प्रेरणादयक कहानी - जानवर सब में है & आदमी और बोल
1 जानवर सब में है
#सब्जी खाते हैं ना ? नमक धनिया हल्दी मसाले और इन सब के बाद मिर्च भी डाली जाती है । ज़रा सोचिए मिर्च की जगह सब्जी में चीनी डाल दें तो कैसा लगेगा और अगर मिर्ची ही ज़रूरत से ज़्यादा डाल दें तो क्या आप उसे चाव से खा पाऐंगे क्या सब्जी जो वास्तव में होती है वैसी हो पाएगी ? बिल्कुल भी नही तो मिर्च का होना बहुत ज़रूरी है क्योंकी नमक मिर्च ही सब्जी को सब्जी बनाते हैं बस ध्यान रहे।की ये सही मात्रा में हो ।
सब्जी में जैसे मिर्च है वैसे ही हर इंसान के अन्दर भी एक जानवार है वो जानवर ही इंसान को इंसान बनाता है अगर जानवर ना हो तो वो इंसान नही देवता या गंधर्व बन जाएगा जिनका धरती पर कोई वजूद सामने से नही दिखता ना हमने उन्हे कभी देखा है । हाँ पर एक इंसान को असल इंसान ये बात बनाती है की वो अपने अन्दर के जानवर को किस हद तक दबा पाता है । किस हद तक उस जानवर को शाँन्त रख पाता है ।
बुराई हम सब में है चाहे वो काम की हो लोभ की हो या मोह की हो । ये आपको भी पता है की आपमें भी एक हैवान मौजूद है । मगर यदि आप अच्छाई को बढ़ावा दे रहे हो तो आप उस हैवान को खुद पर हावी नही होने दोगे । खुद से ज़्यादा खुद को किसने जाना है । आपमें कई ऐसी कमियाँ हैं जो कई बार आपको शर्मिंदा कर देती हैं खुद की ही नज़रों में क्योंकी उन कमियों को उन बुराईयों को आपके सिवा किसी ने नही देखा क्योंकी आपने हमेशा उन्हे दबा कर रखा तो मेरे दोस्त आपको अपनी बुराई पर शर्मिंदा होने की ज़रूरत नही क्योंकी ये सब में मौजूद है । आपको तो ये सोच कर खुद पर गर्व होना चाहिए की आप अपने अन्दर के जानवर पर काबू करने में कामयाब रहे ।
एक संत भी संत तब ही बन पाता है जब वो खुद के अन्दर के हैवान को अपने वश में कर लेता है । और दूसरी तरफ अगर उस हैवान का वजूद आपमें ज़रा सा भी नही होगा तब तक आप इस जीवन की मुश्किलों का सामना नही कर सकते । बुरे तो हम सब हैं पर बात ये मायने रखती है हमने अपनी बुराई पर किस हद तक जीत पाई ।
प्रेरणादयक कहानी - आदमी और बोल
#सब्जी खाते हैं ना ? नमक धनिया हल्दी मसाले और इन सब के बाद मिर्च भी डाली जाती है । ज़रा सोचिए मिर्च की जगह सब्जी में चीनी डाल दें तो कैसा लगेगा और अगर मिर्ची ही ज़रूरत से ज़्यादा डाल दें तो क्या आप उसे चाव से खा पाऐंगे क्या सब्जी जो वास्तव में होती है वैसी हो पाएगी ? बिल्कुल भी नही तो मिर्च का होना बहुत ज़रूरी है क्योंकी नमक मिर्च ही सब्जी को सब्जी बनाते हैं बस ध्यान रहे।की ये सही मात्रा में हो ।
सब्जी में जैसे मिर्च है वैसे ही हर इंसान के अन्दर भी एक जानवार है वो जानवर ही इंसान को इंसान बनाता है अगर जानवर ना हो तो वो इंसान नही देवता या गंधर्व बन जाएगा जिनका धरती पर कोई वजूद सामने से नही दिखता ना हमने उन्हे कभी देखा है । हाँ पर एक इंसान को असल इंसान ये बात बनाती है की वो अपने अन्दर के जानवर को किस हद तक दबा पाता है । किस हद तक उस जानवर को शाँन्त रख पाता है ।
बुराई हम सब में है चाहे वो काम की हो लोभ की हो या मोह की हो । ये आपको भी पता है की आपमें भी एक हैवान मौजूद है । मगर यदि आप अच्छाई को बढ़ावा दे रहे हो तो आप उस हैवान को खुद पर हावी नही होने दोगे । खुद से ज़्यादा खुद को किसने जाना है । आपमें कई ऐसी कमियाँ हैं जो कई बार आपको शर्मिंदा कर देती हैं खुद की ही नज़रों में क्योंकी उन कमियों को उन बुराईयों को आपके सिवा किसी ने नही देखा क्योंकी आपने हमेशा उन्हे दबा कर रखा तो मेरे दोस्त आपको अपनी बुराई पर शर्मिंदा होने की ज़रूरत नही क्योंकी ये सब में मौजूद है । आपको तो ये सोच कर खुद पर गर्व होना चाहिए की आप अपने अन्दर के जानवर पर काबू करने में कामयाब रहे ।
एक संत भी संत तब ही बन पाता है जब वो खुद के अन्दर के हैवान को अपने वश में कर लेता है । और दूसरी तरफ अगर उस हैवान का वजूद आपमें ज़रा सा भी नही होगा तब तक आप इस जीवन की मुश्किलों का सामना नही कर सकते । बुरे तो हम सब हैं पर बात ये मायने रखती है हमने अपनी बुराई पर किस हद तक जीत पाई ।
प्रेरणादयक कहानी - आदमी और बोल
एक व्यक्ति की एक दिन अपने पड़ोसी से खूब जमकर लड़ाई हुई.
