देख हाल साहित्य का - होती है तकलीफ आलोचक मुँह देखकर - करते हैं तारीफ़

लेख और लेखक 


  1. एक लेखक जो दुनियाँ को बदलने की ताकत रखता है। अगर वह ये सोचें की मुझसे बडा (या मुझसे अच्छा) कोई नही हो सकता या होना चाहिए । तो मुझे लगता है वो खुद  अच्छा हो ही नही सकता न दुनियाँ को बदलने की ताकत रख सकता है।क्यो कि जब हम खुद को बदलेगें तब दूसरों को बदलने की ताकत  रखगें एक लिखने वाला हर रोज एक नया विचार पैदा करता है और दुनियाँ को देता है ताकि सब उन बिचारों को सोचे और बदलने की कोशिश कर सकें। क्यों कि हर चीज में नयापन आने से दुनियाँ बढती है।और न ई खुशियाँ पैदा होती है ।
  2. हर किसी के पास कुछ न कुछ नया करने की छमता होती है लोग नया करते है कोई मशीनों को बनाता, कोई गाडियों को, कोई खिलौंनो को और भी बहुत कुछ हर एक नया काम करने के लिये पहले एक ही इंसान होता है ।हजारो में धीरे धीरे और भी बनते है पैदा होते है वो सोचते है मैं और भी अच्छा और खुला सोचूं जिससे सबको और खुशी मिल सकें  और बडा बना सकें हर किसी के बिचार अलग होते हैं सब अपने तरीके से सोचते है । पर मुझे यह समझ में नही आता कि हजारों करोडों की दुनियाँ में एक आदमी (इंसान) में  इतनी ताकत होती है कि दुनियाँ में  अपनी पहचान बनाता है पर वो एक हर इंसान अपनी पहचान बनाने की छमता रखता है पर जब वो अपनी सोच बदल पायेगा तब अच्छी सोच पैदा कर पायेगा और अपने त्याग और बलिदान से।पर ऐसा नही होता क्योंकि ईष्या  जो बडी है इसमें ।
  3. शायद यही कारण है कि इंसान अपने से आगे निकलते देख दूसरे को जगह नही दे पा रहा हैं और खुद तो खत्म हो ही रहा है दूसरों को भी खत्म कर रहा है ।वो यह क्यो नही सोच पा रहा कि चलो जो मैं  नही कर पाया वो कोई और कर रहा है खुशी होनी चाहिये  उसे कि जो मैं नही बदल पाया वो किसी ने तो बदला जो हम चहाते थे। मगर  लोग न जाने क्यों नही बदलते खुद को इस ईष्या से निकल कर सब कुछ बदल रहा है धीरे धीरे पर जो बदलना चाहिये वो नही बदल रहा है/
  4. जिसके कारण बनते है बहुत सी बजह जिनके नाम अपराध हत्या बालात्कार एसिड अटैक नौकरी से निकलवाना अपहरण इत्यादि
  5. आखिर क्यों इस ईष्या जैसी बीमारी का कोई इलाज नही हो पा रहा है
दुनियाँ की खराबी हालात के कारण केवल ईष्या ।
जो महामारी का रुप ले चुकी है जिसके कारण दुनियाँ अपराधो में घिरी है ।  

**RP**

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