वो क्या है ? नोक झोंक भरी वार्तालाप.

 हम पशु न रहे
न मानव हीं रहे
जब से हम भी
बिकने लगे
आत्मबंधन के नाम पर
प्राण प्रतिष्ठा जैसे लूटते हैं
नौकरी के दाँव पर.


वो क्या है ?    
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 जॉब वाले पति -पत्नी  की नोक झोंक भरी वार्तालाप !!!

  सुधीर ने मुंबई से आते ही अपना बैग एक तरफ फेंका . घर में कोई नहीं था . बच्चे स्कूल गए थे और बीबी भी .किसी को घर में न पाकर ख़ुद से ही बडबडाते हुए जैसे पूछ रहा था . पागलों की तरह दिन रात काम करता हूँ . घर से दूर रहता हूँ ...आखिर किस के लिए ?.....चार दिन के लिए आया हूँ ...महारानी घर में नहीं रह सकती थी ....समाज का भला करना है टीचर फटीचर ...घरवाले की कोई चिंता नहीं ..

बैग खोला कपडे बाहर फेंके और चल पड़ा बाथरूम की ओर . बाथरूम के शीशे पर बिंदी लगी थी अपर्णा की ...देखते ही जैसे मन कुछ खुश हुआ . नहाकर फ्रिज से दूध निकला और शर्बत मिलकर पीने लगा . टी.वी. ऑन किया और फिर सोफे पर लेट गया . थका हुआ होने से कब आँख लगी पता ही नहीं चला .
दरवाजे पर दस्तक से आँख खुली तो उसके बच्चे थे जो स्कूल से लौटे थे . बच्चों को देख उसके चेहरे पर मुस्कान तैर गयी . दरवाजा खोलकर उन्हें गले से लगाया और उनके बसते एक ओर रख दिए . बच्चों में वह राम गया . समय का अंदाजा ही नहीं रहा . करीब तीन बजे पसीने से तरबतर अपर्णा ने दरवाजा खटखटाया .
'लो आ गयी तुम्हारी माँ ! दुनिया का सुधार करके . घर सम्हालता नहीं है और चली है दुनिया सुधारने .' वह मन ही मन बुदबुदाया .
'कैसे हो ? कितने बजे पहुंचे ? आज गर्मी बहुत थी . बस ने भी पक्की सड़क पे छोड़ दिया . रस्ते भर कोई पेड़ ऐसा नहीं कि दो घडी बैठ सकूँ .' उसने पसीना पोंछते हुए कहा .
'किसने कहा है कि अब ये सब करो ! पर तुम्हें तो पढ़ी लिखी और कमाऊ होने का भूत सवार है . क्या मैं इतना कमाता हूँ पूरा नहीं पड़ता तुम्हारे लिए .' सुधीर बोला .

'मैंने कब चाहा था पैसा ? मैं तो तुम्हारा समय और खुशहाली चाहती थी बस .' अपर्णा बोली .
'मेरी खुशहाली या औरत होने की आजादी ! अच्छा ढोंग कर लेती हो तुम . तुम्हें मालूम था कि मैं आ रहा हूँ पर तुम्हें तो अपनी ख़ुशी के सामने और कुछ दिखाई दे तब न !' सुधीर बोला .

अपर्णा भुनभुनाते हुए अन्दर चली गयी . बच्चों को पुकारा . मशीन की तरह बच्चों के जूते, मोज़े, कपडे उतारे और घर के कपडे पहनाये . 

"जनाब मुंबई से आये हैं . इतना तो हुआ नहीं कि बच्चों के कपडे उतारकर उन्हें खाना दे देते . क्या करूँ इनके पैसे का ? चाटूं इस पैसे को ? कितना समझाया था कि यहाँ कोई काम कर लो दुकान या कोचिंग खोल दो अच्छे खाशे तो पढ़े हो सॉफ्टवेयर इंजीनयर का टैग लगा  हुआ है 
  ...साथ रहकर खुश रहेंगे पर जनाब को तो दोस्तों से आगे निकलना है . शान  दिखानी है कि देखो  फलना का बेटा मुंबई में बड़ी कंपनी  में जॉब करता
और 4 व्हीलर से घूम रहा है ।

.... चाहे गाँव की सड़क ही न हो गाड़ी तो यहाँ भी चलेंगे न !
 गांव  में बना दिया घर ...आलिशान है 
 पर ...न कोई बात करने को न दुःख कहने को ."