मारपीट तो नहीं हुई लेकिन शब्दों से अपमान करने में उसने कोई कसर न बाकी
रखी. होता है न जैसे अपने यहां गालियां देने पर आ जाते हैं तो रिश्ते-नाते
की कोई परवाह नहीं करते. मां-बहन किसी को नहीं बख्शते. वैसा ही उसने किया।
जब
उसका मन कुछ शांत हुआ और उसे लोगों ने समझाया कि तुमने नाहक एक भले मानुष
को इतनी गालियां दीं वह भी उस अपराध के लिए जो उसने किया ही नहीं है. शांत
मन से उसने पड़ताल की तो लोगों की बात सही निकली. उसे अपनी गलती का आभास
हुआ और ख़ुद पर शर्म आई।
वह इतना शर्मिंदा था कि घर से निकल नहीं पा रहा था, पड़ोसियों से नजर तक मिलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी. उसका मन बेचैन था।
वह एक दार्शनिक के पास पहुंचा और सारी बात बताकर कहा- ‘‘मैं अपनी गलती का प्रायश्चित करना चाहता हूँ, उपाय बताओ.’’
विद्वान
दार्शनिक ने उसे पक्षियों के पंखों से भरा एक थैला दिया और कहा- इसे
व्यस्त सड़क के बीच में ट्रैफिक पुलिस के लिए बने प्लेटफॉर्म पर खड़े होकर
हवा में उड़ाकर आओ फिर बताता हूं।
बड़ा सरल काम था वह आनन-फानन में गया और पल में सारे पंख उडाकर वापस आ गया और बोला- अब मेरा काम कर दो, उपाय तो बताओ।
दार्शनिक
ने कहा-मित्र वास्तव में मेरे से एक बहुत बड़ी भूल हो गई है. पंखों का जो
थैला मैंने तुम्हें दिया था दरअसल वे मेरे दादाजी के द्वारा जमा किए गए
दिव्य पक्षियों के पंख थे. एक काम कर दो तुम वे सारे अनमोल पंख फटाफट
बटोरकर वापस लेकर आओ, मैं तब तक तुम्हारी परेशानी का हल एक कागज पर लिख
देता हूं।
यह सुनते ही वह
व्यक्ति बिफर गया. क्रोध में बोला- मैंने तो तुम्हें ज्ञानी समझा था पर तुम
हो बड़े मूर्ख. व्यस्त सड़क के चौराहे पर मैंने हवा में पंख उड़ा दिए और
अब कहते हो कि उन्हें बटोर लाऊं. तुम्हें अक्ल है या नहीं. हवा में उड़ते
पंख कभी वापस आ सकते हैं।
दार्शनिक
उसके कठोर वचन सुनने पर भी विचलित न हुआ. उसने कहा- मानता हूं कि यह काम
थोड़ा कठिन है पर मेरे दादाजी के द्वारा जमा किए गए वे पंख अनमोल हैं.
