अधूरी ख़्वाहिशें -15 " BIRTHDAY a true story"
उसकी बर्थडे - A true story (21 Sept )
चुपके-चुपके,दबे
हैल्लो !!!!!
मस्ती,आंनद,उत्सह,जोश,जूनून में रहना मेरी पसन्द है...उस दिन भी यूँ ही कुछ गुनगुना रही थी...सुबह से शाम तक कुछ न कुछ गुनगुना रही थी...आखिर क्यों न गुनगुनाऊँ; मेरा जन्मदिन जो था...गुनगुनाते हुए काम करने का मजा ही और होता है...मुझे फर्क नही पड़ता कि स्वर किस प्रकार निकल रहा...सामने वाले झेल रहे या प्रसन्न हो रहे...मुझे तो अपनी ही धुन लगी रहती है...बस क्या था,गुनगुनाते हुए जन्मदिन की तैयारी शुरू कर दी...बड़े-बुजुर्
मम्मा रात को ही राजमा भिंगो दी थी...बहन शाही-पनीर की तैयारी की थी...पापा मेरे लिए गुलाब-जामुन लाये थे...भाई केक आर्डर कर चूका था...सबकी प्यारी जो हूँ...सब कुछ न कुछ मेरे लिए किये थे...वाकई मन खुश होता है न तो सब कुछ अच्छा-अच्छा लगता है...
दूसरा गाना कुछ यूँ गुनगुनाई...
आवारा भौरें जो हौले-हौले गाये...इस तरह अब मैं भी अब घर के प्रत्येक कमरे को सजा दी... (आप जो गिफ्ट दिए थे उसको एक बार सीने से लगाकर बैग में रख दी। आप चालाक के साथ साथ थोड़ा डरपोक भी हो- शाम को पार्टी में कोई शक न करे इसलिए आज सुबह ही गिफ्ट पकड़ा गए ...जो ग्रीटिंग कार्ड दिए थे और उसमे जो लिखे थे
फूलों की सुगंध से सुगन्धित हो जीवन तुम्हारा,
तारों की चमक से सम्मिलित हो जीवन तुम्हारा,
उम्र आपकी हो सूरज जैसी,
याद रखे जिसे हमेशा दुनिया।
तुम पूरा 101 साल जियो। ... हैप्पी बर्थडे ...k !
इसे 4 बार पढ़ी और भगवन से दुआ की मेरी अंतिम साँस भी आपके काम आ सके !
......
तैयार होकर जरा सा पूजा वगेरह की अब थोड़ा शाम को भी पूजा करूँगी ये सोचकर चल दी पड़ोस में...जो भी मेरे प्रिय थे सभी को आने के लिए बोल दी...अधिंकाश तो बच्चा पार्टी ही थे और दो-चार बुजुर्ग लोग जिनको मैं बहुत आदर देती हूँ...बस आपका इंतजार था। ....
शाम को धीरे-धीरे चहल-पहल शुरू...मुझे बड़ा ही मजा आ रहा था...सभी कुछ न कुछ कर रहे थे...कोई गुब्बारे लगा रहा तो कोई मेज सजा रहा था...कोई मोमबत्ती के लिए तर्क किया जा रहा था...कोई प्लेट में केक लाकर सजा रहा था...सब कुछ तैयार हो गया इसी तरह ...मैं भी तैयार हो गयी नये कपड़े पहन के...जुल्फों को फ्रेंच स्टाइल में बनाकर बिट्स से सजा ली...बहुत सुन्दर तो नही परन्तु क्यूट तो लग ही रही थी...सभी आ चुके थे...अब सब कुछ तैयार है...अचानक दिमाग घूम गया...आपका कोई मैसेज ही नही आया अब तक...ना ही कोई कॉल ही...एक काल कर देते तो मन को तसल्ली हो जाती...मन में एक बार ख्याल आया था कि क्यों न खुद ही कॉल कर लूँ पर मन में एक उम्मीद थी शायद आप खुद याद करो...क्या फायदा अब देर करने से...सभी कहने लगे थे चलो अब किसका इंतज़ार है ...
