ ये बात बहूत ही ज्यादा मायनेँ रखती है। लेकिन एक बात तय है कि हम अपनेँ बारे मेँ जो भी सोँचते हैँ, उसका एहसास जानेँ अनजानेँ मेँ दुसरोँ को भी करा ही देते हैँ और इसमेँ कोई भी शक नहीँ कि इसी कारण की वजह से दूसरे लोग भी हमारे साथ उसी ढंग से पेश आते हैँ।

याद रखेँ कि आत्म-सम्मान की वजह से ही हमारे अंदर प्रेरणा पैदा होती है या कहेँ तो हम आत्मप्रेरित होते हैँ। इसलिए आवश्यक है कि हम अपनेँ बारे मेँ एक श्रेष्ठ राय बनाएं और आत्मसम्मान से पूर्ण जीवन जीएं।

D
हर व्यक्ति की अपनी एक कहानी होती है| सम्पूर्ण सच को जाने बिना किसी के भी व्यवहार के बारे में निर्णय नहीं करना चाहिए| हो सकता है कि जो दिख रहा है वह सम्पूर्ण सच न हो|
Don’t judge people before you truly know them. The truth might surprise you.Think before you say something



हम लोगों की जिंदगी भी कुछ ऐसी ही हो गयी है| हम अपनी तुलना दूसरों से करते रहते है और दूसरों को देखकर हमें लगता है कि वो शायद हम से अधिक खुश है| इस कारण हम दु:खी हो जाते है|
घर गाड़ी कार बीबी दौलत की तुलना किसी से न करे वो उसकी मेहनत और किस्मत से है अगर आप ऐसा करते हो दुःख के सिवा कुछ हासिल नही होगा 
अगर तुलना करना ही है तो वो कितना खुश रह लेता है इस पर करो।

F
हम उनका आनंद नहीं उठा पाते जो हमारे पास पहले से ही और उन वस्तुओं के पीछे भागने लगते है जो हमारे पास नहीं है | और इसी चक्कर में समय निकलता जाता है और बाद में आकर हम सोचते है कि पहले हम अधिक खुश थे| दुनिया में हर व्यक्ति के पास अन्य व्यक्ति से कुछ वस्तुएं अधिक और कुछ कम होगी इसलिए दुनिया में सबसे खुश वही जो अपने आप से संतुष्ट है|”
G
जिस तरह  पत्थर को एक मिनट तक हाथ में रखने पर थोडा सा दर्द होता है और अगर इसे एक घंटे तक हाथ में रखें तो थोडा ज्यादा दर्द होता है और अगर इसे और ज्यादा समय तक उठाये रखेंगे तो दर्द बढ़ता जायेगा उसी तरह दुखों के बोझ को जितने ज्यादा समय तक उठाये रखेंगे उतने ही ज्यादा हम दु:खी और निराश रहेंगे| यह हम पर निर्भर करता है कि हम दुखों के बोझ को एक मिनट तक उठाये रखते है या उसे जिंदगी भर| अगर तुम खुश रहना चाहते हो तो दु:ख रुपी पत्थर को जल्दी से जल्दी नीचे रखना सीख लो और हो सके तो उसे उठाओ ही नहीं

H
दोस्तों स्वंय को जगाओ, अपने सपनों को जगाओ, अपने मन को स्वतंत्र बनाओ, अपने निर्णय स्वंय लो क्योंकि “आप से बेहतर आपको कोई नहीं जानता”|

I

जीवन एक संघर्ष है एंव इसका सामना प्रत्येक व्यक्ति को करना होता हैं|”

मुसीबतों से भागना, नयी मुसीबतों को निमंत्रण देने के समान है| जीवन में समय-समय पर चुनौतियों एंव मुसीबतों का सामना करना पड़ता है एंव यही जीवन का सत्य है|

बीच रास्ते से लौटने का कोई फायदा नहीं क्योंकि लौटने पर आपको उतनी ही दूरी तय करनी पड़ेगी जितनी दूरी तय करने पर आप लक्ष्य तक पहुँच सकते है|
हम भी प्रतिकूल परिस्थियों के कारण और कुछ प्रयासों के विफल हो जाने पर प्रयास करना छोड़ देते है| हम स्वंय को अपनी ही नकारात्मक सोच के बन्धनों में बाँध देते है और यह मानने लगते है कि हमारे प्रयास कभी सफल हो ही नहीं सकते


  • हमें कोई नहीं रोक सकता| अगर हमें कोई रोक सकता है, तो वह है हमारी खुद की सोच| जब हम सच्चे दिल से प्रयास करते है तो सारी सृष्टि हमारी मदद करने लगती है और सारे बंद दरवाजे अपने आप खुल जाते है लेकिन कई बार दुर्भाग्य से हम थोड़ा सा प्रयास करके उन दरवाजों तक पहुँचने के प्रयास भी नहीं करते|


