अधूरी ख़्वाहिशें- 23 आज अजनबी लगे love story

अधूरी ख़्वाहिशें- 4   दोस्त की डायरी से
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आज अजनबी लगे 


बैठे-बैठे डायरी लिखना पसन्द है मुझे...उस रोज डायरी लिख रही थी...डायरी क्या अपने सपनो को पंक्तियों में पिरो रही थी...कुछ इस कदर से ... ख्वाबों की मल्लिका हूँ मैं...रोज बड़े-बड़े सपने देखती हूँ...मेरा सपना कुछ ऐसा है...कभी फोर व्हीलर से लांग ड्राइव पे जाती...साइकिल से शाम को खेतों की पगडंडियों से होकर टहलती...स्कूटीे पर खुले बाल कर,नीला सूट पहन के ,गॉगल्स लगा के, नैनों को जरा तिरछा घुमाती और गर्दन मोड़ कर आँसमा के तरफ देखती...धान की लहलहाती फसलों पे सोती ...तितलियों के साथ वक्त गुजारती...गन्ने को एक ही बार दाँत से दबा के तोड़ लेती...सरकारी टीचर बनती...गरीबों की मदद करती....यही लिखते हुए तुम मेरी डायरी पढ़ लिए थे...
 
उस वक्त मैं दसवीं में थी...तुम मेरे प्रिय दोस्त थे...पढ़ने में मेरी तरह ही तेज...लिखावट हम दोनों के मोतियों की तरह गोल मटोल सुन्दर चमचमाते हुए ...तुम्हारे नाम का भी पहला अक्षर S से शुरू होता ...S नाम वालों से जरा करीबी का रिश्ता होने लगता है ...कितना मेलजोल हुआ करता था...सिर्फ एक अंतर था... तुम चुप रहा करते और मैं बोलने में माहिर...कोई दिक्कत नही था आपस में...तुम एक ही कपड़े पहन के आया करते...कभी -कभी मैं सोचती तुम किस तरह मैनेज करते होगे यह सब...वो टिफिन में बासी लिट्टी लाना और कोने में चुराकर खाना...फिर भी मैं टपक जाती लपक के खाने के लिए...कोई भेद-भाव नही...इसी तरह चार साल चार दिन की तरह गुजर गये...उसके बाद तुम अपने गाँव चले गये...मैं अपने गाँव में ही पढ़ती रही...चलते हुए एक दुआ की थी मैं...तुम एक दिन बड़े आदमी बनोगे...

 
आज विद्यालय में एक बड़ी सी सफेद गाड़ी रुकी...सारे बच्चों का ध्यान उसी तरफ...मैं भी जरा खिड़की से देख ही ली कि अचानक इन बच्चों का ध्यान किस पर है...एक स्मार्ट,गोरा- चिट्टा नौजवान व्यक्ति, स्टाइलिश हेयर कटिंग,फेंसी ड्रेस ...मोबाईल पर बात करते हुए ऑफिस के तरफ बढ़ता गया...खैर मैं बच्चों को आवाज लगाते हुए सामने देखने को बोली...यही कोई पांच मिनट बाद चपराशी आता है....S मिस ! 

आपसे कोई मिलने आया है...मुझे अजीब लगा...मुझसे मिलने भला कौन आ सकता? वो भी विद्यालय में...चलो देखती हूँ आखिर कौन है?
मैं ज्यों ही आफिस में कदम रखी तुम तपाक से बोले...हाऊ आर यू???मैं आवाक सी हो गयी... चेहरा तो  जाना पहचाना ,मैं बोली आप....आप कौन है?...मैं कौन? नही जानती हो तुम.. मुस्कुराते हुए अरे ..... मैं SK  इनकम टैक्स इंस्पेक्टर ...
तो आप बड़े साहब हो गये है न कैसे पहचानूँ मैं.. .अरे नही बैठो तो....तुम चार बात हिंदी में तो 14 बात अंग्रेजी में बोल रहे थे...बदले हुए अंदाज़ थे...बात करते हुए तुम मेरी डायरी में लिखे सपनों की चर्चा करने लगे...आज लगने लगा तुम पूछ कम रहे दुखों को कुरेद अधिक रहे...मैं पढ़ाने का बहाना बनाते हुए बात को जल्दी ही समाप्त कर दी...काफी कुछ बदल चुका था तुम्हारे अंदर...तुम दोस्त कम आज अजनबी अधिक लगे...तुम यह कहते हुए चल दिए...तुम्हारे सपनें बदल गये परन्तु तुम आज भी वही स्मिता...क्या बताऊँ मेरे सपने नही बदले...हाँ किस्मत जरूर बदल गयी है मेरी...और कुछ ख़्वाहिशें अभी अधूरी रह गयी हैं...


मुझे लगता हैं..कुछ ख़्वाहिशें अधूरी ही बेहतरीन होती हैं...

 एक महिला  शिक्षक  दोस्त की डायरी  से - बहुत खूबसूरत टिचर  की अधूरी ख्वाइशे /

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