#बैंकिंग_किस्से -6 सही काम!


सही काम ! --जीवन में पहली बार ऐसा संवाद देखा था।।
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 बड़ी ब्रांच थी  - नये नये मनेजर(बर्मा सर ) आये थे।


 शाम को ही स्टाफ मीटिंग हुई,  सब परिचित हुए।
हमारे लिए बहुत अच्छी बात है  कि हमे सरकारी जॉब मिली है ..सरकारी जॉब मतलब समाज सेवा ....इसलिए निष्ठा से काम करे। 
 सर अपने बारे में बताते हुए बोले -मुझे  अनुशाशन बेहद पसंद है और मैं लापरवाही बिलकुल बरदास्त नहीं करता।हम सब मिलकर काम करेंगे कस्टमर को कम्प्लेन करने का कोई मौका नहीं देंगे .(कुछ स्टाफ हस रहे थे और आपस में बात कर रहे थें ऐसे ऐसे कितने आये और गये!)
मेनेजर - हम सब बैंक का सिस्टम फॉलो करते हुए अनुसाशन में काम करेंगे 
 टाइम पर ऑफिस आएंगे, सब अपने काम के प्रति जबाबदेह रहेंगे, कुछ वस्तुए नहीं थी ब्रांच में 
सुनते ही आर्डर दे दिए कस्टमर के लिए कुर्सी और पिने की पानी की ब्वस्था ठीक करने को बोले 
.....  वगैरह  वगैरह..

ब्रांच में अनुशाशन होने की वजह से ग्राहक खुश थे और मैनेजर भी सबका डेली रिपोर्टिंग लेते थे कौन कितना काम किया दिन भर में। इससे मुझे  ज्यादा ख़ुशी हुई मेरे ऊपर ज्यादा वर्कलोड था चुकी कोई काम देता था तो मुझसे ना नहीं बोल पाता था और वही काम रूटिंग में हो जाता था। डेली रिपोर्टिंग की वजह से सब को सामान काम मिले थे जिससे ग्राहक का तेजी से काम हो जाता था 

कुछ स्टाफ हमेशा  की तरह लेट आने लगे .. और कुछ गपसप करते थे और काम में भी लापरवाही करते रहे.... 
मैनेजर वार्निग दिए ,कुछ तो समझदार  थे   मगर 2 -स्टाफ ( ये चापलूस इंसान थे इनकी पहुंच एडमिन ऑफिस तक था  ) लेट  आते रहे 
एक्शन होने लगा....... 
वे दोनों एक दिन हंगामा करने लगे --- (उस दिन मैनेजर मीटिंग में गए थे ) 
सर (अकाउंटेंट),बर्मा जी के साथ काम नहीं करना है !'
'ये सरकारी आफिस है . आप अपना बॉस नहीं चुन सकते. 
सरकार आपको चुनती है ....  वैसे हुआ क्या है ?'

'सर ! 20  मिनिट लेट हो गया था  मेरा एबसेंट लगा दिया  . ये मेरा तीसरा क्रास है . मेरी तो आधी छुट्टी चली गयी न ...मुफ्त मे!(ऐसा नहीं चलेगा )

... एक ने कहा मेरे 2  छोटे छोटे बच्चे हैं उनको स्कूल छोड़कर ही आता हूँ. तो थोड़ी देर हो जाती है।
 दूसरे ने कहा मेरा वाइफ दूसरे शहर में जॉब करती है खुद से कुकिंग करना पड़ता है इसलिए आफिस आते आते ...थोडा समय लग जाता है.'

अकाउंटेंट ----
  यहाँ हर आदमी अपना घर परिवार और काम छोड़कर आता है अपना काम करवाने ...हम उसे तनख्वाह नहीं देते !....
एक मजदूर हम काम पर रखते हैं तो उस पर सारे दिन निगाह रखते हैं कि कितनी बार उसने चाय पी....कितनी देर खाना खाया ...कितनी देर बीडी पी या तम्बाकू खाया . 

क्या कभी शीशे के सामने खड़े होकर सोचा है कि हमें जो तनख्वाह का पैसा मिलता है उसके बदले हम कितना काम करते हैं .'


'सर ! हम पढ़े लिखे हैं ...मजदूर नहीं हैं ! आप बर्मा जी की तरफदारी न करे। ...

'हम जनता के मजदूर हैं , उनकी पाई-पाई से हमें ये मोटी तनख्वाह मिलती है .


सॉरी ...मैं वर्मा जी को कुछ नहीं कह सकता . वर्मा जी ने अपना काम सही किया है .....

शर्म से चेहरा झुक गया था उनके!

यहाँ मज़बूत से मज़बूत लोहा टूट जाता है..
कई झूठे इकट्ठे हों तो सच्चा टूट जाता है..

ऐसा अक्सर देखे थे 
पर पहली बार oppisite होते देखा था।
  **Rahul prasad**



करप्सन हटाना मुश्किल नहीं है कुछ दुनिया में
तू जरा हिम्मत तो कर
देश बदलेगें हकीकत में.. तू ज़रा कोशिश तो कर

Govt job is a platform where you work completely for uplifting the society.
Be honest and serve the nation....

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