अनमोल चीज को फिर वापस पाने के लिए कठिन काम करने में क्या परेशानी है? जाओ
बीनकर लाओ मेरे सारे पंख।
वह
व्यक्ति तो अब जैसे आपे से बाहर हो गया. क्रोध में लगभग चीखता हुआ बोला-
वह काम कठिन नहीं असंभव है. चाहे कितने भी अऩमोल रहे हों वे पंख, अव्वल तो
वे मिल ही नहीं सकते, मिल भी गए तो मिट्टी-कीचड़ में ऐसे सने होंगे कि अब
उन्हें कोई न पूछेगा. उनकी चमक खत्म हो गई होगी और मोल भी।
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उतना ही बोले
जुबान से ,
जितना फिर सुन सको
कान से
शब्दों को नाप
तौल कर बोलें, जिनसे आपकी सज्जनता टपके. वे शब्द आपकी बुद्धि को परिभाषित
करते हैं और आपकी बुद्धि आपके व्यक्तित्व का दर्पण है. व्यक्तित्व के दर्पण
में क्या आप कुरूप दिखना पसंद करेंगे. सोचिएगा जरा।
बस इतना भर तय कर लीजिए की जीवन में कब किस बात को हाँ कहना है और कब किस बात को ना.
इस
दर्पण को यदि हम हमेशा अपने साथ रखें तो जीवनभर सुंदर और आकर्षक बने
रहेंगे. उम्र हम पर कभी हावी होगी ही नहीं क्योंकि हर उम्र के लोग आपकी
निकटता चाहेंगे, ऐसे लोग ही तो उम्र को जीत लेते हैं जिससे
बच्चे-युवा-बुजुर्ग सब दोस्ती करना चाहें. बेशक यह आसान नहीं है पर
नामुमकिन भी नहीं है./ --rp
कहाँ पर बोलना है और
कहाँ पर बोल जाते हैं,
जहाँ खामोश रहना है
वहाँ मुँह खोल जाते हैं..
कटा जब शीश सैनिक का
तो हम खामोश रहते हैं,
कटा एक सीन पिक्चर का तो
सारे बोल जाते हैं..
ये कुर्सी मुल्क खा जाए तो
कोई कुछ नहीं कहता,
मगर रोटी की चोरी हो तो
सारे बोल जाते हैं..
नयी नस्लों के ये बच्चे
जमाने भर की सुनते हैं,
मगर माँ बाप कुछ बोले तो
बच्चे बोल जाते हैं..
फसल बर्बाद होती है तो
कोई कुछ नहीं कहता,
किसी की भैंस चोरी हो तो
सारे बोल जाते हैं..
बहुत ऊँची दुकानो में
कटाते जेब, सब अपनी..
मगर मजदूर माँगेगा तो
सिक्के बोल जाते हैं..
गरीबों के घरों की बेटियाँ
अब तक कुँवारी हैं,
कि रिश्ता कैसे होगा जब
गहने बोल जाते हैं..
अगर मखमल करे गलती तो
कोई कुछ नहीं कहता,
फटी चादर की गलती हो तो
सारे बोल जाते हैं..
हवाओं की तबाही को
सभी चुपचाप सहते हैं,
च़रागों से हुई गलती तो
सारे बोल जाते हैं..
बनाते फिरते हैं रिश्ते
जमाने भर से हम अक्सर,
मगर घर में जरूरत हो तो
रिश्ते बोल जाते हैं.... .............
कहाँ पर बोलना है और
कहाँ पर बोल जाते हैं,
जहाँ खामोश रहना है
वहाँ मुँह खोल जाते हैं..
कटा जब शीश सैनिक का
तो हम खामोश रहते हैं,
कटा एक सीन पिक्चर का तो
सारे बोल जाते हैं..
ये कुर्सी मुल्क खा जाए तो
कोई कुछ नहीं कहता,
मगर रोटी की चोरी हो तो
सारे बोल जाते हैं..
नयी नस्लों के ये बच्चे
जमाने भर की सुनते हैं,
मगर माँ बाप कुछ बोले तो
बच्चे बोल जाते हैं..
फसल बर्बाद होती है तो
कोई कुछ नहीं कहता,
किसी की भैंस चोरी हो तो
सारे बोल जाते हैं..
बहुत ऊँची दुकानो में
कटाते जेब, सब अपनी..
मगर मजदूर माँगेगा तो
सिक्के बोल जाते हैं..
गरीबों के घरों की बेटियाँ
अब तक कुँवारी हैं,
कि रिश्ता कैसे होगा जब
गहने बोल जाते हैं..
अगर मखमल करे गलती तो
कोई कुछ नहीं कहता,
फटी चादर की गलती हो तो
सारे बोल जाते हैं..
हवाओं की तबाही को
सभी चुपचाप सहते हैं,
च़रागों से हुई गलती तो
सारे बोल जाते हैं..
बनाते फिरते हैं रिश्ते
जमाने भर से हम अक्सर,
मगर घर में जरूरत हो तो
रिश्ते बोल जाते हैं.... .............
बोल कराए दुश्मनी, बोल कराए मेल।
सब बोलों की बात, सब बोलों का खेल।।
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