जब थोड़े में मन खुश था-रोचक तथ्य

जब थोड़े में मन खुश था-रोचक  तथ्य 
 जब थोड़े में मन खुश था
तब जीने का मजा हीं कुछ और था
नहीं थे जब ऐसी कूलर
तब छत पर सोने का मजा कुछ और था
गर्मी की भरी दोपहर में झरती मटकी का
पानी पीने का वो दौर कुछ और था
रात में छत पर रखी सुराही का ठंडा पानी
पीने का मजा हीं कुछ और था
शाम होते हीं छत पर पानी से छत की तपन कम करते
उठी सौंधी खुशबु कैसे भूल सकता है कोई
फिर प्यार से लगाए किसी दूसरे के बिस्तर पर जाकर
जोर से पसरने का मजा ही कुछ और था
बंद हवा में वो पंखी का झलना
आज भी याद है मगर
ठंडी हवा के पहले झोंके से छायी
शीतलता का मजा हीं कुछ और था
चाँद तारों से झिलमिलाते आसमान को
निहारने का आलम आज कहाँ नसीब है
ध्रुव तारे और सप्तऋषि से बाते करने का
तब मजा हीं कुछ और था
बंद कमरो में कब सुबह हो जाती है
अब तो पता हीं नहीं चलता
सूरज की पहली किरण के साथ तब
आँख मिचोली करने का मजा ही कुछ और था
ट्रेडमिल पर खड़े खड़े भले ही कितने हीं
मील क्यों न दौड़ ले आज हम
पर ताज़ी हवा में टहलने का
तब मजा ही कुछ और था
सब कुछ होते हुए भी आज कुछ मजा नही है।

********?
गरीब दूर तक चलता है..... खाना खाने के लिए......।
अमीर मीलों चलता है..... खाना पचाने के लिए......।
किसी के पास खाने के लिए..... एक वक्त की रोटी नहीं है.....
किसी के पास खाने के लिए..... वक्त नहीं है.....।
कोई लाचार है.... इसलिए बीमार है....।
कोई बीमार है.... इसलिए लाचार है....।
कोई अपनों के लिए.... रोटी छोड़ देता है...।
कोई रोटी के लिए..... अपनों को छोड़ देते है....।
ये दुनिया भी कितनी निराळी है। कभी वक्त मिले तो सोचना....
कभी छोटी सी चोट लगने पर रोते थे.... आज दिल टूट जाने पर भी संभल जाते है।
पहले हम दोस्तों के साथ रहते थे... आज दोस्तों की यादों में रहते है...।
पहले लड़ना मनाना रोज का काम था.... आज एक बार लड़ते है, तो रिश्ते खो जाते है।
सच में जिन्दगी ने बहुत कुछ सीखा दिया, जाने कब हमकों इतना बड़ा बना दिया।

जिंदगी बहुत कम है, प्यार से जियो....

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