कटु सत्य-6 - सुधार

कटु सत्य-6  सुधार
दूसरे व्यक्तियों में सुधार करने से पहले हमें अपने सुधार की बात पहले सोचनी होगी। दूसरों से मधुर व्यवहार की अपेक्षा रखने से पूर्व हमें स्वयं अपने व्यवहार को मधुर रखना होगा। कई बार हमारा खुद का व्यवहार कितना निम्न और अशोभनीय हो जाता है।
          दूसरों की कमजोरियों और दुर्बलताओं का हम बहुत मजाक उड़ाते हैं। एकदम आग बबूला भी हो जाते हैं। कभी हमने बिचार किया कि हमारे स्वयं के भीतर भी कितने दोष- दुर्गुण और वासना भरी पड़ी है यह अलग बात है हमने उसके ऊपर सच्चरित्र की झूठी चादर ओढ़ रखी है।
       इस जगत में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं जो पूर्णतः भला हो या बुरा हो। परिस्थिति के हिसाब से भली बुरी छवि सामने आती रहती है। यदि हम दूसरों में बुराई, अभाव या अपकार ही देखते रहेंगे तो जीवन को नरक बनते देर ना लगेगी। याद रखना दुनिया में किसी को सुधारना चाहते हो तो केवल स्वयं को सुधारो।


कटु सत्य -स्वभाव
मनुष्य का स्वभाव धन से और धर्म से बदल जाता है..
जब धन संपन्न होता है,
तब अकड़ कर चलता है..
जब धर्म संपन्न होता है,
तो विनम्र होकर चलता है..
मनुष्य की वास्तविक पूंजी धन नही, बल्कि
उसके विचार हैं क्यों कि धन तो खरीदारी में
दूसरों के पास चला जाता है पर विचार देने पर अपने
पास ही रहते हैं..!!
जिंदगी भले छोटी देना मेरे भगवन्.
मगर देना ऐसी 
कि सदियों तक लोगो के दिलों मे 
जिंदा रहूँ और हमेशा अच्छे कर्म कर सकूं..

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