अधूरी ख्वाइशे -11 नीम की पत्तियां Short Moral Story
नीम की पत्तियां
संसाधनों का सदुपयोग करने की सीख देती मेरी
छात्र जीवन की कहानी
जब हम 5 वी कक्षा में थे तो एक दिन हमारे गणित के
टीचर को कुछ बीमारी के इलाज के
लिए नीम
की पत्तियों जरूरत थीहमेशा की तरह गणित के प्रश्न हल करके हम और हमारा लंबू दोस्त दोनों बैठे हुए थे और बाकी लोग प्रश्न का हल कर रहे थे। इसलिए उन्होंने हमे और लम्बू दोस्त को बोले की तुमलोग पेड़ चढ़ते हो मेरा लम्बू दोस्त इसमें तो उसको महारथ हासिल था इसलिए उसने अपना हाथ उठा दिए पर मेरा भी हाथ उठ गया था क्यूकी मेरा भी मन मचल रहा था किस तरह से बाहर भागू खेलने क लिए ।
टीचर ने कहा – मुझे नीम के कुछ पत्तियों
की जरूरत है।तुमलोग जाओ और बाहर लगे पेड़ से कुछ पत्तियां मुझे ला दो । हमलोग नीम लाने के
लिए
गए।
मन ही मन वह बहुत खुश था कि सर जी ने खुद हमे कोई आसान काम
सौंपा था। हमलोग कुछ देर तक कन्चे (अंटोली) खेले फिर
निम के पेड़ के पास जल्दी ही गया और कुछ
सेकंडो
में
लम्बू दोस्त ने बन्दर की तरह छलांग लगाकर हाथ से नीम की बड़ी
टहनी लेकर आ गया। हमलोगो ने ख़ुशी-ख़ुशी सर को नीम की टहनी देते
हुए कहा, मैं नीम ले आया हूँ। आप जितनी चाहें पत्तियों का इस्तेमाल इसमें से कर
सकते हैं । मेरा हाथ में नीम की पत्तियों से लदी उस टहनी को देखकर सर परेशान हो गए।
उन्होंने हमलोगो से कहा –अब मैं इसका इस्तेमाल नहीं कर पाऊंगा। हमलोगो को सर की
बात बिलकुल समझ नहीं आई ।( हमलोग डर गए और लगा की आज फिर पिटाई होगी
शायद किसी ने कन्चे खेलने के बारे में सर को बता दिया क्या?)
डर से सर को मैंने अपने आप ही बता दिया की सर मुझे पेड़ चढ़ने नहीं आता था और कंचे खेलने का आईडिया
मेरा था इसलिए जो भी दंड देना है मुझे दीजिए और इसमें लम्बू का कोई दोस नहीं है उसी ने तो ये तोड़कर लाया है --ये बात सुनकर वो
थोड़ा मुस्काये और बोले की कल तुमको दंड देंगे।
पर वो दुखी थे ........
लम्बू दोस्त ने उनसे उनके दुखी होने की वजह पूछी। तब सर बोले- मैंने तुमसे 15 -20 पत्तियां मंगवाई थीं। तुम पूरी टहनी ले आये हो।
मैं इसमें से कुछ पत्तियां ले लूँगा लेकिन बाकी पत्तियां व्यर्थ जायेंगी।
तब लम्बू बोला- मैं तो इसलिए ज्यादा ले आया की
आपको जितनी चाहिए आप उतनी पत्तियां ले सकें। बाकी फेंक दी जाएँगी, इसमें क्या है?
तब सर ने कहा- बेटा! यह कीमती संसाधनों की
बर्बादी होगी। ये अनजाने में एक छोटे पेड़ कि हत्या जैसा है। मुझे तुम्हारा यह काम
अच्छा नहीं लगा। संसाधनों का सदुपयोग करना हम सबको सीखना होगा क्योंकि यह हमारी
नहीं प्रकृति की देन हैं ...
