फर्क पड़ता है! -प्रेणादायक क हा नी
फर्क पड़ता है! -प्रेरणदायक कहानी
हम सब आदर्शवादी और अच्छे कार्य करने की बातें करते रहते है| जैसे बिजली बचाना, सड़क पर कचरा न फेंकना, शादी समारोह अथवा अन्य आयोजनों या अपने घर में भोजन को waste न करना, ट्रेफिक नियमों का पालन करना, किसी जरूरतमंद की मदद करना और बहुत कुछ| लेकिन हम में से ज्यादात्तर लोग ऐसी बातों का पालन नहीं करते| ऐसा क्यों होता है कि हम पढ़े लिखे लोग ही इन छोटी छोटी बातों का पालन नहीं करते?
हम सब आदर्शवादी और अच्छे कार्य करने की बातें करते रहते है| जैसे बिजली बचाना, सड़क पर कचरा न फेंकना, शादी समारोह अथवा अन्य आयोजनों या अपने घर में भोजन को waste न करना, ट्रेफिक नियमों का पालन करना, किसी जरूरतमंद की मदद करना और बहुत कुछ| लेकिन हम में से ज्यादात्तर लोग ऐसी बातों का पालन नहीं करते| ऐसा क्यों होता है कि हम पढ़े लिखे लोग ही इन छोटी छोटी बातों का पालन नहीं करते?
सबसे ज्यादा खाना (Food), हम पढ़े लिखे लोग ही waste (वैस्ट) करते है जबकि दूसरी और भारत में रोजाना, लाखों लोग भूखे सोते है|
हम पढ़े लिखे लोग ही बिजली का अपव्यय करते है जबकि भारत के हजारों गावों में अब भी बिजली नहीं है|
ऐसे पढ़े लिखे लोग भी आसानी से मिल जायेंगे जिनके पास इतना भी Time (टाइम) नहीं कि वे सड़क पर पड़े हुए घायल व्यक्ति को अस्पताल पहुंचा दे|
ऐसा क्यों होता है कि हम पढ़े लिखे लोग ही इन बातों को नहीं समझते?
सामान्य सा कारण है और वह है हमारी नकारात्मक सोच| हम में से ज्यादातर लोग यह सोचते है, मानते है और कहते है, कि केवल मेरे अकेले के द्वारा इन बातों का पालन कर लेने से क्या हो जायेगा? इससे क्या फर्क पड जायेगा? वे इस कहावत पर विश्वास करते कि “अकेला चना भांड नहीं फोड़ सकता|”
सामान्य सा कारण है और वह है हमारी नकारात्मक सोच| हम में से ज्यादातर लोग यह सोचते है, मानते है और कहते है, कि केवल मेरे अकेले के द्वारा इन बातों का पालन कर लेने से क्या हो जायेगा? इससे क्या फर्क पड जायेगा? वे इस कहावत पर विश्वास करते कि “अकेला चना भांड नहीं फोड़ सकता|”
कहावते तो बहुत है, एक कहावत यह भी है कि “बूँद बूँद से ही घड़ा भरता है”| इसलिए आपके प्रयासों से कुछ फर्क तो पड़ता ही है!
मैं यहाँ पर एक प्रेरणादायक (Motivational video clip) प्रस्तुत कर रहा हूँ, जो शायद आपने सुनी हो लेकिन हो सकता कि उसका अभी तक आपने अपने जीवन मैं उपयोग नहीं लिया हो| यह कहानी यह बताती है कि आप मानों या न मानों लेकिन कुछ फर्क तो पड़ता ही है|
...... पता है मुझे की सारे मछली को वापस पानी में नही फेक पाता पर जिस एक को फेकता हु उसको तो फर्क पड़ता है.....
खुश रहे और लोगो को भी खुशी का मौका दें..
केवल
सोच का ही फर्क है| सकारात्मक सोच (Positive thoughts) वाले व्यक्ति को
लगता है कि उसके छोटे छोटे प्रयासों से किसी को बहुत कुछ मिल जायेगा |
गवर्नमेन्ट डेपार्टमें ट /बैंकिंग जॉब/आप देखेंगे कि ब्रांच में
एक-दो बहुत एक्टिव स्टाफ होता है
Hospital में स्टाफ नर्स/दुकान में स्टाफ-ये आपकी बातों को सुनते है और कोई काम दिल से करते है इसलिए आपका काम सही से हो जाये ऐसा ही सोचते है --ऐसे 1-2स्टाफ मिलेंगे।
जो ईमानदारी से दूसरे स्टाफ के तुलना में
ज्यादा वर्क करता है जिसके वजह से उस पर वर्क लोड ज्यादा होते हुए भी बीएस
करते जाता है जिससे ये फर्क पड़ता है कि ब्रांच का परफॉरमेंस अच्छा रहता है
और जो कुछ कमजोर लोग भी है तो उनको पर असर नही पड़ता है।-
अपने आज पर इतना ना इतराना मेरे यारों,
वक्त की धारा में अच्छे अच्छों को मजबूर हुआ देखा है.
कर सको तो किसी को खुश करो,
दुःख देते तो हजारों को देखा है.....!!!!
राहुल प्रसाद
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