बैंकिंग किस्से-4 'कुछ बैंकर ऐसे भी
बैंकिंग किस्से-4
'कुछ बैंकर ऐसे भी ' by RP
एक बैंक में एक कैशियर साहब की नई नई पोस्टिंग हुई..ये बात लगभग दो
साल पहले की है जब समाजवादी पेंशन योजना और विधवा पेंशन की भीड़ चरम पर थी।
दो
बूढ़ी औरतें जो एक दूसरे का सहारा लेकर बैंक आती थीं। जिनकी खाल झुर्रियों
से भरी थी और सबसे मोटे लेंस के चश्मे के बावजूद उन्हें ठीक से दिखाई नही
पड़ता था।
वो रोज़ाना सुबह आकर बैंक में बैठ जाती थीं
और हर आधे घण्टे में पासबुक अपडेट कराती थीं और पूछती थीं कि क्या पेंशन
आयी ?? और बैंक बन्द होने के समय लटका हुआ मुँह और व्यवस्था को मन ही मन
कोसते हुए घर चली जाती थीं।
एक दिन कैशियर बाबू ने
उन बुजुर्ग महिलाओं से उनके बारे में पूछा तो पता लगा कि एक बुजुर्ग महिला
का पेट का ऑपरेशन हुआ था और हर माह 2000 रुपये की दवाई जरूरी है। दूसरे के
घर में कोई नही और गुजर बसर का कोई साधन नहीं। बड़ी उम्मीद थी कि सरकार की
पेंशन स्कीम से हर माह कुछ पैसे आ जाएंगे लेकिन दलालों के बोलबाले के कारण
ये पैसे भी जरूरतमंदों को नहीं मिल पाते।
कैशियर बाबू पूरी रात सो नही सके...उनके मन में आया कि उन बुजुर्ग महिलाओं के लिए कुछ करें। ये ईश्वर ने मौका दिया है।
उनकी
बैंक का एक whatsapp group था..उन्होंने सारा माजरा वहां लिखा..अगले दिन
से कैशियर बाबू का फोन घड़घड़ाने लगा और कई कर्मचारी मदद को तैयार हो गए। कोई
अपने पैट्रोल बिल का पैसा देने को तैयार हुआ तो कोई हर माह 500 रुपये देने
को। बुजुर्ग महिलाओं के खाते में देखते देखते 10000 रुपये आ गए..कई लोग हर
माह पैसे भेजने को राजी हो गए।
कैशियर
बाबू ने बुजुर्ग महिलाओ से अगले दिन कहा कि सरकार ने आपकी मदद के लिए पैसे
भेज दिए। बुजुर्ग महिलाओ की बूढ़ी आंखें आंसुओं से भर आईं। वो पैसे निकालती
हुई दुआ देते देते बैंक से गयीं।
कैशियर
बाबू ने महिलाओं को ये नही बताया कि ये पैसे कहां से आये थे क्योंकि वो
नही चाहते थे कि सरकार और व्यवस्था से उन बुजुर्ग महिलाओं का भरोसा उठ जाए
और वो हतोत्साहित होकर अपनी बची ज़िन्दगी बसर करें।।
ये किस्सा मुझे एक बैंक ग्राहक ने सुनाया जो इस पूरे वाकये का गवाह रहा.था . जो उतर प्रदेश से है पर सूरत में एक डैमोंड फ़ैक्ट्री काम करते उनका खाता मेरे ब्रांच में था तो वो कुछ देर से 4.50 में ब्रांच में कुछ अर्जेंट वर्क था उनका काम कर ही रहा था तब ये वाक्या सुनाये /
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