#अधूरी_ख़्वाहिशें-9 आजाद परिंदे
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#आजाद_परिंदे
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#नीले_आसमान के नीचे पंखों को बेखौफ फैलाकर परिन्दों का उड़ना दिल को अक्सर छू जाता है...इन्हें उड़ता देख मुझे भी उड़ने को मन करने लगता है...देखो न ! इन्हें तो कोई रोक -टोक भी नही...जहाँ मन वहाँ बैठ सकते है...कभी मस्जिद के गुम्बद पे तो कभी मन्दिर के कंगूरे पे...कितने आजाद है ये...शाम को अक्सर छत के छज्जे में इनकी आवाज सुनायी पड़ती तो सुबह में मधुर चहकन...अब इनको सुनना और देखना मेरी फ़ितरत सी बन गया है...
दरअसल बात उन दिनों की है जब मैं छोटा बच्चा था ...हमारे चाची घर एक पिंजड़ा हुआ करता था...पिजंडे में एक तोता रहता था...
मैं उसी तोते को देखने प्रायः पहुंच जाता ..घण्टो उसके साथ खेलता ...एक टक देखता। उसे कुछ दाने खिलाता ... उससे बातें करता ..... वो भी हमसे बाते करता वो भी मेरा नाम लेकर। ....
कभी-कभी उसे उदास देख मैं भी उदास हो जाता ...पिता जी से डाँट खाने के बावजूद मैं सुबह-सुबह देखने पहुंच जाता ..
परन्तु उन दिनों एक बात समझ में नही आती कि इसे क्यों कैद किया गया है और गुलाम बनाया गया है...खैर उन दिनों तो बस मनोरंजन से मतलब होता था... चाहे किसी भी प्रकार से हो...
सर हिंदी की एक पाठ पढ़ाये थे - गुलामी और आजादी।
बार बार मेरे मन में एक ख्याल आता था सभी आजाद होते तो कितना अच्छा होता। .........
सुबह से मन परेशान था; किस प्रकार से तोते को आजाद कर दूँ...बैचैनी सी हो रही थी...पहली बार महसूस हुआ था उस रोज कि बेचारा कितना तकलीफ सहता है यह...इसकी जगह तो आसमाँ में सैर करने और डालीयों पे बैठने की है...कुदरत की शोभा को कैद करना महापाप है ...नदियों के जल को पीने वाले को कटोरी में पानी बिल्कुल नही अच्छा लगता होगा...मन में सोच लीया ...... आज इसे कैसे भी आजाद करूँगा ...
जिस आवाज को सुनकर दिल मचल जाता था आज उसी तोते की आवाज से विरह, तड़प,दर्द और कराहने की आवाज सुनायी पड़ रही थी...मेरी आकुलता बढ़ती जा रही थी...जैसे ही सर की बाते मुझे याद आता मुझे ख़ुशी होती ...
जाकर आंटी से कह ही दिए ...इसे आजाद कर दीजिए ...पहले तो वो हिचके...लेकिन फिर मान गये...अगले रोज आजाद करूगी कह के चले गये...मुझे बहुत प्रसन्नता हुई चलो कम से कम अब ये स्वंतत्र होकर जियेगा...पर वो ऐसा नहीं किए जब की हम 4 बार कह चुके थे। .....
हर बार की तरह आंटीआज भी बदल गये..और कहने लगे इसे मैंने बहुत लगन से पाला है इसको उड़ाने मे मुझे बहुत मोह लग रही है। .
.कहते-कहते थक गये उनसे ..पर एक दिन गुस्सा आया और सर जो पाठ पढ़ाये थे वही कह डाला की
ये परिंदे हमारी अमानत नही है...यह भी किसी का जोड़ा होगा किसी का साथी होगा...किसी का पिता होगा...उन व्याकुल बच्चों,पत्नी,साथी के वास्ते ही सही; आजाद कर दो...
यहाँ तक कि रो पडा ...उनको कोई असर न हुआ...मैं उदास होकर वापिस घर आ गया ...न जाने कब सो गया ...अगले दिन ही आंटी बता गयी...उसी रात तोता मर गया...ओह्ह्ह्...काश! इसे हम आजाद कर दिए होते...
परन्तु ये ख़्वाहिश भी अधूरी रह गयी...
कुछ ख़्वाहिशें अधूरी ही बेहतरीन होती है...अब ये ख़्वाहिश अधूरी होकर भी इसलिए बेहतरीन है ; अगर ये अधूरी न होती तो ये कहानी न होती...अगर ये कहानी न होती तो बहुत से लोग परिन्दों को कैद किये होंगे वो सबक नही ले सकते...कृपया कम से कम जो इसे पढ़े वो परिन्दों को कभी कैद न करें।
मैं आज चली ; तुझे कल जाना है
जानते तो सभी है ; इस बात को
इससे अधिक और क्या बताना है.
-किसी के गुलाम न बने और ना ही बनाये -
राहुल प्रसाद
यह मौलिक कहानी आपको कैसी लगी, यह हमें जरुर बताएँ.
आपके सलाहों और सुझावों का हमें इंतजार रहेगा.
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