जिंदगी में किया गया कोई भी काम या मेहनत कभी बेकार नहीं जाती| हम जितनी मेहनत करते है उसका प्रतिफल हमें किसी न किसी रूप में अवश्य मिलता है, यही सत्य है|

J-10

फर्क केवल इतना है कि कुछ व्यक्ति इस बात पर विश्वास करते है कि “मेहनत कभी बेकार नहीं जाती” और अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए तब तक प्रयास करते रहते है जब तक कि लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेते| वहीँ दूसरी और कुछ व्यक्ति जल्दी ही हार मान लेते है और प्रयास करना बंद कर देते है|

यही सफलता और असफलता के बीच का फर्क है जिसे हम विश्वास या आत्मविश्वास कह सकते है क्योकि सारा खेल विश्वास का ही है।

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K

आत्मा अदृश्य है, शरीर दृश्य है, मन भी दृश्य है। दृश्य अदृश्य को छू भी नहीं सकता। आत्मा इनसे कलुषित नहीं होती है। आत्मा कलुषित हो ही नहीं सकती है। आत्मा का होना ही शुद्ध—बुद्ध है। लाख पाप किए हों, भ्रान्ति इसमें है कि मैंने किए। और पाप के कारण पापी नहीं हो गए हो। कितने ही पाप किए हों, पापी हो नहीं सकते, क्योंकि पापी होने की संभावना ही नहीं है।अंतस्तम,आंतरिक स्तल सदा शुद्ध है।
जैसे कि दर्पण के सामने कोई हत्यारे को ले आए, तो दर्पण हत्यारा नहीं हो जाता। दर्पण के सामने ही हत्या की जाए, तो भी दर्पण हत्यारा नहीं हो जाता। दर्पण के सामने ही खून गिरे, तो भी दर्पण पर हत्या का जुर्म नहीं है। जो भी हुआ है, शरीर और मन में हुआ है। इन दोनों के पार  होना अतीत है, अतिक्रमण करता है। न वहा कोई तरंग कभी पहुंची है न पहुंच सकती है।
'ऐसा जान कर मैं स्थित हूं!'
साधारणतः तो मनुष्य जो दृश्य है, उससे उलझ गया हैं और द्रष्टा को भूल गया है।
शरीर में अदृश्य दृश्य के साथ बंधा बैठा है। मन में निस्तरंग तरंगों के साथ बंधा बैठा है। जब रोशनी आएगी, तब जागेंगे और जानेंगे।
रोशनी कैसे आएगी?
ये सूत्र रोशनी के लिए ही हैं।
'अध्यास आदि के कारण विक्षेप होने पर समाधि का व्यवहार होता है। ऐसे नियम को देख कर समाधि—रहित मैं स्थित हूं।’
ये बड़े क्रांतिकारी सूत्र हैं।
’समाधि—रहित मैं स्थित हूं!'
जैसे बीमारी होती है तो औषधि की जरूरत होती है। चित्त में विक्षेप है तो ध्यान की जरूरत है।
अंग्रेजी में जो शब्द है ध्यान के लिए, मेडीटेशन, वह उसी धातु से आता है, जिससे अंग्रेजी का शब्द है मेडिसिन। दोनों का मतलब औषधि होता है। मेडिसिन शरीर के लिए औषधि है; और मेडीटेशन, आत्मा के लिए।
लेकिन आत्मा तो कभी रुग्ण हुई नहीं, तो वहां तो औषधि की कोई जरूरत नहीं है। मन तक औषधि काम कर सकती है। लेकिन अगर समझा कि मैं मन के साथ एक हूं तो मन के साथ एकता तोड़ने के लिए औषधि की जरूरत है।
अगर  जाग कर इतना समझ लें कि मैं मन के साथ अलग हूं ही, कभी जुड़ा ही नहीं—तो बात खतम हो गई, फिर औषधि की कोई जरूरत न रही।
आत्मा को ध्यान करने के कारण भी बंधन शेष रहता है, क्योंकि क्रिया जारी रहती है। कहते हैं,हम ध्यान कर रहे है—तो कुछ करना जारी है। ध्यान तो अवस्था है न करने की। कहते हैं, हम समाधिस्थ हो गए—तो सांख्य कहता है कि क्या कभी ऐसा भी था कि समाधिस्थ नहीं थे?
समाधि तो स्वभाव है। तो जो समाधि बाहर से लगा लेते हैं, किसी तरह आयोजन करके जुटा लेते हैं; वह मन में ही रहेगी, मन के पार न जाएगी।


राहुल प्रसाद -आधा सा लेखक 



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