प्राकृति की कीमत बहुत,रखो सदा ही ध्यान।
यह जीवन का मूल है , भूलो मत इंसान
।।
हमलोगो को बात समझ आ गयी और अपने किये पर खुद को लज्जित
महसूस करने लगा । उसी समय दिमाग में
जगदीशचंद्र बासु की कहानी याद आ गयी और दिमाग में चलने लगा की पेड़ पोधो के भी जान
होते है हमारी तरह साँस लेते है बढ़ते है रात में इनकी पतिया तोड़ने से इनको भी दर्द होता है।
और उसी समय से हमारे अंदर पेड़ पोधो से लगाव भी आया और तब से मेरा रूचि
प्लांटेशन ही हो गया। ..... उस समय से अभी तक
हमने लगभग 60 फलदार पेड़,फूल लगाए और दुसरो के खेतो में भी लगाएं और जब
भी मुझे मौका मिलता है पेड़ लगाता ही हु। वैसे लम्बू दोस्त भी फलदार पेड़ लगाया है लेकिन
जबसे आर्मी ज्वाइन किया तबसे थोडा कम कर दिया। वैसे गाव के कुछ जागरूक दोस्त भी
पेड़ पौधे तेजी से लगा रहे है मुझे खुशी है कि मित्र जितेन्द्र ने 500 से अधिक पेड़
लगा चूका है और उसे देखकर गाव के और भी लोग पेड़ लगा रहे है।
और मैं शहर आ गया हु जॉब के लिए लेकिंन उनके
जज्बे को देखकर आने वाले दिनों में उनके जैसे ही पेड़ लगाने की चाहत है ये भी ख्वाइशे
..... फिर से अधूरी रह गई है
खैर
कुछ ख़्वाहिशें अधूरी ही बेहतरीन होती है - क्युकी
उसे पूरा करना एक जिम्मेदार नागरिक बनने का मौका देती है
बड़ी ख़ुशी है की जींवन में ऐसे सर और दोस्त मिले--आज लम्बू
दोस्त आर्मी में है और
लद्दाख जैसे पहाड़ो पर चढ़ कर
देश को सेवा कर रहा है और सर की अच्छी सोच ने हमारे जैसे कई लोगो को प्रकृति से
जुड़ने में प्रेरणा मिली।
दोनों के जज्बे को दिल से सलाम!
जिस दिन मरोगे
अपने साथ एक पेड़ भी
लेकर जलोगे
प्रकृति का जो कर्ज है
वो तो चुका दो यारों...
जीते जी दो पेड़ तो
लगा दो यारों...!!
राहुल प्रसाद
दोस्तों, इस छोटी-सी घटना से में हमें एक बहुत बड़ी सीख मिलती है, हमें संसाधनों का सही उपयोग करना चाहिए । चाहे वह पानी हो, खाना हो या फिर पेट्रोल।हम पैसे देकर भले ही इन्हें खरीदते हैं लेकिन हमें इनका दुरपयोग करने का कोई अधिकार नहीं है, क्युकी ज्यादा दुरूपयोग से ही ज्यादा वस्तु (गाड़ी AC मशीने इत्यादि)की जरूरत पड़ रही है इसके वजह से ज्यादा कारखाना फक्ट्री लगाने के लिए जंगलो को तेजी से काटा जा रहा है। (इसका एक और मुख्य कारन-जनसख्या भी है जिसके वजह से जयादा घर वस्तु और भोजन की जरूरत पड़ रही है इसलिए जनसँख्या नियंत्रण भी बहुत जरूरीहै)जैसे-जैसे प्रकृति को नुकसान पहुँचता जायेगा, मनुष्य की स्वास्थ्य सम्बन्धित समस्याएँ भी बढ़ती जाएँगी
प्लेट में खाना छोड़कर
हम यह सिद्ध करते हैं की हम कितने लापरवाह हैं,.
यूहीं नही रोटियाँ
आ जाती है,
प्लेटों तक,
कोई कड़ी धूप में भी गेहूँ
काट रहा होता है खेतों
में......!!
इसलिए इतना ही लो थाली में शेष ना
जाये नाली में।
अगर वृक्षों का लगातार कटाव तथा प्रकृति से
प्राप्त साधनों का लगातार धोहन करोगे तो उसके दुष्परिणाम उतने खतरनाक होंगे।
जिस दिन पृथ्वी में
पर्यावरण नहीं होगा, उस दिन पृथ्वी में
जीवन भी नहीं होगा।
(प्रदूषण ग्रीन हॉउस
इफ़ेक्ट,ओजोन हास् , ग्लोबल वार्मिंग, बाढ़,
सूखाग्रस्त
,यहाँ तक की दिल्ली
मुंबई जैसे सिटी
में
साँस लेना भी मुश्किल हो गया है)
भी हमारे को ही प्राप्त होगे अभी से बिजली पानी
पेट्रोल कोयला गैस को बचाने का प्रयास करे।
हमें जितनी जरूरत हो उतना ही संसाधनों का उपयोग
करना चाहिए क्योंकि आने वाली हमारी बुढ़ापा और पीढ़ियों के लिए यह हमारा सबसे बड़ा तौफा
होगा ।
सटीक पंक्तिया आज के प्रदूषण के परिस्थिति पर
क्या पड़ गया रे आँख में?
जलती रहती आँख निकलते रहते आँसू
आग-पानी साथ-साथ का कितना सुंदर बिंब
कुछ पड़ गया है आँख में।
कुछ तो भी उड़ता ही रहता हवा में,
राख या रेत क्या मालूम
मलते-मलते लाल हो जाती किरकिराती आँख -
डरता नहीं फिर भी एक हाथी भी -
आँख में कुछ पड़ गया है रे!
कुछ तो बढ़ा है इन दिनों हवा में
धुआँ या धूल या क्या पता कोई रसायन
कौन मिलाता रहता है रे ये सब?
जलती रहती आँख
निकलते जाते आँसू
मलते रहते आँख
देता भी नहीं कुछ साफ दिखाई
राह चलते पड़ जाता कुछ अक्सर आँख में।
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