_ मौन

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मौन ये वकया एक दोस्त ने बताई।
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मौन रहना अच्छा लगता है मुझे...परन्तु इतना भी नही जब दिल बात करने को चाहे और सामने वाला मौन रहे...आफत सी होने लगती है...कोशिश करने के बावजूद कोई मौन रहे बेहद गुस्सा आता है...अब समझ नही आ रहा था कि तुम अकड़ू हो या तुम्हारा स्वभाव ही चुप रहने वाला है...खैर अब जो भी हो ...झेलना तो है ही...भाग भी नही सकती उठ के...
दोनों लोग आमने-सामने वाली सीट पर बैठे थे...ट्रेन अपनी रफ्तार से संगीतमय ध्वनि के साथ भागती जा रही थी...30 मिनट तक पूर्ण ख़मोशी के बाद महसूस हुआ कि बिना कुछ बोले ही गला सूख गया...बैग से पानी की बॉटल निकाली...ओह्ह इतना कम पानी;इसमें क्या होगा मेरा...2 घूँट में ही पानी समाप्त...मैं इधर-उधर देख रही थी शायद पानी बेचने वाला आ जाय...वो भला क्यों आये...जरूरत पर जल्दी कुछ नही मिलता...


पता न कौन सा जादू काम कियाऔर तुम समझ गये कि मुझे और पानी चाहिए...2 लीटर वाले पेप्सी के बॉटल से तुम मुझे पानी दिए...मरता क्या न करता...मुझे किसी भी तरह पानी चाहिए थी सो मिल गयी...आराम से ऊपर सीट पे पैर मोड़कर बैठ गयी...

बैग से निकालकर महादेवी जी की काव्य संग्रह पढ़ने लगी...साहित्य रस मिल रहा था...मन साहित्यिक होने लगा...फिर बात करने की आकांक्षा बढ़ने लगी...पानी देते वक्त लगा था कि अब तुम सहज हो गये हो...चलो तुमसे कुछ चर्चा करती हूँ...लगे हाथ पूछ ही बैठी --

अच्छा ये बताओ तुम्हे कविता पढ़ना पसन्द है? 2 बार यही प्रश्न की...तुम कुछ नही बोले और मुस्करा के खिड़कियों के तरफ झांकने लगे...गुस्सा तो तेज़ का आ रहा था परन्तु औपचारिकता निभा रही थी मुस्कराने की...जब पहला ही प्रश्न का उत्तर नही दिए तो आगे क्या बोलूँ,मैं भी खामोश हो गयी...
अब तो बिल्कुल मन ऊब गया...2 घण्टे से ऊपर हो गये थे...बनारस पहुँचने में अभी दो घण्टे और थे...इयरफोन निकाली और कुछ गाने सुनने लगी...तुम केवल देख रहे थे टुकुर-टुकुर...

 ये भी नही कह सकती थी मत देखो मुझे, क्या पता कह दो मेरी आँखे चाहे जिधर देखूँ...मेरा तो मुँह ही बन जाता...बात करना तो दूर तुम कुछ पूछे भी नही...यार मैं कौन सा जीवन भर बात करना चाह रही थी...बस वक्त कट जाता आराम से पता भी नही चलता...यात्रा बोझिल न होती...यात्रा करने से जितना न थकी कभी...इस ख़ामोशी के दौरान थक चुकी थी...अब 15 मिनट में वाराणसी केंट पहुचने ही वाली थी...थोड़ा खुश हुई कि भला अब इस पिशाच से पीछा छूटे...तब तलक तुम कुछ कहना चाह रहे थे...मुझे लगा अब बोलोगे...अब कुछ बोल भी दो...फिर मैं बोल पड़ी...आप क्या कहना चाहते है...
तुम इशारे से बताये तुम बहुत अच्छी लगी👌👌 
 मैं मुस्करा पड़ी ...तुम भी तो अच्छे हो...ऐसा लगा तुम सुन ही नही पाये...फिर इशारे से पूछे क्या नाम है तुम्हारा? मैं भी अब इशारे से हँस के बतायी...होठों को छुकर स्माइल का इशारा कर रही थी ...
तुम भी वैसे ही इशारे कर दिए और मुझे लगा तुम समझ गये...शायद मुस्कान समझे होंगे...
लेकिन हद तो तब हो गयी जब तुम इशारे से पेन मांग रहे थे...मैं बोल पड़ी ...क्या तुम मौन व्रत किये हो...बोलो कुछ...फिर भी पेन मांग रहे थे...मैं तपाक से दे दी...तुम अपने हथेली पर लिखे थे ...मैं बोल नही सकता क्योंकि मैं गूँगा हूँ...sorry ...बहुत बोर हुई होगी आप ...और तुम चल पड़े...  

उस समय मैं  हक्क्बक्का रह गई। ........ पर तुमको सॉरी कहना चाही /
दो पल की थी ये दिलों की दास्ताँ और फिर चल दिए तुम कहाँ मैं कहाँ...
बात करने की ख़्वाहिश अधूरी ही रह गई..
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                                             कुछ ख़्वाहिशें अधूरी ही बेहतरीन होती है...

वक़्त, दोस्त और रिश्ते; ये वो चीजें हैं जो हमें मुफ्त मिलती हैं मगर इनकी कीमत का तब पता चलता है, जब ये कहीं खो जाती हैं!

Rahul

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