अधूरी ख़्वाहिशें-7 समंदर के किनारे
**********
हर लहर उठती है एक नयी उम्मीद लेकर
खाती ठोकर चट्टानों की,अपना सबकुछ देकर
फिरभी खिंचती चली आए, मिलने किनारे से
जीते ये सदियों से एक दूसरे के सहारे
कुछ देर और बैठ लु मैं समुन्दर किनारे।
समंदर_के किनारे
समंदर के किनारे घण्टों बैठना, घूमना, टहलना और तुम्हारी यादों से बात
करना...रेत पे बैठे-बैठे तुम्हारें ख्यालों में खो जाना...दिल को बेहद सुखद
अहसास देता ... लहरें छप-छप कर रही थी...लहरों का टकराना संगीत सा लग रहा
था...मौसम मस्ताना हुआ जा रहा था...ऐसे में लग रहा था कि तुम मेरे पास हो
और मुझे देख रहे हो...मेरी आँखों की चमक बढ़ती ही जा रही थी...मैं छोटा बच्चा की तरह कभी डाकत्ता कभी लहरों से खेलता...खूब हँसता और चिल्लात...हाँ मुझे तुमसे मोहब्बत है ...मोहब्बत है ...मोहब्बत है...
ख्यालों ही ख्यालों में;
मैं तो एक घर भी बना लिया...जिसमें तुम ,मैं और सिर्फ हमारी मोहब्बत को आने की इजाजत थी...मैं लगातार गाये जा रहा था...सोचो कि झीलों का शहर हो...लहरों पे अपना एक घर हो...कितना मजा आ रहा था...सब कुछ जादुई लग रहा था..
.यूँ ही तुम तुम्हारे कन्धे पे सिर रख के सो गयी ...हम मूर्ति की तरह जड़वत होकर बैठे थे...हिल भी नही रहे थे कि कहीं तुम उठ न जाओ
तभी तेरे ओठ थार्थरये
उठाओ मत मुझे सोने दो ,अभी जज़्बात बाकी है ,
हुई दरिया से मुलाकात ,अभी कुछ बात बाकी है ।
पर...तेरी शरारती जुल्फ़े पलकों और गालों को छू लेती और हम बार-बार हटाते। ....
......
वैसे तो सब कुछ है मेरे पास,,,,,,
पर तेरे जैसा कोई खास नही....
मैं रूठी तो तू मना लेना,
कुछ मत कहना बस गले से लगा लेना!
हमें पता है तुम जगी थी...लेकिन इस पल को खूब जीना चाहती
थी...सोने का केवल नाटक कर रही थी ...
अचानक तेज-तेज हवाएँ चलने लगी...लम्बे-लम्बे नारियल के पेड़ हिलने लगे...रेत के कुछ कण आँखों में चुभने लगे..ओह्ह आखिर इन कणों का हम क्या बिगाड़े थे भला...कितना सुन्दर सपना था ...मेरे सपनों को तोड़कर इन्हें क्या मिला...
लगा कुछ चुभ सा गया
_____________
काश उनसे मुलाक़ात न होती
आँसुओ की बरसात न होती।
लहरें फिर किनारों से छप -छप करते हुए टकरा रही थी...पर इस बार संगीत की तरह कुछ भी नही लग रहा था...
शायद लहरें भी अपने प्रिय की याद में सिर टकरा रही थी और रुदन कर रही थी...बस यही लग रहा था फिर से... कुछ ख़्वाहिशें अधूरी ही रह गयी
हर रोज़ हर वक्त तेरा ही ख्याल.....
न जाने किस कर्जे की किश्त हो तुम !!
कुछ ख़्वाहिशें अधूरी ही बेहतरीन होती है..
राहुल प्रसाद - दमन नवबर 2015
बिकती है
ना ख़ुशी कहीं,
ना कहीं
गम बिकता है
लोग
गलतफहमी में हैं,
कि शायद कहीं
मरहम बिकता है
इंसान ख्वाइशों से
बंधा हुआ,
एक जिद्दी परिंदा है..
उम्मीदों से ही घायल है
उम्मीदों पर ही जिंदा है...!(कॉपी)
कभी यादें , कभी बातें , कभी बीती मुलाकातें ,
मत पूछ कि किस तरह से कट रही है जिंदगी ।
******
हर लहर उठती है एक नयी उम्मीद लेकर
खाती ठोकर चट्टानों की,अपना सबकुछ देकर
फिरभी खिंचती चली आए, मिलने किनारे से
जीते ये सदियों से एक दूसरे के सहारे
कुछ देर और बैठ लु मैं समुन्दर किनारे।
इश्क़
और अश्क ---
--- दो समंदर
!!
ख्यालों ही ख्यालों में;
मैं तो एक घर भी बना लिया...जिसमें तुम ,मैं और सिर्फ हमारी मोहब्बत को आने की इजाजत थी...मैं लगातार गाये जा रहा था...सोचो कि झीलों का शहर हो...लहरों पे अपना एक घर हो...कितना मजा आ रहा था...सब कुछ जादुई लग रहा था..
.यूँ ही तुम तुम्हारे कन्धे पे सिर रख के सो गयी ...हम मूर्ति की तरह जड़वत होकर बैठे थे...हिल भी नही रहे थे कि कहीं तुम उठ न जाओ
तभी तेरे ओठ थार्थरये
उठाओ मत मुझे सोने दो ,अभी जज़्बात बाकी है ,
हुई दरिया से मुलाकात ,अभी कुछ बात बाकी है ।
...
और मुझे एहसास हुआ आँखों की छुअन से,
लबों का थरथराना ही.....इशक़ है.....!!
......
वैसे तो सब कुछ है मेरे पास,,,,,,
पर तेरे जैसा कोई खास नही....
मैं रूठी तो तू मना लेना,
कुछ मत कहना बस गले से लगा लेना!
अचानक तेज-तेज हवाएँ चलने लगी...लम्बे-लम्बे नारियल के पेड़ हिलने लगे...रेत के कुछ कण आँखों में चुभने लगे..ओह्ह आखिर इन कणों का हम क्या बिगाड़े थे भला...कितना सुन्दर सपना था ...मेरे सपनों को तोड़कर इन्हें क्या मिला...
लगा कुछ चुभ सा गया
_____________
काश उनसे मुलाक़ात न होती
आँसुओ की बरसात न होती।
लहरें फिर किनारों से छप -छप करते हुए टकरा रही थी...पर इस बार संगीत की तरह कुछ भी नही लग रहा था...
शायद लहरें भी अपने प्रिय की याद में सिर टकरा रही थी और रुदन कर रही थी...बस यही लग रहा था फिर से... कुछ ख़्वाहिशें अधूरी ही रह गयी
हर रोज़ हर वक्त तेरा ही ख्याल.....
न जाने किस कर्जे की किश्त हो तुम !!
कुछ ख़्वाहिशें अधूरी ही बेहतरीन होती है..
राहुल प्रसाद - दमन नवबर 2015
बिकती है
ना ख़ुशी कहीं,
ना कहीं
गम बिकता है
लोग
गलतफहमी में हैं,
कि शायद कहीं
मरहम बिकता है
इंसान ख्वाइशों से
बंधा हुआ,
एक जिद्दी परिंदा है..
उम्मीदों से ही घायल है
उम्मीदों पर ही जिंदा है...!(कॉपी)
कभी यादें , कभी बातें , कभी बीती मुलाकातें ,
मत पूछ कि किस तरह से कट रही है जिंदगी ।
Comments
Post a Comment