क्या बताऊँ किसका इंतज़ार था...मन की बात मन में ही दबा ली...केक कट गया था...तालियाँ गुजने लगी थी...शुभकामनाएं
घर के सभी सदस्य भोजन कर लिए...मैं भी सबके साथ थोड़ा बहुत खा चुकी थी... एक बार कॉल लगाई थी चुपके से बाथरूम में जाकर पर आपका मोबाइल तो स्वीच ऑफ था तब से
. बस बार-बार नजरे मोबाईल पर टिक जा रही थी...कुछ तो msg दिख जाय...शायद याद न हो और सो गये होगे..आखिर दिन-भर व्यस्त जो रहते हो....दिल कहता कि फोन लगता रहु पर 20 बार से ज्यादा ट्राई कर चुकी थी आपका फ़ोन बंद था .लेकिन दिमाग बार-बार कहता कि नही शायद कुछ हो गया बीमार तो नहीं पड़ गए ...
माना कि आप सहज हो परन्तु स्वाभिमान को नहीं झुका सकते ...हमे बिस्वास है!
अजीब सी उल्झन सामने आ गयी थी...करूँ तो क्या करूँ ...11 बज गये थे और अब मैं बिल्कुल उदास हो गयी थी...लेकिन इस वक्त भी एक उम्मीद बची थी...मन बैचैन होने लगी और रात भी दस्तक दे चुकी थी...चाँद चुपके से आँखों के सामने चमकने लगा...सितारे झिलमिलाने लगे थे...फिर मैं चटाई पे लेट गयी...चाँद को तकते हुए जैसे लगा ...बहुत सारे प्रेमी और प्रेमिकाएं यूँ ही चाँद को देख रहे होंगे...पर आज मैं तुम्हें सितारों में देखूंगी...मेरी नजरे सितारों की तरफ घूम गयी और एक पंक्ति कुछ यूँ मचल गयी...
ज़माने भर की निगाह फलक के चाँद पे है
आज सितारों को जी भर के देखना है"...
सितारों को देखते- देखते आँखे नम होने लगी...बादल मंडराने लगे ...आप सितारों में भी नजर नही आये थे...चाँद और सितारे दोनों को बादल अपने पीछे छुपा लिए...शायद लुका-छिपी खेल रहे हो...बहरहाल मैं बादलों के नीचे दब गयी!!!
आँखे थक गई है शायद असमान को तकते तकते!!
वो तारा नही टूटता जिसे देखकर मैं तुम्हे मांग लू...
उस रात को आँखें मेरी
तो खूब रोयी थी
सुध-बुध भुलाकर मैं
खुद से खुद में खोयी थी।
बस एक पल में आप
वादा तोड़ डाले थे
दिल में यार ए !
तेरे और मेरे बीच में
ये दूरी कैसी थी?
दिल दे कर फिर लेने की
मज़बूरी कैसी थी?
जिस मिट्टी से निर्मित तुम
उसी मिट्टी से निर्मित मैं
फिर भी ए सनम ! मेरे
तुम इतने हो पत्थर क्यों?
तुम इतने हो पत्थर क्यों?
हाथों में मोबाईल लिए न जाने कब पलकें बन्द हो गयी और मैं नींद में पड़ गयी पता ही न चला..सुबह हो गया। .. ख़्वाहिशें अधूरी रह गई.
उठी तो .... कुछ देर बाद पता चला आपके नही आने का कारण
जो मेरी छोटी बहन बताई ...सुन कर बहुत दू ख़ हुआ!!
आपके गीफ्ट को पापा फेक दिए थे खाश करके आपने जो रिंग दिए थे और ग्रीटिंग कार्ड को लेकर काफी नाराज थे घर वाले।
कल दिन में ही 4 बजे ये सब हो चूका था आपको मेरे घर वाले ने डाटा भी था और आपको समझाकर कहा गया की
आप हमसे कभी भी बात नही करेंगे। नही तो बहुत प्रॉब्लम होगा आगे....
अभी मैं फोन लगाई पर आपका सेल ऑफ था शायद आप सिम तोड़ के फेक दिए थे।
मुझे सुनकर काफी दुःख हुआ ये सब मेरी वजह से ही हुआ ! काश! मेरी बर्थडे पे वो गिफ्ट ना दिए होते!
.. कुछ ख़्वाहिशें अधूरी ही बेहतरीन होती है... कहानी बन कर एहसास दिलाती रहती है !!! - राहुल प्रसाद
चलकर देखा है अक्सर, मैंने अपनी चाल से तेज.....
पर वक्त, और तकदीर से आगे, कभी निकल न सका! :Rp
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