अपर्णा मशीन की तरह काम करते बोले जा रही थी .

बच्चों के कपडे उठाकर मशीन में डालने के बाद वह सुधीर के कमरे में पड़े कपडे लेने गयी .
'अगर इन चूजों से फुर्सत मिल गयी हो तो एक कप चाय दे दो .' सुधीर बोला
'सही कहते हो ...बच्चे चूजे हैं और मैं मुर्गी ....लाती हूँ चाय !' वह गुस्से से उबलती रसोई की तरफ चल पड़ी , गंदे कपडे हाथों में लिए .
चाय और बिस्किट टेबल पर रखते हुए अपर्णा ने पूछा - ' क्या खाना है ? घर आये हो तो फरमाइश पूरा करना तो बंदी का काम है ही .'
'तुम सीधे मुंह बात नहीं कर सकती ? इतना ही बुरा हूँ तो क्यों पड़ी हो पीछे ...बंदी बना के रखा है मैंने . जरा ज्यादा क्या पढ़ी-लिखी हो दिमाग अपनी जगह नहीं रहता .' सुधीर झल्लाते हुए बोला .
अपर्णा रोती हुई कमरे से चली गयी . 

'मम्मी ! मेरा होम वर्क करवाना है .' छोटी बोली .
'मेरा भी भी काम है सकूल का ' बीटा भी सुर मिलाते हुए बोला .


'जाओ अपने बाप के पास , वो ही काम करवाएगा तुम्हारा . देखते नहीं हो , मैंने अभी कपडे तक नहीं बदले . मैं मशीन हूँ क्या .' अपर्णा चिल्लाई .

बच्चे सहमे से बाप के पास चले गए और टी वी देखने लगे . अपर्णा फिर काम में लग गयी . कुक्कर में सब्जी चढ़ाई ही थी कि मशीन की घंटी बजने लगी . बीच में काम छोड़कर उसने कपडे देखे . दूसरा रौंद डालकर बाथरूम में घुस गयी . नहाकर कपडे बदले और फिर धुले कपडे बाहर डालने लगी . अब कुक्कर भी तीन सीटियाँ मार चुका था . वह रसोई की तरफ दौड़ी कुक्कर को उअतर एक तरफ रखा और रोटियों के लिए आटा गूंथने लगी. फ्रिज से सलाद निकालकर धोया और एक ओर रख दिया .रोटियाँ सिंकने लगी तो उसने पुकारा --'सुनो जी ! खाना तैयार है .'
सुधीर बच्चों के साथ टेबल पर बैठ गया . अपर्णा ने खाना लगाना शुरू किया .
'मैंने पिछली बार कहा था न ये खाने के बर्तन नए ले आना ! घर में क्या कोई कमी है ?' सुधीर बोला .
'नहीं , मुझे समय नहीं मिला . एक टीचर का काम इतना होता है और बच्चों को अकेला छोड़ मैं जा नहीं सकी .' अपर्णा बोली .

'साले ! गाँव के लोगों को कितना भी सुधारों रहते गाँव के ही है .' उलाहना सा देते सुधीर बोला .

'मैं यहाँ गाँव में  हूँ . यहाँ कुछ मिले तो खरीदूं ?' अपर्णा बोली .
इसी नोंक झोंक में शाम हो गयी . अपर्णा कल के लिए कपडे प्रेस कर रही थी . उसके बाद बाद बच्चों का होमवर्क कराया फिर स्कूल के बैग लगाए . और फिर रात के खाने में जुट गयी .
सुधीर कमरे से उठा और अपर्णा के पास आकर बोला - 'इतने दिन बाद आया हूँ तब भी मुंह बना रखा है ....कुछ याद भी रहता है कि मैं तुम्हारा पति हूँ .'
अपर्णा चुपचाप सोचती रही कि ये पति है तो ....वो क्या है ?-मशीन 
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Respect your relationship.... Rp

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